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उत्तर प्रदेश

जनता विकास चाहती है लेकिन नेता जातिवादी राजनीति से बाज नहीं आते

राजनेताओं और जनता की सोच में जमीन-आसमान का फर्क है। नेताओं को वोट बैंक की तो जनता को पेट की भूख हर समय कचोटती रहती है। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जा जायेगा कि देश को आजाद हुए छह दशक से अधिक का समय बीत चुका है, लेकिन आज तक यहां के नागरिकों के पेट और नेताओं की वोट की भूख मिट नहीं सकी है। देखने में तो दोनों भूखों में काफी अंतर दिखाई देता है, परंतु हकीकत में दोनों एक-दूसरे की पूरक हैं। निश्चित मान कर चलिये जिस दिन नेताओं की वोट बैंक की भूख शांत हो जायेगी, उसी दिन से देश की जनता को भी भूख से बिलखते हुए सोना नहीं पड़ेगा।

<p>राजनेताओं और जनता की सोच में जमीन-आसमान का फर्क है। नेताओं को वोट बैंक की तो जनता को पेट की भूख हर समय कचोटती रहती है। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जा जायेगा कि देश को आजाद हुए छह दशक से अधिक का समय बीत चुका है, लेकिन आज तक यहां के नागरिकों के पेट और नेताओं की वोट की भूख मिट नहीं सकी है। देखने में तो दोनों भूखों में काफी अंतर दिखाई देता है, परंतु हकीकत में दोनों एक-दूसरे की पूरक हैं। निश्चित मान कर चलिये जिस दिन नेताओं की वोट बैंक की भूख शांत हो जायेगी, उसी दिन से देश की जनता को भी भूख से बिलखते हुए सोना नहीं पड़ेगा।</p>

राजनेताओं और जनता की सोच में जमीन-आसमान का फर्क है। नेताओं को वोट बैंक की तो जनता को पेट की भूख हर समय कचोटती रहती है। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जा जायेगा कि देश को आजाद हुए छह दशक से अधिक का समय बीत चुका है, लेकिन आज तक यहां के नागरिकों के पेट और नेताओं की वोट की भूख मिट नहीं सकी है। देखने में तो दोनों भूखों में काफी अंतर दिखाई देता है, परंतु हकीकत में दोनों एक-दूसरे की पूरक हैं। निश्चित मान कर चलिये जिस दिन नेताओं की वोट बैंक की भूख शांत हो जायेगी, उसी दिन से देश की जनता को भी भूख से बिलखते हुए सोना नहीं पड़ेगा।

मगर, सवाल यही है कि क्या ऐसा होगा? हमारे नेता ऐसा होने देंगे? सौ में नब्बे हिन्दुस्तानी इसका जवाब ना में ही देंगे। क्योंकि देश की 90 फीसदी जनता के मन में निराशा का भाव बुरी तरह से घर कर चुका है। इस निराशा को कोई आशा में बदलना भी चाहे तो वोट बैंक की राजनीति करने वाले ऐसा आसानी से होने नहीं देंगे, लेकिन लगता है कि तमाम पुराने रिकार्डो को तोड़ते हुए देश की सवा सौ करोड़ जनता ने अब अपना मन बदल लिया है। उसे सही-गलत में फैसला करना आ गया है।

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धर्म की दीवार को वह अपने विकास में आड़े नहीं आने देना चाहती है। अगर ऐसा न होता तो उत्तर प्रदेश सरकार के कबीना मंत्री आजम खां की कथित चेतावनी को मुसलमान भाई गंभीरता से सुनते, लेकिन आश्यर्चजनक रूप से लखनऊ के हज हाउस में आजम खां साहब जब मुसलमान भाईयों के सामने (मोदी का भूत खड़ा करके) तकरीर करते हुए कह रहे थे कि उनके (मुसलमानों) प्रति देश में दहशत और नफरत का माहौल बनाया जा रहा है। यह वक्त मुसलमानों के लिये अच्छा नहीं है। उस समय लाखों मुसलमान आजम की बातों से दहशत में आये बिना अपने भविष्य का तानाबाना बुर रहे थे।

यही वजह थी उन्हें मोदी सरकार की अति महत्वाकांक्षी ‘प्रधानमंत्री जन-धन योजना’ लुभा रही थी। वह(मुसलमान) प्रदेश के दूरदराज के इलाकों से लेकर लखनऊ तक के बैंकों में खाता खोलने के लिये लम्बी-लम्बी लाईन लगाये हुए थे। शायद उन्हें इस बात का अहसास था कि आजम वोट बैंक की खेती कर रहे हैं जिससे उनका पेट भरने वाला नहीं है। इसी लिये वह ‘मेरा खाता भाग्य विधाता’ के द्वारा अपने लिये अच्छा माहौल बनाने की कवायद कर रहे थे।

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खैर, ऐसा लगता है कि आजम के पास जातिवाद की राजनीति के अलावा कहने-सुनने को कुछ नहीं बचा है। वह भले ही मुलसमानों के ठेकेदार बनने की कोशिश करते हों लेकिन लोकसभा चुनाव में जब रामपुर संसदीय सीट से अपनी पसंद के सपा प्रत्याशी को नहीं विजय नहीं दिला पाये (जहां की मुस्लिम आबादी पचास प्रतिशत से ऊपर है) तो पूरे प्रदेश के मुसलमानों के के रहनुमा वह कैसे बन सकते हैं। आजम ही नहीं समाजवादी पार्टी के तमाम नेता जितनी जल्दी यह समझ लेगें कि मोदी के चमत्कार को विकास के सहारे ही ध्वस्त किया जा सकता है। उसी दिन से उनके भी अच्छे दिन शुरू हो जायेंगे।

यह सिलसिला भी अजीब है। एक तरह आजम मोदी को मुसलानों का दुश्मन साबित करने का बीड़ा उठाये हुए हैं तो दूसरी तरफ धर्म गुरू और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सलन ला बोर्ड के सदस्य मौलाना कल्बे जवाद कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक दंगों की बाढ़ आ गई है। इसमें प्रदेश सरकार की असफलता, जिला प्रशासन की अक्षमता के अलावा मोहम्म आजम खां की भी भूमिका अहम है। अब कोई पैमाना तो है नहीं जिससे नापा जा सके कि कौन सही है और कौन गलत। परंतु एक बात तो है ही मोदी जहां सवा सौ करोड़ भारतीयों की बात करते हैं, वहीं आजम 21 करोड़ (यूपी की आबादी) जनता के बारे में कभी एक साथ नहीं सोच पाये।  

 

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लेखक अजय कुमार लखनऊ में पदस्थ हैं और यूपी के वरिष्ठ पत्रकार हैं। कई अखबारों और पत्रिकाओं में वरिष्ठ पदों पर रह चुके हैं। अजय कुमार वर्तमान में ‘चौथी दुनिया’ और ‘प्रभा साक्षी’ से संबद्ध हैं।

  

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