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सुख-दुख

ये दुनिया एक कंप्यूटर प्रोग्राम है, सुख दुःख ख़ुशी गम सब कुछ केमिकल लोचे मात्र हैं

ये दुनिया एक कंप्यूटर प्रोग्राम है… MATRIX RELOADED… LIGHT यानी प्रकाश की गति अद्भुत है. इन फैक्ट सिर्फ एक सेकंड में… आपको पलक झपकाने में लगे समय के अंदर… लाइट इस पृथ्वी के चक्कर लगा सकती है. 7 बार!!! Impressive प्रकाश की गति 299792 Km/Sec ब्रह्माण्ड की सबसे तेज गति है… इससे तेज गति कर पाना ब्रह्माण्ड में किसी भी चीज के लिए संभव नहीं है. लेकिन मेरा सवाल है. WHY? लाइट की गति… 5 लाख km/sec क्यों नहीं? या… लाइट की स्पीड 10 लाख/sec क्यों नहीं है? Ok… Now We Are Getting Somewhere !!!

ऐसा इसलिए नहीं है कि हमारे यन्त्र इस गति से तेज गति को नहीं नाप सकते. बल्कि ऐसा इसलिए है.. क्योंकि ये ब्रह्माण्ड का ही फंडामेंटल स्ट्रक्चर है जिस कारण… प्रकाश से तेज गति की कल्पना करते ही… ब्रह्माण्ड के सभी नियम टूट जाते है… और ब्रह्माण्ड Collapse हो जाता है. क्योंकि शायद… इन नियमों में ही… ब्रह्माण्ड का एक महान सत्य छुपा हुआ है. अपने घर के बाहर पार्क में इस पोस्ट को लिखते हुए… अक्सर पार्क में बने हुए खूबसूरत फाउंटेन यानी पानी के फव्वारे पे ध्यान चला जाता है. फाउंटेन को देखना बेहद खुशनुमा एहसास है… लेकिन… एक मिनट के लिए मान लीजिये अगर हम… फव्वारे को किसी शक्तिशाली माइक्रोस्कोप की सहायता से देख रहे होते तो? तो शायद प्रकृति के इस खूबसूरत करिश्मे की जगह… हम हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के अणुओं का प्रवाह देख रहे होते जो शायद इतना खूबसूरत नहीं होता.

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कुछ चीजे है… जो मुझे हमेशा परेशान करती है. जैसे कि… ये दुनिया अणुओ, परमाणुओ से क्यों बनी है? हमारी आँखे परमाणुओ को क्यों नहीं देख पाती? क्यों हमें लिमिटेड सेन्सस के साथ पैदा किया गया है… जिससे हम नंगी आँखों इस इस सृष्टि को इसके मूल स्वरुप में नहीं देख पाते? आपके चाय बनाने से लेकर… सूर्य में संपन्न हो रही नाभिकीय प्रक्रिया तक एक ब्रेड टोस्ट बनाने से लेकर… हाइड्रोजन एटम से आयरन बनने की प्रक्रिया तक ब्रह्मांड का हर कण… हर क्रिया… कणो की प्रकृति पूर्व निर्धारित क्यों है? Why So Much Physics & Chemistry In Life?

well… दुनिया बनाने वाला तो “आबरा का डाबरा” बोल के भी दुनिया बना सकता था तो उसने ऐसी दुनिया क्यों बनाई… जहा कण कण एक पूर्वनिर्धारित प्रक्रिया अर्थात… “प्रोग्राम” का अनुसरण करता है और ईश्वर का दिमाग समझने के लिए… इस प्रोग्रामिंग को समझने के लिए… हम अक्सर पदार्थ के अंदर झांकते हैं Like….अणु… परमाणु… इलेक्ट्रॉन… प्रोटान… क्वार्क… और अंत में पदार्थ गायब हो जाता है, रह जाते है तो सिर्फ… कंप्यूटर कोड्स !!!!

