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सुख-दुख

दो युवा पत्रकारों मुकेश महतो और राहुल सिवाच की अदभुत दोस्ती कथा

Mukesh Mahto : दो साल पहले। यही मई का महीना था। उधर चाय बेचने वाले मोदी प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे और इधर आईआईएमसी से निकलते ही एक फकीर मुकेश महतो की पहली नौकरी लगी रोहतक में। मेरी नौकरी के दो साल पूरे होने का ढिंढोरा हम भी जरूर पीटेंगे लेकिन बाद में। फिलहाल ये बात। पहली बार आया रोहतक। अंजान शहर। नये लोग। नया माहौल। डराने वाली थोड़ी नई हरियाणवीं भाषा। जल्दी किसी से घुलमिल नहीं पाता, ये कमजोरी रही है हमारी।

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Mukesh Mahto : दो साल पहले। यही मई का महीना था। उधर चाय बेचने वाले मोदी प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे और इधर आईआईएमसी से निकलते ही एक फकीर मुकेश महतो की पहली नौकरी लगी रोहतक में। मेरी नौकरी के दो साल पूरे होने का ढिंढोरा हम भी जरूर पीटेंगे लेकिन बाद में। फिलहाल ये बात। पहली बार आया रोहतक। अंजान शहर। नये लोग। नया माहौल। डराने वाली थोड़ी नई हरियाणवीं भाषा। जल्दी किसी से घुलमिल नहीं पाता, ये कमजोरी रही है हमारी।

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एक युवा सा, फुर्तिला सा गोरा हट्टा-कट्टा लड़का ऑफिस में ठीक मेरे बाजू वाली सीट पर बैठता था। सप्ताह लग गए उससे जान-पहचान करने में। फिर तो ऐसी पहचान हुई कि रोहतक के अच्छे दोस्तों में से एक हो गया राहुल सिवाच। बहुत अच्छा दोस्त। कई बार रात के 3 बजे भी मदद के लिए बुलाया तो बिना कुछ पूछे फौरन पहुंचा और मदद की। कहता कि घरवालों से दूर हो तो क्या, तेरा भाई यहीं है रे मुकेश। इनके दादा जी हरियाणा के सोनीपत से सांसद रह चुके हैं। पूर्व मुख्यमंत्री और उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल के बेहद करीबी, उनके घर हमेशा आना जाना रहता था।

मैं कुछ दिनों की छुट्टी पर अपने घर झारखंड गया। 10 दिन बाद आया तो पता चला कि अचानक राहुल भाई ने नौकरी छोड़ दी है। क्यों छोड़ी, किसी को कुछ नहीं मालूम। फोन बंद, कोई कांटेक्ट नहीं। लगभग साल भर बाद आज यूं ही लेटे-लेटे अचानक मैंने उसका नंबर मिलाया तो मिल गया। तुरंत पहचान लिया, उसने बताया कि वो 10 दिन से रोहतक के ही पीजीआई अस्पताल में है, जो मेरे कमरे से बस डेढ़ किलोमीटर दूर है। तुरंत बाइक निकाली और अस्पताल पहुंचा। उनकी माताजी बेड पर लेटी थी। पेट का तीसरी बार ऑपरेशन हुआ था और पिछले 10 महीने से अस्पताल ही घर बन गया है उनका। पहला ऑपरेशन गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में हुआ, वहां से 1 महीने बाद छुट्टी मिली। पूरा परिवार जब कई दिनों बाद घर पहुंचा तो चोरों ने घर की कुर्सियां तक भी नहीं छोड़ी थी। माताजी का ऑपरेशन, ऊपर से पूरा घर चोरी…तकलीफों का पहाड़ टूट पड़ा। कोई मास्टर कभी कभी हमें पढ़ाता था कि चोरी करना पाप नहीं है, पकड़ाना पाप है। ये चोर चाहे जिंदगी में पकड़ाए या नहीं, उन्हें ये जीवन भर सताएगा कि हमने उस घर में चोरी की थी जहां एक माताजी का ऑपरेशन हुआ था और बिल्कुल ठीक हो चुकी ताई, चोरी की घटना से आहत होकर फिर सदमे में आ गई जो अब तक अस्पताल में है।

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इसके बावजूद राहुल कहता है कि उन चोरों से हमें कोई शिकायत नहीं, चलो हमारी चीजें किसी गरीब के काम तो आएंगी। बससस मेरी मां ठीक हो जाए। मेरे अस्पताल पहुंचते ही राहुल ने कहा मां ये मुकेश है। उनकी मां हल्की आवाज़ में कुछ बोली। मैं सुन नहीं पाया लेकिन दोबारा पूछ नहीं सकता था। राहुल पिछले 10 महीने से सबकुछ छोड़ 24 घंटे अपनी मां की सेवा में ही लगा हुआ है। राहुल की कई बातें दिल को छू जाती हैं लेकिन एक बात जो दिल को छूई ही नहीं दिल को झकझोर गई। वो कहता है मां की सेवा करने का मौका मिला है, हर किसी को नहीं मिलता। अच्छे से देखभाल कर सकूं, इसलिए नौकरी छोड़ दी। 10 महीने क्या, पूरा जीवन उनकी सेवा में गुजार दूं तो भी कम है। उनकी मां सबकुछ सुन रही हैं, मंद मंद मुस्कुरा रही हैं, राहुल की बातें उनकी मां के कानों में प्रवेश कर रही हैं, कान के रास्ते होते हुए ये आवाज, पानी में बदलकर, आंसू बनकर आंखों के कोनों से धाराओं में बह रही हैं। वो कहना चाह रही हैं, लब्ज डोल रहे हैं पर आवाज नहीं निकल रही हैं। हालांकि आवाज, हवाओं में बदलकर हमारे कानों तक पहुंच रही है… तुम जैसा बेटा, हर मां को मिले।

पत्रकार मुकेश महतो के फेसबुक वॉल से.

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