Connect with us

Hi, what are you looking for?

छत्तीसगढ़

राजिम कुंभ : संतों की वाणी से गुंजयमान छत्तीसगढ़

अनादिकाल से छत्तीसगढ़ अनेक धार्मिक प्रसंगों का साक्षी रहा है। छत्तीसगढ़ की महान धार्मिक नगर राजिम की ख्याति महानदी के त्रिवेणी संगम को लेकर है तो इसी छत्तीसगढ़ की धरा पर भगवान श्रीराम के आने के प्रामाणिक तथ्य हैं। शिव के विभिन्न रूपों को आप अलग अलग तरह से देख सकते हैं तो विभिन्न रूपों में देवियां शक्तिपीठ में विराजित हैं। भौगोलिक दृष्टि से नर्मदा नदी का उद्गगम मध्यप्रदेश में दिखता और अमरकंटक भी मध्यप्रदेश के नक्शे में आता है लेकिन यह कभी छत्तीसगढ़ से अलग नहीं हुआ। अनेक धार्मिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक संस्मरणों को तथ्यों के साथ समेटे छत्तीसगढ़ में दर्शन और आध्यात्मक की एक अविरल धारा बहती है जिसमें सतनाम से लेकर बौद्ध सम्प्रदाय के दर्शन होते हैं।

<p>अनादिकाल से छत्तीसगढ़ अनेक धार्मिक प्रसंगों का साक्षी रहा है। छत्तीसगढ़ की महान धार्मिक नगर राजिम की ख्याति महानदी के त्रिवेणी संगम को लेकर है तो इसी छत्तीसगढ़ की धरा पर भगवान श्रीराम के आने के प्रामाणिक तथ्य हैं। शिव के विभिन्न रूपों को आप अलग अलग तरह से देख सकते हैं तो विभिन्न रूपों में देवियां शक्तिपीठ में विराजित हैं। भौगोलिक दृष्टि से नर्मदा नदी का उद्गगम मध्यप्रदेश में दिखता और अमरकंटक भी मध्यप्रदेश के नक्शे में आता है लेकिन यह कभी छत्तीसगढ़ से अलग नहीं हुआ। अनेक धार्मिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक संस्मरणों को तथ्यों के साथ समेटे छत्तीसगढ़ में दर्शन और आध्यात्मक की एक अविरल धारा बहती है जिसमें सतनाम से लेकर बौद्ध सम्प्रदाय के दर्शन होते हैं।</p>

अनादिकाल से छत्तीसगढ़ अनेक धार्मिक प्रसंगों का साक्षी रहा है। छत्तीसगढ़ की महान धार्मिक नगर राजिम की ख्याति महानदी के त्रिवेणी संगम को लेकर है तो इसी छत्तीसगढ़ की धरा पर भगवान श्रीराम के आने के प्रामाणिक तथ्य हैं। शिव के विभिन्न रूपों को आप अलग अलग तरह से देख सकते हैं तो विभिन्न रूपों में देवियां शक्तिपीठ में विराजित हैं। भौगोलिक दृष्टि से नर्मदा नदी का उद्गगम मध्यप्रदेश में दिखता और अमरकंटक भी मध्यप्रदेश के नक्शे में आता है लेकिन यह कभी छत्तीसगढ़ से अलग नहीं हुआ। अनेक धार्मिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक संस्मरणों को तथ्यों के साथ समेटे छत्तीसगढ़ में दर्शन और आध्यात्मक की एक अविरल धारा बहती है जिसमें सतनाम से लेकर बौद्ध सम्प्रदाय के दर्शन होते हैं।

वर्तमान राज्य सरकार के प्रयासों से छत्तीसगढ़ की पावन नगरी राजिम में अर्धकुंभ को मान्यता मिली। पूरे विधि विधान के साथ। लगातार हर वर्ष राजिम में अर्धकुंभ का आयोजन किया जाता है। यह आयोजन महज एक धार्मिक अनुष्ठान न होकर छत्तीसगढ़ का गौरव होता है जिसमें समूचा छत्तीसगढ़ एक पखवाड़े तक धर्म और आस्था में डुबकी लगाकर अपने इहलोक और परलोक को सुधारने का यत्न करता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