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जी हाँ… दुनिया के कण कण के मूल में और कुछ नहीं… बाइनरी डिजिट्स में एक्सप्रेस होने वाले अर्थात 0 और 1 की भाषा में… कंप्यूटर कोड्स मिलते हैं जो साफ़ साफ़ कहते हैं कि… ये दुनिया…. एक कंप्यूटर प्रोग्राम है. MATRIX | PROGRAMME | SIMULATION. सीट बेल्ट बाँध लीजिये. आज मैं आपको कुछ ऐसे तथ्य बताउगा… कि अगर आप सामान्य भौतिकी का ज्ञान भी रखते है तो आप खुद कहेगे कि… ये दुनिया कंप्यूटर प्रोग्राम है

1: FINITE SPEED OF LIGHT
प्रकाश से हम सब भली भाँति परिचित है… लेकिन वास्तव में प्रकाश होता क्या है? देखा जाए तो… प्रकाश ब्रह्माण्ड के दो कणो के बीच इनफार्मेशन पहुचाने का कार्य करता है चाहे देखने के लिए प्रकाश का इस्तेमाल हो.. या इलेक्ट्रिसिटी… या इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड… दुनिया के हर काम में… दो चीजे आपस में फोटॉन का एक्सचेंज करती है अर्थात… लाइट ब्रह्माण्ड में “Information Processing” का कार्य करती है. अब आपके मोबाइल की स्क्रीन पर आते हैं… हर वर्चुअल रियलिटी अथवा डिजिटल प्रोजेक्शन पिक्सल से मिल कर बनी होती है… पिक्सल से छोटा कुछ नहीं हो सकता Luckily… हमारा ब्रह्माण्ड भी Pixelated है… और एक पिक्सल का साइज़ 1.616199*10^-35 होता है… अर्थात 0.00000000000000000000000000000000016 मीटर!!!! ब्रह्माण्ड की इस सबसे छोटी दूरी की यूनिट को हम “प्लांक डिस्टेंस” के नाम से जानते हैं. किसी भी प्रोग्राम में एक पिक्सल को प्रोसेस करने के लिए मिनिमम टाइम लगता है. Luckily हमारे ब्रह्मांड में भी समय की सबसे छोटी इकाई होती है… यानी .00000000000000000000000000000000000000000005 सेकण्ड्स या… 5.39*10^-44 सेकण्ड्स जिसे हम… “प्लांक टाइम” के नाम से जानते है. किसी भी सॉफ्टवेयर गेम में एक पिक्सल को प्रोसेस करने में लगा मिनिमम समय… उस सॉफ्टवेयर की “मैक्सिमम प्रोसेसिंग स्पीड” कहलाती है. हमारे ब्रह्माण्ड में… सबसे छोटे पिक्सल को प्रोसेस करने में लगे सबसे छोटे समय का अनुपात निकाल जाए अर्थात…. प्लांक डिस्टेंस/प्लांक टाइम 1.616199×10^−35/5.39106×10^−44 तो हमारे पास जवाब आता है 299792 !!!! Whoaaa… Speed Of Light !!!. अर्थात… हमारे ब्रह्माण्ड में लाइट मैक्सिमम स्पीड इसलिए है क्योंकि… ये ब्रह्माण्ड के सॉफ्टवेयर प्रोग्राम के ट्रांसिस्टर्स की अधिकतम गति है !!! HENCE PROVED !!!!

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2: TIME DILATION
हम सभी जानते है कि… अधिक द्रव्यमान वाले पिंड.. जैसे ब्लैक होल्स के आस पास… समय की गति बहुत कम.. अथवा शून्य हो जाती है लेकिन कैसे? पदार्थ विज्ञान इस बात का जवाब कभी नहीं दे सकता लेकिन… बहुत ज्यादा मैटर एक जगह एकत्रित होने के कारण… अगर ब्लैक होल को एक हैवी फ़ाइल मान लिया जाए तो… इसकी आसानी से व्याख्या हो सकती है Or To Be Simple एक कंप्यूटर में.. हैवी फाइल्स के आस पास हमेशा प्रोसेसिंग… स्लो अथवा लगभग शून्य…हो…जाती… है !!!!! यही कारण है कि सदियो से “ग्रेविटी” के स्त्रोत की तलाश में घूम रहे वेज्ञानिकों को… ऐसा कोई स्त्रोत मिला ही नहीं क्योंकि… ग्रेविटी कोई फ़ोर्स है ही नहीं बल्कि…ग्रेविटी ब्रह्माण्ड के कणो की प्रोसेसिंग से उत्पन्न एक “यूज़फुल बायप्रोडक्ट” मात्र है. Gravity Is Simply Not Real But An Illusion Only !!!

