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‘सदानीरा’ भीड़ से अलग पत्रिका है, अबकी ‘बहुभाषिकता’ पर एकाग्र अंक!

दिनेश श्रीनेत-

कुछ पत्रिकाओं का हिस्सा बनना अच्छा लगता है. ‘सदानीरा’ भीड़ से अलग एक ऐसी ही पत्रिका है, जो अपनी विषय-वस्तु और कलेवर दोनों में एक साथ सुरुचिपूर्ण और प्रयोगधर्मी है. इसके पिछले कुछ अंक महत्वपूर्ण रहे हैं और हिंदी के पठन-पाठन में नवाचार जोड़ते हैं.

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‘क्वियर’ पर 2021 में एक अंक निकला. इसके बाद 2022 में ‘एंथ्रोपोसीन’ पर एकाग्र अंक- जो हिंदी ही नहीं अंतरर्राष्ट्रीय विमर्श में भी एक नया शब्द है. इसके बाद टीए एलियट के ‘वेस्टलैंड’ पर केंद्रित और अब ‘बहुभाषिकता’ पर.

जब मुझे जे सुशील की तरफ से इस अंक के लिए लिखने का प्रस्ताव आया तो पहली बार लगा कि बहुभाषिकता अनुभव का इतना गहरा हिस्सा रही है, मगर सजग तौर पर कभी उसके बारे में सोचा ही नहीं. अविनाश और जे सुशील के साझा प्रयासों से आए ‘सदानीरा’ के इस नए अंक में मैंने सिनेमा की बहुभाषिता पर अपनी बात रखी है.

यह अंक भाष्वती घोष, ख़ुर्शीद ईमाम, रामचंद्र गुहा और लुडविग विटगेन्सटाइन समेत कई महवत्पूर्ण रचनाकारों के आलेखों की वजह से महत्वपूर्ण बन पड़ा है.

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