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सुख-दुख

सुप्रीत…! तूने निभाई यह कैसी रीति

भारतीय पत्रकारिता इतिहास में जहां तक मेरा खयाल है यह घटना दिल को झिंझोड़ने वाली है। टीवी एंकर सुप्रीत कौर ने पत्रकारिता का मिजाज बदल दिया है। उन्होंने पत्रकारिता धर्म और दायित्वबोध की नई भाषा और परिभाषा गढ़ी है। पत्रकार और पत्रकारिता धर्म को सवालों के कटघरे में खड़े करने वाले लोगों को यह घटना सोचने को मजबूर करेगी और बोलेगी कि चुप रहो ! सवाल मत खड़े करों, उनका दिल रोएगा, जिन्होंने इस मिशन के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया। अपनी बेदना, संवदेना के साथ, उस जीवन साथी को भी जिसके साथ कभी जिंदगी भर साथ निभाने का वादा किया था।

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भारतीय पत्रकारिता इतिहास में जहां तक मेरा खयाल है यह घटना दिल को झिंझोड़ने वाली है। टीवी एंकर सुप्रीत कौर ने पत्रकारिता का मिजाज बदल दिया है। उन्होंने पत्रकारिता धर्म और दायित्वबोध की नई भाषा और परिभाषा गढ़ी है। पत्रकार और पत्रकारिता धर्म को सवालों के कटघरे में खड़े करने वाले लोगों को यह घटना सोचने को मजबूर करेगी और बोलेगी कि चुप रहो ! सवाल मत खड़े करों, उनका दिल रोएगा, जिन्होंने इस मिशन के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया। अपनी बेदना, संवदेना के साथ, उस जीवन साथी को भी जिसके साथ कभी जिंदगी भर साथ निभाने का वादा किया था।

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यह सब कुछ कर दिखाया है छत्तीगढ़ के रायपुर स्थित एक निजी टीवी चैनल की एंकर सुप्रीत कौर ने। वह पत्रकारिता की रोल माडल बन गयी हैं। पत्रकारिता के उन मालिकानों के लिए भी जिनकी निगाह में शायद पत्रकारिता नाम की संस्था और पत्रकार पेशा और पैसा से अधिक कुछ नहीं होता है। लेकिन कौर ने यह साबित किया है कि दायित्व का धर्म और जिम्मेदारियां कहीं अपनों से बड़ी होती हैं। जरा सोचिए, जाने अनजाने ही सहीं, जब सच का उन्हें एहसास हुआ होगा, तो उस महिला ने कैसा महसूस किया होगा। सुप्रीत महासमुंद में सड़क हादसे में मारे गए तीन लोगों के मौत की खबर का लाइव प्रसारण कर रही थी उसी में जान गंवाने वाला एक शख्स हर्षद गावड़े भी थे जो उस महिला एंकर के पति थे।

एंकर ने खुद अपने पति की मौत की खबर प्रसारित किया। यह बात हो सकती है की खबर पढ़ने के पहले सुप्रीत को यह बात मालूम न रही हो। लेकिन आप सुप्रीत की जगह अपने को रख कर देखें। यह घटना दिल को दहला देने वाली है।हलांकि खबर के लाइव प्रसारण के दौरान ही सुप्रीत को आशंका हो गयी थी की उसने किसी अपने को खो दिया है। यह हादसा राज्य के महासमुंद में टक और एसयूपी यानी डस्टर वाहन में हुई थी। जिसमें डस्टर में सवार पांच लोगों में से तीन की मौत हो गई थी। महासमुंद से लाइव टेलीकास्ट के दौरान रिपोर्टर से घटना की सारी जानकारी भी कौर ने हासिल किया था। एंकर की आशंका को उस समय अधिक बल मिला जब पता चला की सभी भिलाई के रहने वाले हैं और पति भी सुबह मित्रों साथ डस्टर वैन से महासमुंद की तरफ निकले थे।

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वैसे वक्त के साथ पत्रकार और उसकी परिभाषा भी बदलती गयी। उसके काम करने का तरीका भी बदला। लेकिन पत्रकारिता की पेशागत अवधारणा आज भी वहीं है जो आजादी के दौर में थी। पत्रकारिता पेशा के साथ-साथ एक धर्म भी है कम से कम उस पत्रकार के लिए जो संबंधित संस्थान के लिए काम करता है। बदलते हुए दौर में पत्रकारिता की साख और उसकी गरिमा सवालों के कटघरे में हैं। चाय-पान की चौपाल से लेकर संसद तक मीडिया और पत्रकारो पर कीचड़ उछालने वालों की भी कमी नहीं है।

