सुबह ठेला नाश्ते में एक टीवी पत्रकार मित्र मिले. कहने लगे कि तुम टीवी न्यूज़ से नाराज़ क्यूँ हो. मैंने कहा कि नाराज़ नहीं हूँ, दुखी हूँ. अब तुम लोग ना लादेन का पता बताते हो, ना बग़दादी को मारते हो, ना अल-ज़वाहिरी को पकड़ते हो. किम जोंग उन की भी ख़बर नहीं मिलती. भारत अब चीन को पछाड़ता भी नहीं.
अब एलियन दूध भी नहीं पीता, न ही धरती तबाह होती है. रावण की गुफा भी तुम्हारे राडार से ग़ायब है. भूले-भटके अश्वत्थामा से भी मुलाक़ात नहीं कराते. तुम्हारे सुमुखी एंकर-एंकरानियों पर उम्र का असर होने लगा है, वज़न भारी हुआ जा रहा है. स्टिंग करते नहीं हो. सिर्फ़ एक एजेंसी का फूटेज दिखाते हो या सीसीटीवी क्लिप से बहलाते हो. लोगो लगे रंग-बिरंगे माइक भी बहुत कम नज़र आते हैं. बीच में बहस की गर्मागर्मी और मारापीटी से थोड़ा इंटेरेस्ट आया था, वो भी ढीला पड़ा है. माने का देखें!
वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश के. रे इन दिनों प्रभात खबर के दिल्ली ब्यूरो का संचालन करते हैं और न्यूज चैनलों में पैनलिस्ट के बतौर शिरकत करते हैं.