Awesh Tiwari : वह 2007-08 का वक्त था। खबरिया चैनलों का बाप आईबीएन 7 हुआ करता था और लखनऊ से मित्र शलभ मणि त्रिपाठी और मनोज राजन त्रिपाठी की जोड़ी रिपोर्टिंग किया करती थी।
मुझे याद है लखनऊ समेत कई धहरों में हिये सीरियल बम ब्लास्ट के बाद आईबीएन 7 के दफ़्तर में हजरतगंज का एक दलित डीएसपी एक चश्मदीद को पकड़ने स्टूडियो में घुस आया।
उसके घुसते ही स्टूडियो के लाइव प्रोग्राम में तो बवाल हुआ ही पूरे लखनऊ में पत्रकारों ने बवाल खड़ा कर दिया क्योंकि सवाल खबरनवीसों के सम्मान का था।
मैंने उस वक्त सीएम के मुख्य सचिव नवनीत सहगल को शलभ के सामने गिड़गिड़ाते देखा था। पत्रकारों का कोई मसला हो लखनऊ के शलभ सबसे आगे रहा करते थे।
वक्त बदला, केंद्र में सरकार बदली। गोदी पत्रकारिता का दौर शुरू हुआ। शलभ ने पत्रकारिता छोड़ी और भाजपा ज्वायन कर ली। टिकट तो नही मिला उन्हें सीएम ने सूचना सलाहकार जरूर बना दिया, योगी की आत्मकथा लिखने वाले एक अन्य पत्रकार रहीस सिंह को भी सूचना सलाहकार बना दिया गया।
शलभ अब वही कहते सुनते बोलते हैं जो भक्त कहते हैं कभी कभी सत्ता के खिलाफ बोलने वाले लोगों को ट्रोल भी करते हैं। लेकिन जो सबसे अजीब है वह यह है कि शलभ यूपी में पत्रकारों के खिलाफ हो रही ताबड़तोड़ कार्रवाइयों पर भी खामोश रहते हैं, जिनका उत्पीड़न हो रहा है उनमें महिला खबरनवीस भी हैं।
इस सरकार ने कई पत्रकारों को पथभ्रष्ट तो किया ही कई का अतीत वर्तमान सब काले रंग से रंग दिया। Shalabh Mani Tripathi भाई कम से कम अब मैं व्यक्तिगत तौर पर उस शलभ को कभी अपनी स्मृतियों में नही लाऊंगा जिसकी खबरनवीसी पर फक्र था। आप यूपी सरकार के कारिंदे भर हैं।
पत्रकार आवेश तिवारी की एफबी वॉल से.
कुछ कमेंट्स-
Afiya Bano Awesh sir proud of your journalism
Abdul Rashid आवेश भाई, बहुत बुरा वक्त है और कुछ लोगों के बदलते रंग तो और भी तकलीफदेह है।
Alok Shukla अन्तिम वाक्य ही शलभ का सत्य है।
Nitin Gaur सही कहा भाईसाब, मुझे याद है सलभ मनी त्रिपाठी की पत्रकारिता, पर ये नहीं पता था कि कहा चले गए। धन्यवाद बताने के लिए की व्यस्त है अब। कमाल खान के अलावा उत्तर प्रदेश की खबरों के लिए किसी ओर पर अब भरोसा भी नहीं रहा
Àhmad Istekhaar किसकी नज़र लग गई इस चमन(प्रोफेशन) को
Raish Ahmad Lali बात सही है, शलभ जी की मजबूत पत्रकारिता देखी है। लेकिन क्या किया जाए, अब वह दौर भी नहीं दिखता जब कोई नेता ग़लत होने पर पार्टी के ख़िलाफ़ भी बोलता था। वैसे पहले भी कम ही सही, ऐसा देखा जाता था। अब संभव नहीं। ख़ासकर भाजपा में तो इसका भारी अभाव है। कांग्रेस में आएदिन ऐसा दिख भी जाता है। यहां तक कि एक व्यक्ति की पार्टी कहे जाने वाले राजद में रघुवंश प्रसाद जैसे लोग खुल कर कई बार पार्टी के खिलाफ बोलते सुने जा चुके हैं।
Sandeep Verma तब भी लोगो संघ के लिए दिल में समर्थन था ..आज भी वही भाव जिन्दा है .
Madhulika Chaudhary क्या से क्या हो गए देखते देखते
Rishikesh Kumar Varanasi me aatmdaah k liye bhadkane aur shoot karnewala channel bhi IBN7 tha
Satish Kumar Chouhan बहुत सही …
Abha Bodhisatva होता क्या है कि ज्यादातर लोग सत्ता के पक्ष में चले जाते हैं। उनमें से हैं त्रिपाठी जी। मतलब ब्राह्मण तो हर सत्ता में समाहित होता रहता है। दुखद यही है कि पत्रकार भी इससे अछूता नहीं!! आज की पत्रकारिता का भी इतिहास लिखा जाएगा