अखिलेश सरकार के प्रभावशाली मंत्री पर शाहजहांपुर के एक ईमानदार पत्रकार जागेन्द्र सिंह को खरीदने में विफल रहने पर पुलिस के हाथों उसे जिन्दा फूंकवाने का आरोप था जिसकी निष्पक्ष जाँच सीबीआई से कराने के लिए मैंने सर्वोच्च न्यायालय से अर्जी देकर माँग की थी। पर उसे न्याय नहीं मिला और जाँच के नाम पर स्थानीय पुलिस ने सिर्फ लीपापोती कर अन्तिम रिपोर्ट में सबको बरी कर दिया जबकि जागेन्द्र ने खुद अपने मृत्युपूर्व बयान में इस जघन्य कांड के लिए मंत्री और पुलिस के बीच नापाक साजिश को बेनक़ाब किया था।
भारतीय जनता पार्टी के तमाम प्रवक्ताओं ने लखनऊ से लेकर दिल्ली तक सभी चैंनलों पर ये घटना उठा कर सीबीआई जाँच की मांग की थी क्योंकि हत्या का आरोप स्थानीय पुलिस पर था इसलिए उससे निष्पक्ष विवेचना की उम्मीद रखना बेमानी थी। अखिलेश सरकार ने अपनी छवि और धूमिल होने से बचाने के लिए पीड़ित परिवार का मुंह अपेक्षा से अधिक राशि देकर बन्द कर दिया पर इससे जागेन्द्र को तो न्याय नहीं मिला।
जागेन्द्र का परिवार तो घटना के समय उसके साथ था नहीं और वहाँ से करीब 80-90 किलोमीटर दूर खुटार नामक पैतृक गांव में था फिर उसकी गवाही पर केस में अन्तिम रिपोर्ट कैसे लगाई जा सकती है? फिर क़ानूनन जागेन्द्र के मृत्युपूर्व बयान को झुठलाने के कोई साक्ष्य सामने नहीं आए तो यह अन्तिम रिपोर्ट सिर्फ पूर्व मंत्री को बचाने के लिए दबाव में की गई कार्रवाई से ज्यादा कोई मायने नहीं रखती।
सारा मामला आज भी रहस्य के घेरे में है जिसकी जाँच सीबीआई से होनी चाहिए साथ ही उन अवैध खनन, सार्वजनिक वितरण प्रणाली में घोटाले, भूमि पर अवैध कब्जों की भी पड़ताल होनी चाहिए जो जागेन्द्र सिंह ने बतौर पत्रकार जनता से सामने लाए थे। नए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उम्मीद है कि इस मामले का सच उजागर करने के लिए इस काण्ड की निष्पक्ष विवेचना सीबीआई से कराने का निर्णय जनहित में करेगें ताकि जागेन्द्र को इंसाफ़ मिल सके और उसकी आत्मा को शान्ति। ओउम शान्ति, शान्ति शान्तिः।
लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार मुदित माथुर की एफबी वॉल से.