जितेंद्र कुमार-
हमारे अपने बद्री नारायण तिवारी पिछले 9 वर्षों से लगातार कहर ढ़ा रहे हैं. गोयनका के अखबार इंडियन एक्सप्रेस में आज प्रो तिवारी ने फतवा दे दिया है कि महात्मा गांधी के बाद अगर किसी राजनेता ने जनता में अपने विजन को घुसपैठ करवाया है वह मोदी है, नेहरू भी नहीं!
जब से मैं होश संभाला हूं मैं सिद्दत से मानता रहा हूं कि भारत जैसे सामन्ती, जातिवादी व गरीब देश में सिर्फ दो चीजों से परिवर्तन आ सकता है, वे हैं- शिक्षा और संघर्ष. लेकिन बद्री नारायण तिवारी के इस लेख ने मेरे विश्वास को तार-तार कर दिया है! बद्री तिवारी ने जिस रुप में पढ़ा-लिखा होने को झूठलाया है, वह लिजलिजापन से ज्यादा बेहयापन कहलाता है. आखिर हम खुद क्यों पढ़ते हैं और अपने बच्चों या किसी और को पढ़ने-लिखे के लिए क्यों कहते हैं? इसलिए कि वह न सिर्फ बेहतर इंसान बने बल्कि सोचने-समझने का विवेक पैदा हो, सही-गलत का फैसला कर पाए या कह पाए!
लेकिन नरेन्द्र मोदी को गांधी के बराबर खड़ा कर देना और पंडित जवाहरलाल नेहरू से बड़ा कह देने को किसी भी रुप में पढ़ा-लिखा होना मुनासिब है क्या? पढ़ाई तो विवेकवान बनाता है, लेकिन तिवारी तो विवेकशून्यता का शिकार हो गया है. फिर पढ़ने-पढ़ाने का क्या अर्थ रह जाता है? क्या मुझे अपनी सोच व विश्वास पर पुनर्विचार करना चाहिए?
अभी इतना ही, बद्री के इस लेख को देखकर मन विचलित है. आप भी इस लेख को पढ़िए और विचारिए कि बद्री तिवारी ने क्या लिखा है?