3: A UNIVERSE FROM NOTHING
चाहे प्राचीन ऋषियो का चिंतन हो या आधुनिक वैज्ञानिकों के निष्कर्ष, एक बात पर दोनों सहमत है कि ये ब्रह्माण्ड शून्य से उत्पन्न हुआ है. This Universe Came Out Of Nothing!!! पर ऐसा कैसे संभव हो सकता है? प्राचीन ऋषियों ने इसे… परमेश्वर की इच्छा का परिणाम कहा लेकिन 21वी सदी में अवतरित एक महान संत विजय कुमार झकझकिया के अनुसार… परमेश्वर की इच्छा और कुछ नहीं… ब्रहमाण्ड के सर्किट का पॉवर बटन “ON” होना था Yeah… किसी भी सॉफ्टवेयर में इलेक्ट्रॉन्स शुन्य आयाम में ही होते है जब तक प्रोग्राम चालु ना किया जाए और प्रोग्राम के on होते ही…. You Have A Universe… Which Popped Out Of “NOTHING” !!!

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4: QUANTUM ENTANGLEMENT
विज्ञान द्वारा सत्यापित है कि… इस ब्रह्माण्ड का एक कण.. दूसरे कण को प्रभावित कर सकता है Faster Than Light भले ही दोनों कण ब्रह्माण्ड के दो अलग अलग कोनो पर हो How This Is Possible Even? Well… पॉसिबल है. अपनी कंप्यूटर स्क्रीन देखिए. स्क्रीन के सबसे टॉप पर मौजूद पिक्सल… और सबसे नीचे मौजूद पिक्सल… के बीच की दूरी “एक स्क्रीन” है लेकिन… दोनों पिक्सल्स की… कंप्यूटर के कमांड सेंटर से दूरी… समान है !!! इस तरह.. ब्रह्मांड एक इकाई है, हमारे बीच दूरियां हो सकती है लेकिन.. ब्रह्माण्ड की परम चेतना “UNIVERSAL CONSCIOUSNESS” हम सभी के समानांतर रहती है. एक हाइड्रोजन एटम के भी खरबवे के अरबवें हिस्से के बराबर दूर मौजूद “समानांतर आयाम” में. इस विषय पर विस्तृत टॉपिक “ब्रह्माण्ड की परम चेतना” फिर कभी.  इसी कारण… Quantum Entanglement जैसी घटनाएं इस ब्रह्माण्ड में संभव है.

5: DEFORMED HUMANS
कुछ बच्चे…जन्म से विकृत क्यों हो जाते है? क्या प्रकृति अपने आप में परिपूर्ण नहीं? बिलकुल.. ऐसा ही है कोई भी प्रोग्राम परफ़ेक्ट नहीं होता और प्रोग्रामिंग में किसी भी फाइल्स का करप्ट हो जाना है नार्मल बात है तो दूसरे शब्दों में ये विकृत बच्चे और कुछ नहीं… नेचर की प्रोग्रामिंग एरर मात्र है!!! और भी दर्जनों ऐसे कारण है… जिनके बल पर ब्रह्माण्ड को एक प्रोजेक्टेड रियलिटी सिद्ध किया जा सकता है… पर वे इतने टेक्निकल है कि उन्हें लिख कर मैं आपका दिमाग ही खराब करूँगा इसलिए… कुछ बिन्दुओ को मैं छोड़ रहा हूँ… जिन्हें मैं अपनी किताब (अगर लिखता हूँ तो) में इस्तेमाल करना चाहूंगा. अब सवाल ये उठता है… कि पदार्थ तक तो ठीक है पर.. क्या हमारी चेतना… हमारे एहसास, सुख दुःख को प्रोग्राम किया जा सकता है? मेरी बीवी को किस करते वक़्त… जिस सुख की अनुभूति मुझे होती है वो प्रोग्राम नहीं हो सकता !!! Oh Really? आपकी चेतना… आपके एहसास… सुख दुःख आनंद.. भी और कुछ नहीं… इलेक्ट्रो केमिकल रिएक्शन से बने सर्किट मात्र है. जब आपने अपनी बीवी को किस किया.. तो आपको बेशक अच्छा एहसास हुआ हो लेकिन उस वक़्त आपका दिमाग “डोपेमिन” नामक केमिकल आपके सर्किट में रिलीज कर रहा था बेशक आप अपने दिल को अपने हर एहसास के लिए जिम्मेदार माने पर वास्तव में…आपके सुख, दुःख, ख़ुशी, गम सब कुछ आपके दिमाग में चल रहे केमिकल लोचे मात्र हैं.

