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सुख-दुख

हिस्ट्रीशीटर को पकड़ने के बजाए शिकायतकर्ता पत्रकार को परेशान कर रही कांकेर पुलिस

कांकेर पुलिस विभाग मेरे पत्रकार होने के सबूत के पीछे पड़ा हुआ है। थाने और एसपी आफिस के चाय-नाश्ते में शामिल ना होने का दुष्परिणाम ही कहें कि पांच साल में पांचवी बार और महीने के भीतर दूसरी बार कांकेर पुलिस थाने ने जनसम्पर्क विभाग से जानकारी मांगी है कि मैं पत्रकार हूँ या नहीं। कांकेर पुलिस मेरे द्वारा एक हिस्ट्रीशीटर अपराधी के खिलाफ जान से मारने की धमकी के मामले में सारे गवाह के बयान दर्ज हो जाने के बाद भी मेरे बारे में पत्रकार होने या ना होने सम्बन्धी जानकारी जुटाने में लगी है। महीने भर बाद भी कांकेर पुलिस को इस मामले में अपराधियों की तलाश नहीं है, ना चालान पेश करने की जल्दी है। जबकि मेरे खिलाफ दर्ज फर्जी मामले में जनसम्पर्क विभाग से इस बात की जांच करने के बाद कि मै पत्रकार हूँ कि नहीं और विभाग द्वारा पत्रकार होने की बात स्वीकार करने के बाद भी मात्र तीन दिन के भीतर मेरी गिफ्तारी कर लेने वाली पुलिस का रवैया क्या संदेहास्पद नहीं है? जबकि मेरी रिपोर्ट पर महीने भर बाद भी पुलिस मेरे बारे में छान-बीन में उलझी हुई है मानो कि शिकायतकर्ता पत्रकार ना हुआ तो धमकी देने वाले पर मामला ही नहीं बनता हो।

<p>कांकेर पुलिस विभाग मेरे पत्रकार होने के सबूत के पीछे पड़ा हुआ है। थाने और एसपी आफिस के चाय-नाश्ते में शामिल ना होने का दुष्परिणाम ही कहें कि पांच साल में पांचवी बार और महीने के भीतर दूसरी बार कांकेर पुलिस थाने ने जनसम्पर्क विभाग से जानकारी मांगी है कि मैं पत्रकार हूँ या नहीं। कांकेर पुलिस मेरे द्वारा एक हिस्ट्रीशीटर अपराधी के खिलाफ जान से मारने की धमकी के मामले में सारे गवाह के बयान दर्ज हो जाने के बाद भी मेरे बारे में पत्रकार होने या ना होने सम्बन्धी जानकारी जुटाने में लगी है। महीने भर बाद भी कांकेर पुलिस को इस मामले में अपराधियों की तलाश नहीं है, ना चालान पेश करने की जल्दी है। जबकि मेरे खिलाफ दर्ज फर्जी मामले में जनसम्पर्क विभाग से इस बात की जांच करने के बाद कि मै पत्रकार हूँ कि नहीं और विभाग द्वारा पत्रकार होने की बात स्वीकार करने के बाद भी मात्र तीन दिन के भीतर मेरी गिफ्तारी कर लेने वाली पुलिस का रवैया क्या संदेहास्पद नहीं है? जबकि मेरी रिपोर्ट पर महीने भर बाद भी पुलिस मेरे बारे में छान-बीन में उलझी हुई है मानो कि शिकायतकर्ता पत्रकार ना हुआ तो धमकी देने वाले पर मामला ही नहीं बनता हो।</p>

कांकेर पुलिस विभाग मेरे पत्रकार होने के सबूत के पीछे पड़ा हुआ है। थाने और एसपी आफिस के चाय-नाश्ते में शामिल ना होने का दुष्परिणाम ही कहें कि पांच साल में पांचवी बार और महीने के भीतर दूसरी बार कांकेर पुलिस थाने ने जनसम्पर्क विभाग से जानकारी मांगी है कि मैं पत्रकार हूँ या नहीं। कांकेर पुलिस मेरे द्वारा एक हिस्ट्रीशीटर अपराधी के खिलाफ जान से मारने की धमकी के मामले में सारे गवाह के बयान दर्ज हो जाने के बाद भी मेरे बारे में पत्रकार होने या ना होने सम्बन्धी जानकारी जुटाने में लगी है। महीने भर बाद भी कांकेर पुलिस को इस मामले में अपराधियों की तलाश नहीं है, ना चालान पेश करने की जल्दी है। जबकि मेरे खिलाफ दर्ज फर्जी मामले में जनसम्पर्क विभाग से इस बात की जांच करने के बाद कि मै पत्रकार हूँ कि नहीं और विभाग द्वारा पत्रकार होने की बात स्वीकार करने के बाद भी मात्र तीन दिन के भीतर मेरी गिफ्तारी कर लेने वाली पुलिस का रवैया क्या संदेहास्पद नहीं है? जबकि मेरी रिपोर्ट पर महीने भर बाद भी पुलिस मेरे बारे में छान-बीन में उलझी हुई है मानो कि शिकायतकर्ता पत्रकार ना हुआ तो धमकी देने वाले पर मामला ही नहीं बनता हो।

