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सियासत

‘सरकार’ जी नवरात्र में मांस भक्षण के नियम बता दें

Sanjaya Kumar Singh : मुंबई में शिवसैनिकों ने वामपंथी से दक्षिणपंथी हुए, साप्ताहिक ब्लिट्ज में पत्रकारिता करते हुए लाल कृष्ण आडवाणी के करीबी और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण लेखक रहे, कैश फॉर वोट स्कैम में जेल हो आए सुधीन्द्र कुलकर्णी के साथ आज जैसा व्यवहार किया और उससे पहले की स्थितियों, उसपर प्रतिक्रिया, चुप्पी और समर्थन के मद्देनजर यह स्पष्ट हो गया है कि देश में, जहां कहीं भी दक्षिणपंथी विचारों के लोग पर्याप्त संख्या में हैं वहां पुलिस प्रशासन को छोड़ इन भक्तों के कानून का पालन करना नागरिकों की मजबूरी है। पुलिस है, पर बाद की कार्रवाई (आप चाहें और हिम्मत हो तो लीपापोती कह सकते हैं) के लिए।

Sanjaya Kumar Singh : मुंबई में शिवसैनिकों ने वामपंथी से दक्षिणपंथी हुए, साप्ताहिक ब्लिट्ज में पत्रकारिता करते हुए लाल कृष्ण आडवाणी के करीबी और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण लेखक रहे, कैश फॉर वोट स्कैम में जेल हो आए सुधीन्द्र कुलकर्णी के साथ आज जैसा व्यवहार किया और उससे पहले की स्थितियों, उसपर प्रतिक्रिया, चुप्पी और समर्थन के मद्देनजर यह स्पष्ट हो गया है कि देश में, जहां कहीं भी दक्षिणपंथी विचारों के लोग पर्याप्त संख्या में हैं वहां पुलिस प्रशासन को छोड़ इन भक्तों के कानून का पालन करना नागरिकों की मजबूरी है। पुलिस है, पर बाद की कार्रवाई (आप चाहें और हिम्मत हो तो लीपापोती कह सकते हैं) के लिए।

ऐसे में देशवासियों और ‘सरकार’ का यह दायित्व है कि नए नियम बता दिए जाएं। इस ‘सरकार’ से तो यह उम्मीद करना भी बेमानी है कि वह विज्ञापन छपवाकर या बयान जारी करके अपने नए नियम बताएगी या इच्छाएं जताएगी। और यह भी कि ‘सरकारी’ बयान अखबारों-टेलीविजन और रेडियो पर खबर के रूप में छापे, दिखाए और सुनाए जाएंगे। देर सबेर ‘सरकार’ यह सब करने लगेगी पर जब तक ऐसा नहीं हो रहा है जनता को अपने हित में चाहिए कि वह शक होने पर ‘सरकार’ से पूछ ले। पर ‘सरकार’ से पूछे भी कैसे। सरकार तो अपनी पसंद के विषयों पर काम करती है और कई विषय मन में आते ही नहीं हैं।

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‘सरकार’ ने तो अभी तक यही तय नहीं किया है कि आम जनता को शंका समाधान कैसे करना है या करना भी है कि नहीं। यह भी संभव है कि ‘सरकार’ ने तय किया हो वह ‘स्वहित’ के मामले जनता को बता देगी और जनता को उसका पालन करना ही होगा। यहां तक तो ‘सरकार’ से असहमत होने का कोई कारण नहीं है। पर इतने बड़े देश में विविधता, विवाद, भ्रम और उलझन स्वाभाविक हैं। और मैं भी एक उलझन में हूं। इस पोस्ट का मकसद यही है और मैं एलान करता हूं कि यह किसी भी रूप में ‘सरकार’ का विरोध करने या उसपर तंज कसने के लिए नहीं है।

मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि जनहित में ‘सरकार’ को चाहिए कि वह लोगों के उलझन दूर करती रहे और एक नंबर (टॉल फ्री हो तो और अच्छा है) घोषित कर दे (प्रचारित / बांटने का काम हम कर लेंगे) जहां लोग पूछ सकें कि मांस खाना है या नहीं? मेरी लंबाई 5 फीट 6 ईंच है कितने फीट की स्कर्ट पहन सकती हूं? पहूनं तो ऊपरी हिस्सा कहां (सिर से या अंगूठे से कितनी दूर रखूं), एक लड़के या लड़की के साथ डेट पर जाना है। धर्म के सबूत के रूप में कौन से दस्तावाज मान्य हैं (मेरे पास जो हैं किसी में धर्म नहीं लिखा है) आदि।

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पाठक कृपया इन समस्याओं को हल्के में ना लें। और अगर आप हिन्दू हैं और फिर भी किसी कारण से सरकार विरोधी हैं (नकली हिन्दू होने, नेहरू जी जैसे या फिर किसी अन्य कारण से) तो आपके पास पाकिस्तान जाने का भी विकल्प नहीं है। अगर आप समझ रहे थे कि नेपाल चले जाएंगे (वहां जाने के लिए पासपोर्ट भी नहीं चाहिए) तो अपनी गलतफहमियां दूर कर लें। भूकंप के बाद भारत सरकार ने उसकी सेवा करके अपना जो प्रचार किया था याद है ना। और नेपाल ने जिस तरह एतराज किया था। मीडिया को भी गरिया था। उसकी कसर निकाली जा रही है। उसे सबक तो सीखाना ही था। तीन तरफ से भारत से घिरा है तब इतनी गर्मी थी उसे। तो अब नेपाल आपका स्वागत करे भी तो आप वहां रहेंगे कहां और जाएंगे। कैसे। नेपाल में पांच सितारा होटल बंद हैं क्योंकि वहां ग्राहक नहीं हैं और ग्राहक नहीं हैं क्योंकि सड़कों पर चलने के लिए ईंधन नहीं है और भारत सरकार बिहार चुनाव में व्यस्त है।

नवरात्र शुरू होने वाले हैं। मैं जानना चाहता था कि इस दौरान मांस भक्षण से संबंधित नियम क्या हैं। सभी धर्मों के लिए एक है या अलग-अलग। खरीद कर खा सकते हैं कि नहीं, नहीं खा सकते हैं तो क्या फ्रोजन भी प्रतिबंधित रहेगा और अगर हां तो पहले से जो फ्रीज में हैं उन्हें वहीं रखा जा सकता है या लोहे की अलमारी में रखना होगा या सड़क पर फेंक देना है या केले के पत्ते में बांधकर, लाल कपड़े में लपेटकर कूड़े दान में फेंकना है। फिलहाल तो मैं इसी उलझन में दुबला हुआ जा रहा हूं। किसी और को कोई उलझन हो तो यहां कमेंट मे डाल दें ताकि ‘सरकार’ भी समझे कि मेरी मांग कितनी जायज और जरूरत सम्मत है।

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वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से.

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