प्रमोद अग्रवाल-
हम तो बस अवतारी पुरुष को जानते हैं। गांधी कौन है यह तो बस कल ही पता चला जब अवतारी पुरुष ने बताया कि गांधी फिल्म बनी तब विश्व ने जाना की महात्मा गांधी कौन थे। धन्यवाद अवतारी पुरुष ।
दुनिया में सिर्फ आप ही हैं जो अपने मां बाप को इतने संस्कारी ढंग से गाली दे पा रहे हैं। अपने को भगवान बताने के चक्कर में लावारिस बना रहे हैं।
अपने नामांकन में पिता के नाम की जगह जो दामोदर लिखा है वह शायद कन्हैया होंगे जिन्होंने 16108 में से किसी के जरिए आपको अवतार ग्रहण कराया होगा।
आप तो गोडसे से भी ज़्यादा घातक है। उसने तो कम से कम सीने में गोली मारी थी लेकिन आप तो पीठ में छूरा घोंप रहे हैं।
हरेंद्र मोरल-
गजब जमाना आ गया है, इस देश में एक आदमी कह रहा है कि गांधी फ़िल्म के बाद दुनिया ने उनको जाना कि ये कौन आ गया। और गांधी जी मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला से कम नहीं थे। अरे चचा तुझे क्या बताएँ मार्टिन लूथर और नेल्सन मंडेला को दुनिया उनकी गांधीवादी नीति की वजह से ही पहचानती है। और गांधी फ़िल्म से पहले ही दुनिया के 100 से ज़्यादा देशों में उनकी प्रतिमाएँ लग चुकी थी, तमाम देशों में वो आज भी किताबों का हिस्सा हैं। और दुनिया हमारे देश को बुद्ध और गांधी से ही पहचानती है। ख़ैर तसल्ली इस बात की है की तुमने एक बार फिर गांधी के सामने सिर झुकाया। इससे गांधी को गाली देने वाले तुम्हारे भक्तों को ज़रूर कुछ सीख मिली होगी।
अमित चतुर्वेदी-
सर का कहना है कि महात्मा गांधी को जानता ही कौन था..वो तो गांधी फ़िल्म बनी और फिर फ़िल्म देखने के बाद लोगों ने गांधी को जानना शुरू किया..कितनी सही बात है..रिचर्ड एटनबरो ने ने ख़ुद पहले गांधी मूवी देखी फिर सोचा कि गांधी के ऊपर मूवी बनाई जाए..अंग्रेजों ने भी पहले 1982 में रिलीज़ हुई गांधी फ़िल्म देखी फिर वापस जाकर 1947 में देश आज़ाद करके भाग गए..सर के अलावा बहुत कम लोग जानते हैं कि आज़ादी की दीवानी जनता भी टाइम ट्रैवल करके 1982 में आकर गांधी मूवी देखती थी फिर सब के सब गांधीवादी होकर अंग्रेजों से लड़ाई करते थे..सर के ऐसे महान विचारों के कारण ही तो हम उनके इतने बड़े फैन हैं..
सुनें मोदी जी का ताजा और पुराना बयान-
एक्स पर-
https://x.com/zoo_bear/status/1795800433673347095?s=46
एफबी पर-
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प्रकाश के रे-
गांधी को कोई नहीं जानता था!
साल 1956 में पंडित नेहरू अमेरिका गये थे, पर उनकी भेंट डॉ मार्टिन लूथर किंग से नहीं हो सकी थी. उन्होंने डॉ लूथर को भारत आमंत्रित किया.
डॉ लूथर 1959 में 10 फ़रवरी से 10 मार्च तक भारत यात्रा पर आये. अपनी यात्रा के बारे में उन्होंने ‘ऐबोनी’ पत्रिका में एक लंबा लेख लिखा था. महात्मा गांधी के वैश्विक प्रभाव और लोकप्रियता के बारे में समझना हो, तो वह लेख पढ़ा जाना चाहिए.
उन्होंने उस लेख में लिखा है कि भारत में मोंटगोमेरी बस बॉयकॉट के बारे में लोगों को ख़ूब पता था क्योंकि भारतीय मीडिया में उसके बारे में ख़ूब रिपोर्टिंग हुई थी.
मोंटगोमेरी बॉयकॉट के बारे में उन्होंने लेख में यह लिखा है- “While the Montgomery boycott was going on, India’s Gandhi was the guiding light of our technique of non-violent social change. We spoke of him often. So as soon as our victory over bus segregation was won, some of my friends said: “Why don’t you go to India and see for yourself what the Mahatma, whom you so admire, has wrought.”
डॉ किंग ने उस लेख में यह भी बताया है कि भारत में उनके लिए हर दरवाज़े खुले थे और बहुत सारे लोग अमेरिका में नीग्रो आंदोलन से परिचित थे और उन्हें भी पहचानते थे.
डॉ किंग ने गांधीवादी दर्शन के बारे में अन्यत्र लिखा है-
(The Gandhian philosophy was) “the only morally and practically sound method open to oppressed people in their struggle for freedom.”
(छायाकार: बॉब फ़िच. साभार: स्टैनफ़ोर्ड विश्वविद्यालय पुस्तकालय. इसी विश्वविद्यालय के डॉ किंग अध्ययन केंद्र के साइट पर उनके लेख को पढ़ा जा सकता है.)
विवेक शुक्ला-
किंग 1959 में राजघाट आए तो रोने लगे। पत्रकारों ने इसकी वजह पूछी? किंग ने कहा, गांधी ना होते तो मैं अहिंसक आंदोलन नहीं चला पाता। मेरे लिए भारत आना किसी तीर्थ यात्रा जैसा ही है। उनके साथ श्रीमती कोर्रेटा किंग भी आईं थीं। मेरी किताब gandhi’ s Delhi में किंग की उस राजघाट यात्रा का पूरा ब्यौरा है। वे दिल्ली में जनपथ होटल में रूके थे।