कई पत्रिकाओ, अखबारों, वेबसाईट पर मेरी ख़बरें लग रही हैं। अब यह तो पुलिस के आला अधिकारियों को अच्छी तरह पता है कि बेक़सूर ग्रामीणों को नक्सली बताकर जेल में ठूंसने और फर्जी मुठभेड़ की ख़बरें उठाने वाला पत्रकार ही हो सकता है दलाल नहीं। इन्हे तो थानेदार या अन्य पुलिस अधिकारियों की हाँ में हाँ मिलाने वाला और साथ में फोटो खिंचाने वाला, चाय नाश्ता करने या कराने वाला ही पत्रकार लगता है। अरे भाई , चलो मैं मान लेता हूँ कि मैं पत्रकार नहीं हूँ, तो क्या कोई भी मुझे धमकी देने की छूट रखता है? ऐसे हिस्ट्रीशीटर अपराधी से पुलिस के ऐसे कौन से सम्बन्ध हैं जिसके कारण पुलिस आरोपी के बारे में नहीं बल्कि उलटे शिकायतकर्ता के बारे में छन-बीन में उलझी पड़ी है?

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क्या कांकेर पुलिस को मेरी हत्या होने का इन्तजार है?

31 मई को मोबाईल फोन पर जान से मार देने की धमकी देने वाले हिस्ट्रीशीटर बदमाश पर इन्होने महीना बीत जाने के बाद भी कार्यवाही नहीं की है। जबकि मेरे खिलाफ फर्जी रिपोर्ट पर इसी पुलिस को कार्यवाही करने में तीन दिन भी नहीं लगे। मुझे कई बार थाने में बुलाकर प्रताड़ित किया गया। मेरा मोबाइल सिम सहित जप्त कर मेरी गिरफ्तारी की गयी। पर मेरी रिपोर्ट पर मेरे सहित गवाहों को भी सात आठ बार बुलाकर प्रताड़ित किया गया। सभी के फोटो लिए गए पर अब तक सिम और मोबाइल वापस नहीं किया जा सका है। मेरी रिपोर्ट पर कोई कार्यवाही ना होने का कारण जानने जब मैंने सूचना का अधिकार के तहत जानकारी मांगी तो पुलिस बदले पर उतर आयी। जानकारी देने के लिए मुझे थाने बुलाया पर पूरी जानकारी नहीं दी।

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इधर सूचना का अधिकार की जानकारी की कापी लेकर मै जब थाने से बाहर आया तो मुझे धमकी देने वाला थाने से बाहर मेरा इन्तजार कर रहा था। उसने अपनी मोटर सायकिल से मेरे आस-पास चक्कर काटा। इसके पांच मिनट बाद जब मैं बस स्टैंड स्थित एक चाय की दूकान के पास पहुंचा तो वह वहां भी आ गया। उसने मुझे माँ-बहन की गाली दी और कहा कि मेरा गला काटकर ही रहेगा। उसने कहा कि उसे पता है की मैंने थाने में सूचना का अधिकार लगाया है, उसने दावा किया कि थाना और कानून उसका कुछ नही बिगाड़ सकते। मैंने तत्काल कांकेर टीआई दीनबन्धु उईके को फोन लगाया, मैंने उनको घटने की जानकारी दी पर उन्होंने घटना स्थल ठीक थाने के बाहर होने के बावजूद कोई पुलिस जवान भेजने के बजाय मुझे थाने बुलाया। जहाँ मेरे लिखित रिपोर्ट पर मामला दर्ज करने से उन्होंने इंकार कर दिया। उनका कहना है कि जान से मारने की धमकी देना कोई अपराध नहीं है। जान से मारना या कोशिश करना ही अपराध है जब ऐसा होगा तभी वे अपराध दर्ज करेंगे। उन्होने मामूली धाराओं में एनसीआर दर्ज कर मुझे न्यायालय जाने की सलाह दी गयी है। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि सूचना का अधिकार की जानकारी देने के बहाने थाने बुला कर पुलिस मुझे अपराधी से धमकी दिलाना चाहती थी। कांकेर में पुलिस ज्यादतियों के खिलाफ मैंने कई बार ख़बर लिखी है।

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कमल शुक्ला
पत्रकार,
कांकेर (छ.ग.)

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