सौमित्र रॉय-
शुक्रवार को पूरा देश जब लखीमपुर खीरी नरसंहार को लेकर बहस में उलझा हुआ था, मोदी सरकार ने खामोशी से बिजली दरों की राष्ट्रीय नीति में बदलाव कर दिया।
अब हल्ला है कि दीवाली से पहले देश अंधेरे में डूबने वाला है। देश के चतुर ऊर्जा मंत्री आरके सिंह पहले तो कहते रहे कि देश में कोयला संकट नहीं है।
फिर जब राज्यों ने चिट्ठी लिखनी शुरू की तो अब ढाढस बंधा रहे हैं।
असल में पूरा खेल अडाणी और टाटा के लिए एक साजिश के तहत शुरू किया गया है। मोदीजी के दोनों दोस्त कोयला विदेशों से मंगाते हैं।
अभी कोयले का दाम विदेशी बाजार में 150 डॉलर प्रति टन का है। शुक्रवार को बदली गई टैरिफ नीति में अडाणी और टाटा 16 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली बनाकर बेचेंगे।
दोनों के पास कोयले की कमी नहीं है। केंद्र का मौजूदा बिजली खरीद समझौता पूर्व निर्धारित दरों पर ही बिजली बेचने की इजाज़त देता है। मोदी सरकार ने इसे नई टैरिफ नीति में बदल दिया है।
पर देश में कोयले की कोई कमी नहीं है।
पिछले साल अप्रैल से सितंबर के बीच 282 मिलियन टन कोयला निकाला गया, जबकि इस साल 315 मिलियन टन कोयला निकला है।
खुद कोल इंडिया लिमिटेड का 7 अक्टूबर का आंकड़ा कहता है कि उसने 1.501 मिलियन टन कोयला एक दिन में भेजा है और 10 अक्टूबर तक इसे 1.7 मिलियन टन कर दिया जाएगा।
फिर अंधेरे युग की चिंता क्यों है?
दिक्कत राज्यों के कंगाल होने से है। मोदी सरकार ने राज्यों को भिखमंगा बना दिया है। वे कोयले का पैसा भी नहीं दे पा रहे।
इस पूरी साज़िश में मोदी सरकार 40 नए कोयला ब्लॉक का आबंटन करने जा रही है। यानी कोयले का उत्पादन बढ़ना ही है।
भारत में पहले किसी भी ज़रूरी चीज़ की इस कदर कमी की जाती है कि लोग हाहाकार करें। फिर उसी चीज़ को दाम बढ़ाकर बेचा जाता है।
पर्दे की आड़ में जमाखोरी और भ्रष्टाचार जमकर होता है। कांग्रेस राज में कंपनियां यह काम करती थी।
मोदी राज में खुद सरकार यह कर रही है। ये मोदीजी का अंधेर युग है। अंधेरा इसीलिए छाया है।