महानदी के त्रिवेणी संगम से दुनिया का परिचय कराकर राजिम कुंभ का श्रीगणेश किया। साल-दर-साल राजिम कुंभ की महत्ता और वैभव में श्रीवृद्धि हो रही है। यहाँ का कुम्भ मेला जग प्रसिद्ध हो चुका है, यह मेला माघ मास की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर फाल्गुन मास की महाशिवरात्रि तक चलता है। मान्यता है कि  जगन्नाथपुरी की यात्रा तब तक पूर्ण नहीं होती जब तक राजिम की यात्रा न कर ली जाए। महानदी पूरे छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी नदी है और इसी के तट पर बसी है राजिम नगरी। राजधानी रायपुर से 45 किलोमीटर दूर सोंढूर, पैरी और महानदी के त्रिवेणी संगम-तट पर बसे इस छत्तीसगढ़ की इस नगरी को श्रद्घालु श्राद्घ तर्पण, पर्व स्नान, दान आदि धार्मिक कार्यों के लिए उतना ही पवित्र मानते हैं जितना कि अयोध्या और बनारस को, मंदिरों की महानगरी राजिम की मान्यता है कि जगन्नाथपुरी की यात्रा तब तक संपूर्ण नहीं होती जब तक यात्री राजिम की यात्रा नहीं कर लेता।  अटूट विश्वास है कि यहां स्नान करने मात्र से मनुष्य के समस्त कल्मष नष्ट हो जाते हैं और मृत्युपरांत वह विष्णु लोक को प्राप्त करता है। उल्लेखनीय है कि  वैष्णव सम्प्रदाय की शुरुआत करने वाले महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्मस्थली चम्पारण्य भी यहीं है।

प्रत्येक वर्ष माघ पूर्णिमा से लेकर महाशिवरात्रि तक पन्द्रह दिनों के लिए लगने वाला भारत का पाँचवाँ कुम्भ मेला छत्तीसगढ़ की धार्मिक राजधानी प्रयागधरा राजिम में हर वर्ष लगने वाला कुम्भ है। देश के प्रमुख धार्मिक स्थलों के साथ छत्तीसगढ़ के प्रमुख धार्मिक सम्प्रदायों के अखाड़ों के महंत, साधु-संत, महात्मा और धर्माचार्यों का संगम होता है। जहाँ एक ओर जगतगुरु शंकराचार्य, ज्योतिष पीठाधीश्वर व महामंडलेश्वरों की संत वाणी का अमृत बरसता है। वहीं श्रद्धालुगण दूर-दूर से आकर इनके प्रवचनों का लाभ लेते हैं। इसमें शाही कुम्भ स्नान होता है जो देखने लायक रहता है। नागा साधुओं के दर्शन के वास्ते भीड़ उमड़ पड़ती है। अखाड़ों के साधुओं के करतब लोगों को आश्चर्य में डाल देते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

देश में होने वाले चार कुंभों के अलावा राजिम कुंभ की ख्याति भी दुनिया भर में फैली हुई है। इस प्राचीन नगरी का नाम राजिम क्यों पड़ा, इस संबंध में कहा जाता है कि राजिम नामक तेलिन महिला को भगवान विष्णु की आधी मूर्ति मिली, दुर्ग नरेश रत्नपुर सामंत वीरवल जयपाल को स्वप्न हुआ, तब एक विशाल मंदिर बनवाया। तेलिन ने नरेश को इस शर्त के साथ मूर्ति दिया कि भगवान के साथ उनका भी नाम जुडऩा चाहिए। इसी कारण इस मंदिर का नाम राजिमलोचन पड़ा, जो बाद में राजीव लोचन कहलाने लगा।

कमल फूल की पाँच पंखुड़ी के ऊपर पाँच स्वयं भूपीठ विराजित हैं जिसे पंचकोशी धाम के नाम से जाना जाता हैं। श्री राजीवलोचन भगवान पर कमल पुष्प चढ़ाने का अनुष्ठान है। इन्हीं दिनों से यह पवित्र धरा कमलक्षेत्र के रूप में अंकित हो गया। परकोटे पर लेख के आधार पर कमलक्षेत्र पद्मावती पुरी राजिम नगरी की संरचना जिस प्रकार समुद्र के भीतर त्रिशूल की नोक पर काशी पुरी तथा शंख में द्वारिकापुरी की रचना हुई है, उसी के अनुरूप पाँच कोस का लम्बा चौड़ा वर्गाकार सरोवर है। बीच में कमल का फूल है, फूल के मध्य पोखर में राजिम नगरी है।  शंख, चक्र, गदा, पद्म से आलोकित प्रभु की परम पावनी लीला के कारण इसे पद्मावती पुरी के नाम से नवाजा जाने लगा। बुजुर्गों का कथन है कि इस पद्म सरोवर में स्नान करने से शरीर के रोग नष्ट हो जाते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

राजिम क्षेत्र पंच कोसी क्षेत्र के अंतर्गत आता है। पंचकोसी यात्रा का प्रारम्भ भगवान श्री राजीव लोचन की नगरी युगो-युगो से ॠषि मुनियों, महात्माओं द्वारा सृजित आध्यात्मिक उर्जा से सम्पन्न पतित पावन राजिम नगरी से होता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने गोलोक से सूर्य के समान प्रकाशित पांच पंखुडियों से युक्त कमल पृथ्वी पर गिराया था । पांच कोस के विस्तार से युक्त उक्त कमल के परिधि क्षेत्र के अन्तर्गत भगवान शिव के पांच अधिवास है, जो पंचकोसी के नाम से विख्यात है ।