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आपके दिमाग की चेतना ब्रह्माण्ड से इतर कोई अलग ऊर्जा नहीं… बल्कि आपको भ्रम में डालने के लिए “लिमिटेड सेंस” के साथ डिज़ाइन किया एक प्रोग्राम मात्र है. इस प्रोग्राम को बिलकुल तैयार किया जा सकता है. Artificial Intelligence !!! मैने जैसा कि अपने पूर्व प्रकाशित टॉपिक “Matrix-1 “You Live In Simulation” में कहा था कि हम आलरेडी एक सेकंड के लिए मानव चेतना को सिमुलेट करने में सफल रहे है. इन फैक्ट अगर हम 10^16 ऑपरेशन्स प्रति सेकंड अंजाम दे पाये तो हम आसानी से एक चेतनशील वर्चुअल ब्रेन बना सकते है और अगर हम 10^36 ऑपरेशन्स प्रति सेकंड अंजाम दे पाये तो… हम पृथ्वी जैसा एक डिजिटल ग्रह तैयार कर सकते है. करना सिर्फ ये है कि हम एक वीडियो गेम तैयार कर के… उसमे मौजूद करैक्टर को लिमिटेड सेन्सस वाली चेतना के साथ डिज़ाइन करे.. तो वीडियो गेम में मौजूद वो इंसान हमारी तरह सोचेगा वीडियो गेम में मौजूद पृथ्वी को अपना घर समझेगा.. और हमेशा अपने अस्तित्व को लेकर परेशान रहेगा और कंप्यूटर्स की हर वर्ष बढ़ती गति को लेकर एस्टिमटेड है कि… मिनिमम 2042 और मैक्सिमम सन 2192 वो वर्ष होगा जब हम इंसान… खुद के वर्चुअल ब्रह्माण्ड बनाने में सफल हो जायेगे अगर ऐसा कभी संभव हो पाया तो… क्या ये सबसे बड़ा प्रमाण नहीं कि… हम खुद एक कंप्यूटर प्रोग्राम में है? हम इंसान भी और क्या हैं?

फंडामेंटल लेवल पर… आपका शरीर भी इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स से बना हुआ एक जाल मात्र है… जो अपने आस पास मौजूद बाइनरी डिजिट्स को पढता है… उनसे इंटरैक्ट करता है… उन बाइनरी डिजिट्स को खाता पीता और जीता है. For Example… Water !!! पानी… इसलिए पानी प्रतीत होता है क्योंकि… हमारा दिमाग एक निश्चित फ्रीक्वेंसी को पढ़ के उसे हमें पानी रूप में दर्शाता है लेकिन… पानी और आपके पैर में पहने जूते में क्या अंतर है? आपके अनुसार काफी अंतर हो सकता है लेकिन फंडामेंटल लेवल पर… आपके जूते और पानी में… सिर्फ इतना फर्क है कि… आपके जूते को बनाने वाली एनर्जी स्ट्रिंग्स की वाइब्रेशन फ्रीक्वेंसी अर्थात बाइनरी डिजिट संख्या… पानी से भिन्न है अर्थात… दुनिया की हर चीज में मूलभूत अंतर सिर्फ इतना है कि… हर चीज में प्रति सेकंड वाइब्रेशन की संख्या अलग अलग होती है जिन वाइब्रेशन को पढ़ के… आपका वाइब्रेशन रीडर ब्रेन… आपको अलग अलग चीजो का एहसास कराता है. Everything Around Us Are Vibrating Strings… Life Is So Digital! क्या पता… पूर्व में किसी एडवांस एलियन सभ्यता ने… हमारे लिए इस ब्रह्मांड रुपी वीडियो गेम को डिज़ाइन किया हो और क्या गारंटी है कि.. जिस सभ्यता ने ये किया हो… वो खुद किसी वीडियो गेम का हिस्सा नहीं हो?

