११ अगस्त / २०१५ को मेरी जिंदगी में जबरदस्त भूचाल आया। एक नई जिम्मेदारी के साथ सूर्योदय हुआ। राजा सिकंदर भी खाली हाथ आए थे, और खाली हाथ ही दुनिया से पर्दा कर गए। शायद उस रोज़ भी कायनात को मेरे अब्बू का जिंदा रहना नागवार गुज़रा हो! वे फेफड़े के कर्क रोग के चलते इंतकाल फरमा गए। दुनिया का नियम है, जीवन और फिर उसका मृत्यु। कोई अमर नहीं हैं।
अब्बाजान ने तो मरकर कब्र में मलैकुल मौत को जवाब दे दिया। लेकिन ईनाडु डिजिटल के खास तीन अधिकारी (प्रसनजीत रोय-जीएम, अजीज़ अहमद खान-डिआई, मुरलीधर बंदारू-एचआर) ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा। वे लगातार मेरी तमीज का कमीज़ उतारते रहे! मेरी कानूनी नोटिस के जवाब में भी उन्होंने गलत जवाब दिया। आइए एक हकीकत से रूबरू करवाता हूं।
इन अधिकारीगण का कहना है मेरे अब्बू की बीमारी के वक्त उन्होंने मुझे वित्तीय मदद की थी। हद है! इन लोगों को ये झूठा दावा करने में जरा भी शर्म नहीं आई। जनाब मैंने तो आप लोगों के सामने कभी अपनी झोली नहीं फैलाई। तो आपको इलहाम कैसे हुआ कि मुझे मदद की जरूरत है! किस माध्यम से आपने मुझे भुगतान किया?
कैश, चेक, डीडी, मनी आर्डर, नेट बैंकिंग, क्रेड़िट कार्ड, पोस्टल आर्डर, बैंक चलन, आंगड़िया पीढ़ी, हवाला या आप तीनों स्वयं पैसों की बोरी मेरे घर उड़ेल गए थे? अगर किया है तो प्रमाण दें। आपकी रहम का नकली बोझ मुझसे उठाया नहीं जा रहा।
पीड़ित कंटेंट एडिटर
ज़हीर भट्टी
नोट : संलग्न प्रति
१. अगस्त २०१५ पगार स्लिप
२. ईनाडु की जवाबी नोटिस का एक हिस्सा
मूल खबर…