कुलेश्वर महादेव सोंढूर, पैरी एवं महानदी के त्रिवेणी संगम पर स्थित हैं। इस मंदिर का अधिष्ठान अष्टकोणीय है। मंदिर निर्माण करने वाले वास्तुकार ने नदी के प्रवाह को देखते हुए इसे अष्ट कोण का निर्मित किया। जिससे नदी के प्रवाह से मंदिर को कोई हानि न पहुचे। मंदिर की जगती तल से 17 ऊँची है तथा इसके निर्माण में छोटे आकार के प्रस्तर खण्डों का प्रयोग हुआ है। जगती पर पूर्व दिशा में सती स्मारक है जिसका वर्तमान में साक्षी गोपाल के नाम से पूजन हो रहा है। नदी के तल से मंदिर में पहुचने के लिए 22 पैडिय़ाँ थी, कुछ वर्ष पूर्व नीचे दबी 9 पैडिय़ाँ और प्रकाश में आने पर अब कुल 31 पैडिय़ाँ हो गयी है। यहाँ एक शिलालेख भी लगा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

राजीव लोचन मंदिर से बस्ती के बीच 50 कदम की दूरी पर राम मंदिर है। यह मंदिर भी ईंटों का बना है, इसके स्तम्भ पत्थरों के हैं। अधिलेखों से प्राप्त जानकारी के आधार पर इस पूर्वाभिमुख मंदिर का निर्माण भी कलचुरी नरेशों के सामंत जगतपालदेव ने कराया था। मंदिर के महामंडप में प्रस्तर स्तंभों पर प्राचीन मूर्तिकला के श्रेष्ठतम उदहारण है। इन स्तंभों पर आलिंगनबद्ध मिथुन मूर्तियों के साथ शालभंजिका, बन्दर परिवार, माँ और बच्चा तथा संगीत समाज का भावमय अंकन है। मकरवाहिनी गंगा,  राजपुरुष, अष्टभुजी गणेश, अष्टभुजी नृवाराह की मूर्ति है। मिथुन मूर्तियाँ का शिल्प उत्तम नहीं है। जैसे नौसिखिये मूर्तिकार ने इसे बनाया हो। राम मंदिर के प्रदक्षिणापथ से सम्बंधित प्रवेश द्वार शाखाओं से युक्त है, इनके अधिभाग पर गंगा-यमुना नदी देवियों की मूर्तियाँ हैं, राजिम के किसी भी मंदिर के प्रवेश द्वार में नदी देवियों की मूर्तियाँ नहीं है। राजिम के मंदिरों का शिल्प सर्वोत्तम भव्य एवं बहुत ही सुन्दर है। राजिम मंदिरों का नगर है। राजिम की महत्ता धार्मिक दृष्टि से जितनी महत्वपूर्ण है उतनी ही अपनी स्थापत्यकला को लेकर। राजिम कुंभ के भव्य आयोजन ने जता दिया कि छत्तीसगढ़ महज आदिवासियों का पिछड़ा प्रदेश नहीं बल्कि सांस्कृतिक रूप से सम्पन्न प्रदेश है जहां अवसरों की कमी थी। आज यह कमी भी पूरी हो गई क्योंकि राजिम कुंभ छत्तीसगढ़ की अस्मिता की पहचान बन चुका है।

एक बार फिर छत्तीसगढ़ एक ऐसे बड़े धार्मिक प्रकल्प को पूर्ण करने में जुटा हुआ है जिसमें सबके मंगल की कामना है। छत्तीसगढ़ राज्य के विकास की कामना है, राज्य के नागरिकों की बेहतरी की कामना है और कामना है कि देश तरक्की करता रहे। विश्वास एवं श्रद्धा के इस 15 दिवसीय आयोजन समूचे छत्तीसगढ़ को साल के बचे बाकी दिनों के लिये ऊर्जावान बना देता है। सकरात्मक दृष्टि का विकास करता है और एक नयी सुबह की तरफ ले चलता है जहां सब एकाकार हो जाते हैं। इस आयोजन में सब चीजें ठहर जाती हैं और रह जाता है तो एकमात्र लक्ष्य मानव समाज का कल्याण। छत्तीसगढ़ का यह धार्मिक अनुष्ठान जीवन का एक फलसफा है उस नयी पीढ़ी के लिये जो भौतिक सुविधाओं में डूब रही है। इस युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन करने में यह अर्धकुंभ महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अनामिका की रिपोर्ट.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. Krishna K Singh

    February 19, 2015 at 12:53 pm

    यशवंत जी नमस्कार.

    छत्तीसगढ़ के राजिम में कुंभ के नाम पर सरकार और कुछ छत्तीसगढ़ियां नेता आम जन की भावनाओं के साथ एक गंदा मज़ाक कर रहे है. इस बार मुझे भी जाने का मौका मिला…क्योंकि मै इस समय छत्तीसगढ़ में ही हूं. हद तो तब हो गई जब तमाम साधु-संत सरकार और मंत्रियों को गाली देते नजर आये. शंकराचार्य ने तो रमन सिंह से लेकर कुंभ की शुरुआत करने वाले बृजमोहन अग्रवाल तक को बुरा-भला कहा…साथ ही राजिम कुंभ के औचित्य पर ही कई सवाल खड़े कर दिये.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement