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सुख-दुख

इस ‘रंगीन’ दरोग़ा की अब नौकरी जाएगी!

रवीश कुमार-

जितेंद्र कुमार गौतम ने दारोगा बनने के लिए कितनी मेहनत की होगी लेकिन क्या वे अपनी तैयारी के दौरान यही सपने देखते होंगे कि दारोगा बनने के बाद कैसे पैसे कमाएँगे, किसी को फँसाएँगे और दिवाली की रात किसी महिला को नाचने के लिए कहेंगे?

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क्या जब कोई पुलिस बनने का सपना देखता होगा तो यह सब भी देखता होगा? या पुलिस बनने के बाद यह सब उसके काम का हिस्सा बन जाता है?

सिस्टम किसी ईमानदार को भ्रष्ट करता है या पहले से ही किसी भ्रष्ट को और भ्रष्ट करता है? जो भी पुलिस में हैं इस बात को लेकर सोचिए।

ठीक है कि बहुत से लोग दूसरों को फँसा कर कमा रहे हैं, ऊपर पहुँचा रहे हैं, कुछ का पकड़ा जाना बड़ी बात नहीं है लेकिन क्या आप वाक़ई अपने जीवन के साथ ऐसा चाहते हैं? क्या इन सबके बिना कोई दारोगा या सिपाही नहीं हो सकता?

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