आधुनिक भारतीय राजनीति की बदली सोच और परिवेश में लोग पत्रकारों और मीडिया को बिकाउ तक कह डालते हैं। उस पर तमाम तरह के आरोप-प्रत्यारोप लगते हैं। सच्चाई सामने लाने पर जिंदा जला दिया जाता है। हलांकि यह बात कुछ हद तक सच भी हो सकती है। लेकिन इसके लिए सिर्फ पत्रकार उसका काम ही जिम्मेदार और जबाबदेह है ऐसा नहीं, जो पत्रकार और पत्रकारिता के खुद के खबरों के सरोकार तक देखते हुए उनके लिए पत्रकारिता का दायित्व बेहद सीमित होता है। पत्रकार खुद के लिए नहीं समाज और व्यवस्था के लिए जीता और लिखता है। उसकी अपनी चिंता को टटोलने का कभी वक्त भी नहीं मिलता है। लोग उसकी निजी जिंदगी के बारे में बहुत कम पढ़ पाते हैं, इसकी वजह है की वह अपने को अधिक पढ़ना चाहते हैं।

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हम अपनों के खोने की कल्पना मात्र से बेसुध हो जाते हैं। उस स्थिति में हमें अपनी दुनिया का पता ही नहीं रहता है। लेकिन एक औरत जिसका पति इस दुनिया से चला गया और वह खुद पति की मौत का लाइव प्रसारण कर रही थी। यह सब एक आम इंसान के बूते की बात नहीं हो सकती है। पत्रकारिता का इससे बड़ा कोई धर्म हो ही नहीं सकता। यह उस युद्ध रिपोर्टिंग से भी खतरनाक क्षण हैं। महिला एंकर ने पत्रकारिता के जिस धर्म दायित्व निभाया है दुनिया में उसकी मिसाल बेहद कम मिलती है। पत्रकारिता में युद्ध कवरेज सबसे खतरनाक होता है। वहां खुद की जान जाने का हमेंशा खतरा बना रहता है। लेकिन उससे भी बड़ी संवेदनशीलता की बात है जब किसी अपने को खोने का हमें एहसास हो जाए बावजूद इसके हम अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें। किसी महिला के लिए उसका पति कितना अहम होता है, यह एक महिला के सिवाय दूसरा कोई नहीं समझ सकता।

हालांकि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने टीवी एंकर की इस दिलेरी की ट्वीट कर प्रशंसा की है। लेकिन यह काम केवल ट्वीट और खोरी प्रशंसा तक सीमित नहीं रहना चाहिए। पीएम मोदी और राज्य सरकार के साथ पत्रकारिता एवं प्रसारण मंत्रालय की तरफ से उस जांबाज महिला एंकर का सम्मान होना चाहिए। सुप्रीत को पत्रकारिता का सर्वोच्च सम्मान मिलना चाहिए। दुनिया में इस तरह के कार्य के लिए ऐसी संस्थाएं जो काम कर रही हैं इस घटना का संज्ञान उन्हें दिलाया जाना चाहिए। सुप्रीत की पूरी दुनिया उजड़ गयी है। उनके नाम पर पत्रकारिता पुरस्कारों की शुरुवात होनी चाहिए।देश की सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

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सुप्रीत के साथ एक ऐसी याद जुड़ी रहनी चाहिए जिससे पत्रकारिता जगत उस महिला का ऋणी रहे और इस दुनिया में काम करने वाले लोगों को हमेंशा अपने कर्तब्य और दायित्वबोध का ध्यान होता रहे। निश्चित तौर पर समाज को पत्रकारों के प्रति नजरिया बदलना होगा। पूरे देश और दुनिया में सुप्रीत की जांबाजी की प्रशंसा हो रही है। देश की मीडिया में यह खबर सुर्खियां बनी है। पत्रकारिता के दायित्व को उन्होंने जिस तरह निभाया उसके लिए किसी के पास कुछ कहने को शब्द नहीं बचता। सुप्रीत कौर की इस दिलेरी को हम सलाम करते हैं, साथ ही आंसूओं से भिनी एक संवेदना भरी श्रद्धांजलि उस आत्मा के लिए जो इस दुनिया में खोकर अमर हो गई और अपनी उस सुप्रीत को पत्रकारिता इतिहास में अमर कर गई।

लेखक प्रभुनाथ शुक्ल स्वतंत्र पत्रकार हैं. संपर्क : 8924005444

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