कभी गजलों, गीतों, कविताओं, की उंगली थामें चलने वाले गुलजार का सफर आज भी जारी है। कहीं कोई छोटी सी मगर अन्दर तक छू जाने वाली नज्म तो कभी दिल को पुरसुकून देने वाले गीत गुलजार हमारे लिये लाते रहे है। हमारे हर मूड को भाप लेने वाली उनकी रचनाएं बार-बार हमसे कहती है —
जिदंगी क्या है,जानने के लिए
जिदां रहना बहुत जरूरी है
आज तक कोई भी रहा तो नहीं,
जिंदा रहना और जिदंगी को जी लेना दो अलग बात है, गुलजार की रचनाए इसी बात को बार-बार समझाती है, उनकी यही तलाश उन्हें बंजारे सा भटकाती फिरती है, और शब्दों के भीड़ में वो आहिस्ते-आहिस्ते बड़े शिद्दत के साथ शब्दों को चुनते है, लफजों को पिरोते है, उन्हें अपने अन्दर पालते-पोसते है, एक चेहरा देते है। और फिर एक बेहतरीन रचना सामने होती है। यही गुलजार है, उम्र जहां मायने नहीं रखती। उनके झोले में सबके लिये कुछ न कुछ है, फिर चाहे वो जंगल बुक का चढ्डी पहन के फूल खिला हो, तुम आ गए हो नूर आ गया हो या फिर है लो जिन्दगी, जिन्दगी नूर है, मगर इसमें जलने का दस्तूर है। बच्चें हो या जवान, अधेड़ हो या बूढ़ा। उनकी रचनाएं सबको छू कर निकलती है। कभी हंसाती है, कभी रूलाती है, दूर तक साथ चलती है, और फिर कहती है,
मैने तो एक बार बुना था
एक ही रिश्ता
मगर उसकी सारे गिरहे
साफ नजर आती है मेरे यार जुलाहें
मुझको भी तरकीब सिखा कोई यार जुलाहे।
80 के हो चले गुलजार से हमे बस इतना ही कहना है,
तेरे नज्मों के साथ बिताये पल
गरम-गरम सी लगती है।
सब पल रेषम की नहीं
पर नरम-नरम सी लगती है।
गुलजार के सालगिरह पर उनकी कुछ रचनाएं-
(1)
आदमी बुलबुला है पानी का
और पानी की बहती सतह पर
टूटता भी है, डूबता भी है,
फिर उभरता है, फिर से बहता है,
न समंदर निगल सका है इसको
न तवारीख तोड़ पायी है,
वक्त की मौज पर सदा बहता हुआ
आदमी बुलबुला है, पानी का।
(2)
नाम सोचा ही ना था, है कि नहीं
अमां कहकर बुला लिया इक ने,
ए जो कहकर बुलाया दूजे ने
अबे ओ यार लोग कहते है,
जो भी यूं जिस किसी के जी आया
उसने वैसे ही बस पुकार लिया
तुमने इक मोड़ पर अचानक जब
मुझको गुलजार कहके दी आवाज
एक सीपी से खुल गया मोती
मुझको इक मानी मिल गये जैसे
आह, यह नाम खूबसूरत है
फिर मुझे नाम से बुलाओ तो।
भाष्कर गुहा नियोगी
मो. 0915354828