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सुख-दुख

कहीं ऐसा न हो खरहा सिर्फ यूपी के किताबी चित्रों में सिमट कर रह जाएं

उत्तर प्रदेश में उड़ीं वाइल्ड लाइफ एक्ट की धज्जियां खरहा प्रजाति पर गहराया संकट, बदलते मौसम और सूखे से त्रस्त वन्य जीव झेल रहे शिकार का दंश, उत्तर प्रदेश में वाणी जीवों के साथ बड़ा छलावा अधिकारी तोड़ रहे कुर्सी, अंधाधुंध शिकार से खरहा की प्रजाति संकट में, शेड्यूल फस्ट के तहत लिस्टेड खरहा का शिकार धड़ल्ले से चलता है मई भर…

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उत्तर प्रदेश में उड़ीं वाइल्ड लाइफ एक्ट की धज्जियां खरहा प्रजाति पर गहराया संकट, बदलते मौसम और सूखे से त्रस्त वन्य जीव झेल रहे शिकार का दंश, उत्तर प्रदेश में वाणी जीवों के साथ बड़ा छलावा अधिकारी तोड़ रहे कुर्सी, अंधाधुंध शिकार से खरहा की प्रजाति संकट में, शेड्यूल फस्ट के तहत लिस्टेड खरहा का शिकार धड़ल्ले से चलता है मई भर…

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लखनऊ/ चिलचिलाती धूप और फिर उत्तर प्रदेश में अप्रैल से मई, जून तक दूर दूर तक फैले खाली खेत खरहे के शिकार की खास वजह बन जाते हैं। वैसे तो इनका शिकार वर्ष भर चलता है लेकिन इन महीनों में तो सारी सीमाएं तोड़ते हुये यह अंधाधुंध तरीके से होता है। शायद यहीं कारण है तमाम तरह के कागजी फरमान महज दिखावा बन कर रह गए। वन दिवस हो या वन्य जीवों पर आयोजित तमाम तरह के अन्य कार्यक्रम या फिर वन्य जीवों के संरक्षण पर खर्च दिखाया जा रहा पैसा हो सब के मतलब और उद्देश्य सवालों के घेरे में आ गए हैं । और ऐसा हो भी क्यों न, विडम्बना तो देखिये जिन अधिकारियों के कंधों पर वन्य जीवों की रक्षा का भार है उन्ही के नाक के नीचे धड़ल्ले से शिकार चल रहा है।

यहाँ आकर नजारे तो देखिये। शिकार का खेल इन दिनों उत्तर प्रदेश की पहचान बन चुका है। और तो और कागजों पर भले यह बंद हो लेकिन उत्तर प्रदेश की जमीन पर यह रुकने का नाम नही ले रहा। अप्रैल से मई के महीने में प्रदेश के सीतापुर, लखीमपुर , हरदोई हो या शाहजहान पुर या फिर कोई और जिला हर जगह शिकार खुलकर बड़े पैमाने पर हो रहा है। नतीजन प्रदेश के अंदर कई दुर्लभ प्रजाति के जीव काल के गाल में समा चुके हैं और सबसे बुरी दशा है खरहा की। इस प्रजाति के खरगोश प्रदेश के अंदर हजारों की संख्या में महज एक माह के समय में शिकार किए जा चुके हैं। सूखे तालाब और साफ हो चुके जंगल इनकी मुसीबतें और बढ़ा रहे हैं। भ्रष्टता के चलते प्रदेश की अधिकांश नदियों की तलहटी तक खेत बन चुके हैं जिससे अब हर जगह इन्हे खेतों में ही रहना पड़ रहा है। ऐसे में खरहे का शिकार बहुत आसान हो जाता है।

