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सियासत

इकबाल का असल फलसफा है- ”मुस्लिम हैं हम, वतन हैं, सारा जहां हमारा”

Shayak Alok :  दो जानकारियां जेहन में ठूंस लीजिये. पहली कि सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा इकबाल की लिखी एक कविता भर है. इकबाल का फलसफा यह है कि मुस्लिम हैं हम वतन हैं सारा जहां हमारा. इकबाल ने यह बाद में लिखा और हिंदुस्तान पाकिस्तान के मुसलमान किसी देश भूमि के बजाय अखिल इस्लामवाद के समर्थक हैं, तो यह सोच उनके जेहन में ठूंसने का दोषी इकबाल भी है. दूसरी जानकारी यह कि ‘सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’ रामप्रसाद बिस्मिल की नहीं बल्कि बिस्मिल अजीमाबादी की रचना है. जिगर मुरादाबादी के पास भी इसी गठन की एक रचना पाई जाती है और उसके पहले ग़ालिब के पास मूल रूप से. शुक्रिया.

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<p>Shayak Alok :  दो जानकारियां जेहन में ठूंस लीजिये. पहली कि सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा इकबाल की लिखी एक कविता भर है. इकबाल का फलसफा यह है कि मुस्लिम हैं हम वतन हैं सारा जहां हमारा. इकबाल ने यह बाद में लिखा और हिंदुस्तान पाकिस्तान के मुसलमान किसी देश भूमि के बजाय अखिल इस्लामवाद के समर्थक हैं, तो यह सोच उनके जेहन में ठूंसने का दोषी इकबाल भी है. दूसरी जानकारी यह कि 'सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है' रामप्रसाद बिस्मिल की नहीं बल्कि बिस्मिल अजीमाबादी की रचना है. जिगर मुरादाबादी के पास भी इसी गठन की एक रचना पाई जाती है और उसके पहले ग़ालिब के पास मूल रूप से. शुक्रिया.</p> <p>xxx</p>

Shayak Alok :  दो जानकारियां जेहन में ठूंस लीजिये. पहली कि सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा इकबाल की लिखी एक कविता भर है. इकबाल का फलसफा यह है कि मुस्लिम हैं हम वतन हैं सारा जहां हमारा. इकबाल ने यह बाद में लिखा और हिंदुस्तान पाकिस्तान के मुसलमान किसी देश भूमि के बजाय अखिल इस्लामवाद के समर्थक हैं, तो यह सोच उनके जेहन में ठूंसने का दोषी इकबाल भी है. दूसरी जानकारी यह कि ‘सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’ रामप्रसाद बिस्मिल की नहीं बल्कि बिस्मिल अजीमाबादी की रचना है. जिगर मुरादाबादी के पास भी इसी गठन की एक रचना पाई जाती है और उसके पहले ग़ालिब के पास मूल रूप से. शुक्रिया.

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मैं सुसाइड कर लूँ तो शशिभूषण द्विवेदी से लेकर असद जैदी तक किसी के पास कोई कारण नहीं है कि कहे कि आत्महत्या नहीं हत्या हुई है शायक की. किसी अशोक वाजपेयी से भी मेरा कोई परिचय नहीं. मेरे पास कोई जॉब नहीं. अपने दम पर दो साल से दिल्ली में रह रहा और सरवाइव कर रहा. मैत्रेयी पुष्पा, उदय प्रकाश, ओम थानवी आदि से कुछ काम दिलवाने को कह चुका हूँ जो अभी मिला नहीं. जात से सवर्ण-श्रेणी का हूँ. जात से सवर्ण-श्रेणी को ‘मर जाने की लग्जरी’ भी नहीं प्राप्त. तो ऐसा किया जाए कि प्रतिरोध में जिंदा ही रहा जाए. जिंदा रहूँगा तो जाहिर है कविता के जैदियों से बावस्ता भी रहूंगा. मजा इसमें भी कम नहीं है. सवाल यह है कि प्लान बी क्या है जैदियों के पास कि कोई प्रकाश सुसाइड न करे. न ही यह ख्याल किसी और को आए.

कवि और पत्रकार शायक आलोक के फेसबुक वॉल से.

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