अमर उजाला, वाराणसी में डेस्क पर काम करने वाले पत्रकारों की हालत खराब है। डेस्क पर लोगों की कमी के चलते हर सप्ताह मिलने वाले वीकली आफ को खत्म कर दिया गया है। इसके बदले महीने में एकाध बार ही वीक आफ दिया जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि कर्मचारियों की कमी का हाल यह है कि अपनी चाची की अन्त्येष्टि में शामिल होने गये पत्रकार को घाट से रात को आठ बजे आफिस बुला लिया गया, ताकि पेज बनाया जा सके।
बताया जा रहा है कि सिटी डेस्क पर मात्र तीन लोग हैं। तीन लोगों के सहारे पूरा सिटी चल रहा है। देर रात डाक से काम खत्म करने वाले किसी पत्रकार को सिटी डेस्क पर भेज कर काम चलाया जा रहा है। दूसरे संस्थानों में तो डेस्क पर काम करने वालों को पेजीनेटर मिलते हैं, लेकिन अमर उजाला में डेस्क पर काम करने वालों को खुद पेज बनाना पड़ता है। एक-एक पत्रकार के पास तीन से चार पेज की एडिटिंग के साथ पेज बनाने की जिम्मेदारी है।
फ्रंट पेज देखने वाले आशुतोष दि्ववेदी का तबादला बरेली के लिये हो गया। उनकी जगह किसी को नहीं भेजा गया। पूर्वांचल पेज देखने वाले रोहित चतुर्वेदी को फ्रंट पेज की जिम्मेदारी भी दी गई है। ब्यूरो में भी ऐसे ही हालात हैं। संख्या कम होने से कर्मचारी काफी तनाव और दबाव में काम कर रहे हैं। वर्क लोड और तनाव की अधिकता के चलते कुछ पत्रकार दूसरे अखबारों में भी संभावनायें तलाश रहे हैं।
अमर उजाला प्रबंधन फिलहाल आंख मूंदे तमाशा देख रहा है क्योंकि उसका तो पैसा बच रहा है। काम करने वालों का बीपी बढ़े, शुगर बढ़े, तनाव बढ़े, जान जाए… तो भला प्रबंधन से क्या मतलब! बदलती दुनिया में प्रबंधन अपने कर्मियों के प्रति संवेदनशील होता है और अच्छे नतीजे के लिए अपने कर्मियों को अच्छा माहौल मुहैया करता है पर हिंदी बेल्ट के अखबारों में अब भी पुराने जमाने वाली बनियागिरी की भावना भरी पड़ी है जिसके चलते इनका रुख अपने कर्मियों के खिलाफ रहता है।