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स्वप्न के भीतर… स्वप्न… की अनंत परते हो सकती है अंतिम परत… परम सत्य तक पहुचना शायद संभव नहीं है (और शायद संभव हो भी सकता है). खैर… इस ब्रह्मांड के प्रोग्राम होने पे अधिकतर वैज्ञानिक सहमत हो सकते है लेकिन… एक चीज है जो संभव नहीं दिखती कि.. किसी भी एडवांस एलियन सिविलाइज़ेशन के पास इतनी कंप्यूटिंग पॉवर नहीं हो सकती कि.. 8 अरब मानवो और 94 अरब प्रकाश वर्ष लंबे इस ब्रह्माण्ड को प्रोग्राम किया जा सके. ओके… किसने कहा कि ये ब्रह्माण्ड… 94 अरब प्रकाश वर्ष लंबा है? हो सकता है कि… इस आकाशगंगा के बाहर दिखाई देने वाला ब्रह्माण्ड फेक हो!!! Just An Illusion!!! हो सकता है कि… रात के आसमान में झिलमिलाते ये असंख्य तारे किसी फ़िल्म का प्रोजेक्शन मात्र हो !!! और…किसने कहा कि दुनिया की पापुलेशन 8 अरब है May Be… All Of Them Are Not Real !!!

आप सभी ने एक बेहतरीन वीडियो गेम “VICE CITY” अवश्य खेला होगा… जिसमे एक शहर की सड़को पर भटक रहे नायक का लक्ष्य अपनी मंजिल तक पहुंचना होता है अपने इस सफ़र में नायक.. सड़कों पर आ जा रहे दर्जनों Fake लोगों को देखता था पर नायक से इंटरेक्शन की सूरत में वे लोग… रियल हो जाते थे. अब मैं जो कहने जा रहा हूँ उसे कुर्सी पकड़ के पढ़िए. अपना मोबाइल सामने मेज पे रख दीजिये और… एक मिनट के लिए आँखे बन्द कर लीजिये. एक मिनट के बाद आँखे खोलिए. Done? तो साहेबान… जब आपकी आँखे बन्द थी… तो आपका फोन कहाँ था? क्या कहा? सामने मेज पर? नहीं… आपका फोन मेज पे नहीं था बल्कि… ऊर्जा बन कर अदृश्य हो गया था. जैसे ही आपने आँखे खोली… वैसे… ही आपकी चेतना का संपर्क मोबाइल के अणुओ से होते ही… मोबाइल स्थूल रूप प्रकट हो गया!!

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I Know… आप सोच रहे है कि मेरे दिमाग का कोई सर्किट हिल गया है लेकिन… Unfortunately… आप गलत हैं. ब्रह्मांड में मौजूद सभी कण क्वांटम-ली वेव रूप में… सुपर पोजीशन स्टेट में मौजूद रहते है… पदार्थ रूप में तभी प्रकट होते है जब… कोई इन्हें… देख रहा हो !!! ये बात… प्रयोगशाला में हजारो बार प्रमाणित है! “Observer Effect” पर वेव फंक्शन collapse हो के पदार्थ के रूप में प्रकटीकरण इतने सूक्ष्म समय में होता है… कि ये हमारी मानवीय इन्द्रियों के परे है.  इस विषय पे अलग पोस्ट जल्द.

तो साहेबान… हो सकता है कि… किसी स्मार्ट एलियन सभ्यता ने आपको भ्रम में रखने के लिए फेक लोगों का भी निर्माण किया हो Lets Say…999 Fake For Every Real Person!!! सड़कों पर आते जाते जिन हजारो लोगो को आप देखते हैं शायद….वे सभी वास्तविक ना हो पर जैसे ही आप किसी से इंटरेक्शन करते हैं वैसे ही वो इंसान एक्टिवेट हो जाता है. एक जिंदगी की कहानी के साथ. So Funny Enough. कल सुबह जब आप ऑफिस जाने के लिए सड़क पार कर रहे हो तो…. सड़क पर गुजरती भीड़ को देख… एक सवाल खुद से पूछियेगा कि… WHO ARE YOU??? क्या आप वो एक इंसान है… जिसके लिए सड़क पर मौजूद 999 लोगो को बनाया गया है Or May Be… You Are A Part Of Those 999. Who Think…….They Are Real!

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लेखक विजय सिंह ठकुराय फेसबुक पर ब्रह्मांड और विज्ञान को लेकर हिंदी में मौलिक लेखन करने वाले बेहद लोकप्रिय शख्सियत हैं. उनका यह लिखा उनके फेसबुक वॉल से साभार लेकर भड़ास पर प्रकाशित किया गया है.


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…तब हमारा ब्रह्माण्ड लिंग नुमा सुरंग में धंसते हुए निकटवर्ती ब्रह्माण्ड में समाहित हो जाएगा!

xxx

13 अप्रैल 2029 की सुबह धरतीवासियों की जिंदगी की आखिरी सुबह होगी अगर 350 मीटर लंबा उल्का पिंड टकरा गया

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