बड़ी उम्मीदें जगी थीं कि मीडिया लाइन में आकर कुछ नया नया करूंगी. लेकिन इसका आभास मुझे नहीं था कि यहां तो व्यक्ति का बैकग्राउंड पॉवर और रिफ्रेंस चलता है. मेरे कहने से मेरे पैरेंट्स ने भी किसी तरह से पैसे इकट्ठा करके मेरे सपने में अपने सपने जोड़ दिए और अपनी दिन रात की मेहनत को मेरे ऊपर लगा दिया. संघर्षों का सामना करते हुए जब मैंने मास कम्यूनिकेशन पूरा किया तो कोई मुझे जॉब देने के लिए कोई तैयार नहीं.
जहां भी इंटरव्यू के लिए जाती तो पहला सवाल यही होता कि किसके रिफ्रेंस से आई हो. मेरा तो कहीं कोई रिफ्रेंस नहीं है अगर पता होता इस फील्ड में योग्यता की अपेक्षा रिफ्रेंस चलता है तो मैं अपने सपने को तोड़ देती और मॉस कम्यूनिकेशन नहीं करती.
किसी तरह से मुझे वेबसाइट में काम करने का मौका मिला. मैंने एक साल वहां मन लगाकर काम किया. किसी को काम को लेकर मुझसे कोई शिकायत नहीं थी. पर वह कंपनी बंद हो गई. इसके बाद किसी तरह से एक और वेबसाइट में काम मिला वहां भी किया लेकिन वहां भी वही हुआ.
ऐसा नहीं है कि मुझे काम का अनुभव नहीं है. मैंने दैनिक जागरण से इंटर्नशिप की. इसके बाद कानपुर के ही न्यूज चैनल में तीन महीने की इंटर्नशिप की. लेकिन जॉब देने के लिए उनसे कहते हैं तब बैकग्राउंड पॉवर पूछते. मैं बता दूं कि मेरे पैरेंट्स ने किसी तरह से मुझे काबिल बनाया, यही कम है क्या मेरे लिए. बैकग्राउंड मैं बना लूंगी, मुझे मौका तो दीजिए. मेरे शुभचिंतक जो हैं उनका कहना है कि मैं ब्राम्हण हूं तो मुझे आसानी से जॉब मिल जाएगी, अगर ऐसा होता तो इतनी मेहनत करने के बावजूद मैं भटकती नहीं.
अभी हाल ही एक न्यूज पेपर में गई जहां मेरा इंटरव्यू अच्छा हुआ लेकिन जब मैंने सैलरी की बात की तो वहां के संपादक जी ने मेरा मनोबल गिराते हुए कहा कि पहले पापा क्या करते हैं, मैंने भी बता दिया. फिर उन्होंने हमसे कहा बैकग्राउंड पॉवर मजबूत नहीं है तुम्हारा इसलिए पहले इतनी सैलरी पाने के योग्य बन जाओ. मैंने तो इतनी सैलरी की मांग नहीं की थी जितना उन्होंने मुझे सुना दिया.
सभी जगह मैं रिज्यूम लगा लगाकर थक गई हूं. क्या मुझे जॉब मिलेगी..? भड़ास प्लेटफॉर्म के जरिए मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूं कि जिनका रिफ्रेंस और बैकग्राउंड पॉवर नहीं होता, सपने उनके भी होते हैं जिन्हें वह पूरा करना चाहते हैं.
Vandana Pandey
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प्रकाश
January 21, 2019 at 5:29 am
मीडिया में सबसे बड़ी भृष्टाचार की दीमक लग रखी है…नेताओं के इशारे पर चलने वाले तमाम मीडिया प्लेटफार्म में सपने पूरे नहीं बल्कि सपने तो चूर चूर किये जाते हैं…खबरों को रोकने के ऐवज में पैसा ऐंठने वाले तमाम मीडिया मगरमच्छ ये वो दलाल हैं, जिनके कारण आज देश 21वीं सदी में पिछड़ता जा रहा है…नेता नहीं बल्कि देश को खोखला करने वाले यही संस्थान हैं…मैं खुद अभी मौजूदा वक्त में एक न्यूज चैनल से जुड़ा हुआ हूँ…इससे पहले कई न्यूज़ चैनल्स में काम किया है…और जॉब के लिए मुझे भी इन्हीं परिस्थितियों से गुजरना पड़ा है…और आज भी गुजर रहा हूँ…स्वतन्त्र मीडिया दरअसल भ्रष्टाचार का गुलाम बन रखा है
Deepak Pandey
January 21, 2019 at 10:33 am
वंदना की स्थिति से इंकार नहीं है.. और यह केवल वंदना ही नहीं.. बल्कि ऐसे कई वंदना और विवेक के हाल हैं..
बहुत हद तक रिफरेंस की भी बात सही है… लेकिन केवल इसी बात पर पूरी मीडिया इंडस्ट्री पर आरोप लगाया जाना …
बिल्कुल बेबुनियाद है.. क्योंकि हमें पहले किसी के उपर आरोप लगाने से पहले मांग और आपूर्ति के गणित को समझना होगा..
आज भारत में कितने मीडिया संस्थान हैं.. उन्हें उंगलियों पर गिना जा सकता है… और हर साल कॉलेज से पढ़कर कितने नौजवान
आ रहे हैं… इससे भी स्थिति को समझा जा सकता है..
अरे भाई.. अंदर जब जगह होगी तब तो बाहर से लोग आ सकेंगे… ये तो शुक्र मनाइए कि वेबसाइट्स का उदय हुआ है तो कुछ नई जॉब भी क्रिएट
हो रहे हैं… वर्ना पहले तो और भी हालत खराब थी…
मैं फिर कहूंगा वंदना की बातों में सच्चाई है.. लेकिन हमें हर पहलू को देखना चाहिए.. कल को वंदना मीडिया में बड़े पदों पर होगी तो
तो वो भी वही करेगी.. जिसकी शिकायत हो रही है.. यही सत्य है…