संजय तिवारी-
मैंने न तो कभी सहारा समूह के किसी प्रोजेक्ट में काम किया और न ही उनके द्वारा किये जानेवाले फ्रॉड फर्जीवाड़े का शिकार हुआ। मेरा सहारा से कभी कोई संबंध नहीं रहा लेकिन सुब्रत रॉय मुझे कई मामलों में कुछ अलग व्यक्ति जरूर लगते थे।
जैसे व्यापार को परिवार बनाने का प्रयोग सिर्फ उन्होंने ही किया। खुद को सीईओ या चेयरमैन कहलाने की बजाय सहाराश्री कहलाना पसंद किया। इसी तरह सहारा में कई तरह के ऐसे प्रयोग किये जिससे उस कॉरपोरेट कंपनी की बजाय एक अलग और देशज संस्था की पहचान मिले।
मीडिया समूह भी शुरु किया तो एक जमाने में राष्ट्रीय सहारा एक प्रतिष्ठित अखबार के तौर पर स्थापित किया। सुनते हैं वो रोजमर्रा के काम बहुत दखल नहीं देते थे और पत्रकार को पत्रकारिता करने देते थे।
हालांकि सहारा ने कभी चिटफंड के नाम पर तो कभी सस्ता फ्लैट देने का नाम पर पैसों का ऐतिहासिक फर्जीवाड़ा किया। लेकिन केवल इन फर्जीवाड़ों से ही सहाराश्री का आंकलन नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने जो देशज प्रयोग किये उसकी भी चर्चा जरूर करनी चाहिए।
एक बात और। बिहार में पैदा होनेवाले और गोरखपुर में कारोबार शुरु करनेवाले सुब्रत रॉय का कामकाज भले ही देश विदेश तक फैला लेकिन वो रहते थे लखनऊ में ही। वह भी किसी घर में नहीं बल्कि अपने ही बसाये एक शहर में। ये भी उनका अपना एक अलग अंदाज था। देश में दक्षिण और पश्चिम के पूंजीपतियों का दबदबा है लेकिन उत्तर के एक शहर में बैठकर उसे चुनौती देने का काम भी सहारा श्री ने ही किया।
और भी बहुत सी ऐसी बातें हैं जिसके लिए उनको भविष्य में भी याद किया जाता रहेगा।