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सियासत

यूक्रेन में रूस से लड़ते-लड़ते थक गया अमेरिका!

Prakash K Ray-
@pkray11

अब जब अमेरिका ने साफ़ कर दिया कि यूक्रेन की मदद जारी रखना लगातार मुश्किल हो रहा है और यह अधिक दिन नहीं चल सकता है. वर्षों से अमेरिका के और दूसरे देशों के कई विद्वान कह रहे थे कि नाटो का विस्तार ग़लत है और उसमें यूक्रेन को शामिल करना तो रूस के लिए रेड लाइन होगा. यही अमेरिका अभी हाल तक कह रहा था कि रूस की संपूर्ण हार तक मुक़ाबला होगा.

म्यूनिख़ सिक्योरिटी कॉन्फ़्रेंस में कई साल पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने साफ़ चेतावनी दी थी. फिर भी ओबामा और बाइडेन ने यूक्रेन की निर्वाचित सरकार का तख़्तापलट कर कठपुतली सरकार बनवाई और नाज़ियों को बढ़ावा दिया. नतीजा क्या निकला!

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यूक्रेन हाल तक यूरोप का सबसे बड़ा देश था, पर उसके चार इलाक़ों (लगभग 22 प्रतिशत क्षेत्र) के रूस में विलय के बाद वह फ़्रांस के बाद दूसरे स्थान पर आ गया है. ऐसी संभावना है कि युद्ध इसी तरह जारी रहा, तो निकट भविष्य में क्षेत्रफल के मामले में स्पेन भी यूक्रेन से आगे हो सकता है. अनेक लोगों का आकलन है कि नाटो से सुरक्षा के लिए रूस को कम से कम 45 फ़ीसदी इलाक़ा लेना पड़ेगा. यूक्रेन के सारे समुद्र तटों और अधिकांश खनिज संपदा और बड़े उद्योगों पर आज रूस का क़ब्ज़ा है.

याद करें, समझदारों ने इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान पर अमेरिकी हमलों के ख़िलाफ़ बोला, अनसुना कर दिया गया. लीबिया, सीरिया और यमन को भी तबाह किया गया. क्या मिला?

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फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ भी इज़रायल, अमेरिका और यूरोपीय संघ यही करते आ रहे है. विद्वान फिर चेता रहे हैं कि आज जो हो रहा है, उससे यह समझना भारी भूल होगी कि इज़रायल अधिक सुरक्षित हो जायेगा.

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