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एक खरहे के पीछे लगभग पाँच से छः लोग हांथों में डंडा लेकर दौड़ते हैं। इन शिकारियों के साथ शिकारी कुत्ते भी होते हैं। कड़ी धूप में खर फूस या फिर ईख की जड़ों के पास छिपे खरहे पर डंडा लगते ही वह जान बचाने की खातिर दूर दूर तक खाली पड़े खेतों में असहाय होकर भागता है। कागजों पर सुरक्षा पाये वह हकीकत में सुरक्षा के नाम पर महफूज नही है। वह कागजी सहायता प्राप्त असहाय जल्दी छिपने के लिए कुछ दूर जाकर रुक जाता है। उसका पीछा कर रहे शिकारी उसे डंडे फेककर मारते हैं। यह छोटा सा प्यारा जीव चोटिल होकर दूर तक तेज धूप में भागता है लेकिन लगातार डंडे लाग्ने के कारण आखिर वह भागने में असमर्थ हो जाता है।

आखिर शिकारी सफल हो जाते हैं। यह शिकार उन तमाम कागजी नियमों का भी है जिन्हे जिम्मेदारों ने अपाहिज कर दिया है। यूं तो वाइल्ड लाइफ एक्ट 1972 की धारा दो के तहत वन्य जीवों के पीछे कुत्ते दौड़ाना, उसे चोट पहुचाना, मार देना, या कोई अंग काटना आदि बहुत कुछ शिकार के अंतर्गत आता है और यह एक दंडनीय अपराध है। बावजूद इसके शिकार होना जिम्मेदारों पर सवालिया निशान छोड़ता है। आपको यह भी बताते चलें कि खरहा वन्य जीवन अधिनियम के शेड्यूल फस्ट के तहत लिस्टेड है। इसके बाद भी खरहे का शिकार उसके अस्तित्व पर ही खतरा बन कर उभरा है।

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बात साफ है अगर ऐसे ही जिम्मेदार कुर्सियों पर बैठ कर मौन रहे तो खरहा सिर्फ उत्तर प्रदेश के किताबी चित्रों में सिमट कर रह जाएगा। इस मामले पर जब कभी कोई वन्य जीव प्रेमी पुलिस को शिकायत करता है तो वह बहाने बताकर पल्ला झाड लेती है जब्कि अधिनियम की धारा 51 के तहत पुलिस अधिकारियों की भी शिकार रोकने की ज़िम्मेदारी बनती है। मामले पर पुलिस कंट्रोल रूम से लेकर थानों तक के बहाने भी खरहा की मौत के बड़े कारण बनते चले गए। काश बड़ी बड़ी बातें करने वाले या फिर मोटी तनख़ाह पाने वाले खरहा की सुध भी ले पाते तो कितना सुंदर होता। पूरे प्रदेश में यह खेल हर साल इसी तरीके से अप्रैल से मई ओर जून तक विकराल रूप ले लेता है।

यह सालों से अब तक जारी है शिकारियों पर नकेल न कसे जाने के कारण खरहा लगातार शिकार हो रहे हैं। आपको यह भी बता दें उत्तर प्रदेश के अंदर आप ऐसा शिकार खेलते शिकारी आसानी के साथ कई जिलों के कोने कोने में देख सकते हैं। प्रदेश के इस गंभीर मामले के संबंध में पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार ने एक मामले पर दो साल बाद लिखित टिप्पणी करते हुए  कहा है सी सी एफ लखनऊ या फिर डी एफ ओ आदि को बताएं। सवाल यह है कि जिन मामलों को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए उन पर आँख बंद किए बैठा लखनऊ मण्डल का सी सी एफ कब कार्यवाही का विचार करेगा। निरपराध खरहा सोये जिम्मेदारों से ऐसे में क्या आस लगाए वहीं दूसरी ओर यह आकडे वन्य जीव प्रेमियों के लिए भी हैरान परेशान करने वाली जमीनी  हकीकत बन कर उभरे हैं। आखिर खरहा कब तक ऐसे ही शिकार होगा जब तक उसका वंश रहेगा या जब तक भ्रष्ट अधिकारी रहेंगे सवाल बड़ा है।

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रामजी मिश्र ‘मित्र’ की रिपोर्ट.

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