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मध्य प्रदेश सरकार द्वारा बांटे जा रहे लैपटॉप ने ली संपादक ओमप्रकाश मेहता की नौकरी

मध्य प्रदेश का एक प्रतिष्ठित अखबार है नई दुनिया। इसके संपादक ओमप्रकाश मेहता की हाल ही में संस्थान से विदाई हो गई। कारण रहा, सरकार द्वारा बांटे जा रहे लैपटॉप की सूची में उनका नाम न होना। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि मेहता पर राज्य सरकार का मकान के किराए के रूप में कुछ करोड़ रुपए बकाया है, जिन्हें देने में उनकी कोई रुचि नहीं है। हाई कोर्ट में प्रस्तुत बकायादारों की सूची में सबसे उपर उन्हीं का नाम है। हुआ यूं कि सरकार ने स्वतंत्र पत्रकारों को लैपटॉप की सूची से अलग रखा है। मेहता स्वतंत्र पत्रकार की श्रेणी में हैं। उन्होंने इस बारे में जनसंपर्क विभाग के एक अधिकारी से चर्चा की और नाराजगी जताई कि स्वतंत्र पत्रकारों को इस सूची से अलग क्यों रखा गया है।

<p>मध्य प्रदेश का एक प्रतिष्ठित अखबार है नई दुनिया। इसके संपादक ओमप्रकाश मेहता की हाल ही में संस्थान से विदाई हो गई। कारण रहा, सरकार द्वारा बांटे जा रहे लैपटॉप की सूची में उनका नाम न होना। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि मेहता पर राज्य सरकार का मकान के किराए के रूप में कुछ करोड़ रुपए बकाया है, जिन्हें देने में उनकी कोई रुचि नहीं है। हाई कोर्ट में प्रस्तुत बकायादारों की सूची में सबसे उपर उन्हीं का नाम है। हुआ यूं कि सरकार ने स्वतंत्र पत्रकारों को लैपटॉप की सूची से अलग रखा है। मेहता स्वतंत्र पत्रकार की श्रेणी में हैं। उन्होंने इस बारे में जनसंपर्क विभाग के एक अधिकारी से चर्चा की और नाराजगी जताई कि स्वतंत्र पत्रकारों को इस सूची से अलग क्यों रखा गया है।</p>

मध्य प्रदेश का एक प्रतिष्ठित अखबार है नई दुनिया। इसके संपादक ओमप्रकाश मेहता की हाल ही में संस्थान से विदाई हो गई। कारण रहा, सरकार द्वारा बांटे जा रहे लैपटॉप की सूची में उनका नाम न होना। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि मेहता पर राज्य सरकार का मकान के किराए के रूप में कुछ करोड़ रुपए बकाया है, जिन्हें देने में उनकी कोई रुचि नहीं है। हाई कोर्ट में प्रस्तुत बकायादारों की सूची में सबसे उपर उन्हीं का नाम है। हुआ यूं कि सरकार ने स्वतंत्र पत्रकारों को लैपटॉप की सूची से अलग रखा है। मेहता स्वतंत्र पत्रकार की श्रेणी में हैं। उन्होंने इस बारे में जनसंपर्क विभाग के एक अधिकारी से चर्चा की और नाराजगी जताई कि स्वतंत्र पत्रकारों को इस सूची से अलग क्यों रखा गया है।

अफसर ने उन्हें दो टूक जवाब दे दिया कि यह सरकार का निर्णय है। इसी के बाद मेहता को सरकार के सभी निर्णयों में खामी दिखाई देने लगी। मुद्दा बीजेपी के हुए सम्मेलन का था, जिस वजह से प्रशासन ने सुरक्षा की दृष्टि से कुछ स्कूलों में अवकाश घोषित कर दिया। बस, यहीं उन्हें लगा कि इससे छात्रों की पढ़ाई का अच्छा खासा नुकसान होगा। उन्होंने खबर भी लगवाई और संपादकीय भी लिखी, जो कि प्रबंधन को रास नहीं आई। प्रबंधन ने उसमें काट-छांट कर दी और संकेत दे दिया कि इस तरह की हरकतें बर्दाश्त नहीं होंगीं। जब वे संपादकीय के मुद्दे पर प्रबंध संपादक से चर्चा कर रहे थे, तभी उनकी विदाई तय कर दी गई। हालांकि सूत्रों के अनुसार मेहता ने फिर प्रबंधन से मेल-मिलाप की कोशिश की, लेकिन उनके प्रयास असफल रहे। अब वे नई नौकरी की तलाश कर रहे हैं।

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