Ashish Kumar Anshu-
यह बात एक कॉमरेड मित्र से सुनी थी कि एक व्यक्ति जब युवा होता है। क्रांतिकारी होता है। परिवर्तन की लड़ाई में हिस्सेदार होता है। वह रहे किसी भी संगठन में लेकिन स्वभाव से वामोन्मुख विद्रोही होता है। जैसे जैसे व्यक्ति की उम्र बढ़ती है, उसका रुझान दक्षिण की तरफ होता है। वह जगत को, उसके मिथ्या कहे जाने के दर्शन को बूझने लगता है।
भड़ास फॉर मीडिया के यशवंत सिंह में इन दिनों यह सब घटता हुआ दिखाई दे रहा है। जीवन में उत्तर की तरफ बढ़ते हुए यशवंत क्या दक्षिणोन्मुख हो रहे हैं? सोशल मीडिया पर उनके पोस्ट और उनकी भाषा और व्यवहार में आई तरलता से तो कुछ-कुछ ऐसा संदेश ही मिल रहा है।
दक्खिन खेमा के सक्रिय सदस्य आशीष कुमार अंशु की उपरोक्त पोस्ट पर यशवंत की प्रतिक्रिया पढ़ें-
Yashwant Singh- मुझे पहले लगता था कि बुजुर्ग होना बेकार चीज है… अब लगता है कि इस उम्र तक न आया होता तो ये सब नया नया अनुभव कैसे होता.. नई नई धारणाएं कैसे निर्मित होतीं… ब्रह्मांडों के रहस्य-रोमांच जाल में अकथ -अनजान से घिरा मानव उम्र बढ़ने के साथ साथ ज्यादा रिसीव करने की स्थिति में होता है क्योंकि तब तक वह परंपरागत स्कूलिंग से मुक्त हो चुका होता है… तब तक वह समाज देश परिवार संगठन द्वारा आरोपित धारणाओं से निकल चुका होता है… वह मौलिक तरीके से कनसीव करने लगता है वाइब्रेशंस को… मतलब मौलिकता जरूरी है… आईटी सेल वाला भक्त न बूझ पाएगा न लाल लिंगोटा छाप इसे समझ पाएगा… मौलिकता बहुत रेयर चीज है आज के ग्लोबली स्पांसर्ड कम्युनिकेशन के जमाने में… जैजै