Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

नवारूण का जाना सिर्फ उनके जिस्म की मौत है…शब्द नहीं मरा करते

कविता को सपने और जिदंगी से जोड़, परिवर्तन की बात करने वाले बांग्ला के कवि नवरूण भट्टाचार्य ने बीते 31 जुलाई इस दुनिया को अलविदा कह दिया। ‘कोई मौत की घाटी नहीं है, मेरा देश’ जैसी कविताएं लिखकर नक्सलबाड़ी आन्दोलन के दौरान हो रहीं युवकों की हत्याओं पर सवाल खड़ा करने वाले कवि नवारूण भट्टाचार्य की कविताओं में वो उर्जा है, जो ठहरे को चलाने के साथ-साथ सोचने पर भी मजबूर कर देती है।

नवारूण, वंचितों के नाम अपनी कलम कर देने वाली जन-लेखिका महाश्वेता देवी के एक मात्र पुत्र थे। 23 जून 1948 को बहरमपुर पश्चिम बंगाल में जन्में नवारूण कलकत्ता विश्वविद्यालय के छात्र रहे। उन्होनें नक्सलबाड़ी आन्दोलन को नजदीक से देखा, उस पर कविताएं लिखीं। नवारूण को उनकी महत्वपूर्ण कृति ‘हार्बट’ के लिए साहित्य अकादमी से सम्मान भी मिला।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दुर्जेय समय में उनकी कविता किस तरह से अन्दर तक आकर हमें कितना कुछ दे जाती है, ये तो इन्हें पढ़कर ही पता चलेगा। उनकी मौत पर इतना ही, कि शब्द नहीं मरा करते मौत तो जिस्म को आती है……!

…मेरी किस्मत आपके हाथो में है!
मैं सिर्फ कविता लिखता हूं,
ये कोई काम की बात नहीं है,
ये सुनकर शायद लोग हसें
कि मैं हाथ देखना जानता हूं,
मैंने हवा का हाथ देखा है,
हवा एक दिन तूफान बनकर
इन बड़े-बड़े महलो का ढहा देगी,
हां, ऐसा ही है,
मैने रास्ते मैं बैठे
भिखारियों का हाथ देखा है,
आने वाले दिनों में उनकी तकलीफें कम होंगी
इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता,
मैने बारिश का हाथ देखा है,
उसका कोई भरोसा नहीं
इसलिए आप सबके पास एक छाता होना जरूरी है,
मैने सपनों का हाथ देखा है,
उसको साकार करने के लिए
नींद से बाहार आना ज़रूरी है,
प्यार का हाथ भी मैने देखा है,
न चाहते हुए भी वो हम सबको
अपने आगोश में लिए रहता है,
क्रांतिकारियों का हाथ देखना
किस्मत की बात है,
एक तो वो मिलते नहीं
दूसरे बम के धमाके से कईयों के हाथ
ही सही-सलामत नहीं रह गए है,
बड़े आदमियों का हाथ भी मैने देखा है,
उनका भविष्य अंधकारमय है,
मैने भीषण दुःख का हाथ देखा है,
उसकी सुबह नजदीक है,
मैने जितनी कविताएं लिखी है,
उससे ज्यादा हाथ देखा है,
मेरी गुजारिश है,
मेरी बात सुनकर हंसियेगा मत
मैने अपना हाथ भी देखा है,
मेरा भविष्य आपके हाथों में है।
                                                                        -नवारूण भट्टाचार्य

Advertisement. Scroll to continue reading.

सोचने की बात

एक रोटी के अंदर कितनी भूख रहती है,
थोड़ा सा पानी कितने ख्वाहिशों को रोके रखता है,
एक अस्पताल के बिस्तर पर
कितनी तकलीफें सोयी रहती है,
बारिश की एक बूंद में
कितना समुद्र छुपा रहता है,
एक परिन्दें के मरने से
कितना आकाश मर जाता है,
एक आंख की रोशनी खो जाने से
कितनी रोशनिया बुझ जाती है,
…एक कविता लिखकर कितना
शोर मचाया जा सकता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

 

भाष्कर गुहा नियोगी, वाराणसी। संपर्कः #09415354828

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement