विश्व दीपक-
लड़ाई अगर मन से ल़ड़ी जाए तो परिणाम भी मन का ही मिलता है. मध्यवर्ग के हरामीपन और टीवी मीडिया को छोड़ दिया जाए तो छात्र, किसान, मजदूर सब मोदी सरकार के साथ दो-दो हाथ कर रहे हैं. अलग-अलग मोर्चे खुल चुके हैं. संघर्ष जारी है.
CEL की बिकवाली की प्रक्रिया पर सरकार ने रोक लगा दी है. लेटर ऑफ इंटेट, फर्नीचर बनाने वाली कंपनी को अब नहीं दिया गया.
ऐसा कैसे हो पाया?
कांग्रेस के कपिल सिब्बल दिल्ली हाईकोर्ट में कर्मचारी यूनियन की तरफ से सरकार से 2018 से ही मुकदमा लड़ रहे हैं. सरकार ने लाभ कमाने वाली, राष्ट्रीय सुरक्षा की इस अति महत्वपूर्ण कंपनी को बेचने की पहली कोशिश 2018 में की थी. तभी मुकदमा दायर किया गया था. मामले की अगली सुनवाई इसी आने वाली 19 जनवरी को होगी.
इस बीच कर्मचारियों ने प्रशांत भूषण को भी अप्रोच किया था सुप्रीम कोर्ट में PIL दायर करने के लिए. सब जानते हैं कि प्रशांत भूषण जनता के हित में कोई भी काम करने के लिए तैयार रहते हैं. याचिका के लिए दस्तावेज तैयार किए जा चुके थे. ड्राफ्ट भी तैयार हो रहा था.
सरकार को भनक लग चुकी थी.
उधर, कर्मचारियों ने चुनाव बहरिष्कार की धमकी दी थी. लेफ्ट के साथ-साथ राकेश टिकैत के लोगों का भी समर्थन था. 56 इंची सरकार को लगा कि इस मामले में भी चौतरफा धुनाई होना तय है. इसलिए बेहतर है समय रहते हाथ खींच लो. वही हुआ.
किसान आंदोलन के बाद हाल फिलहाल, यह दूसरी बार है कि मोदी सरकार को अपने कदम वापस लेने पड़े हैं.
जनता का सामूहिक संघर्ष ज़िंदाबाद!
सौमित्र रॉय-
बिग-बिग ब्रेकिंग- नरेंद्र मोदी सरकार ने आज फ़िर एक बड़ा यू-टर्न लिया है। सरकारी कंपनी CEL को महज़ 210 करोड़ में बेचने पर रोक लग गई है। ज़मीन की पूरी कीमत ही 440 करोड़ है।
यानी अगर नीचे वाली कंपनी इसे खरीदकर फिर बेच देती तो भी उन्हें 230 करोड़ का मुनाफ़ा होता।
मोदी सरकार ने कंपनी के हिस्से की ज़मीन के 44% कीमत के आधार पर इसकी बोली 210 करोड़ लगाई थी।
जबकि मुनाफ़ा दे रही इस कंपनी के पास 1592 करोड़ के ऑर्डर हैं। कंपनी का सकल लाभ 730 करोड़ का है।
कंपनी के लिए बोली लगाने वाले नंदलाल फाइनेंस एंड लीजिंग और जेपीएम इंडस्ट्रीज के तार एक तीसरी कंपनी शारदा टेक से जुड़े हैं, जहां दोनों कंपनियों के निदेशक बोर्ड में हैं।
दोनों कंपनियों के पास कुल 10 कर्मचारी भी नहीं हैं। वहीं, दोनों कंपनियों की 99.96% इक्विटी प्लास्टिक की कुर्सियां और फर्नीचर बनाने वाली कंपनी प्रीमियर फर्नीचर्स एंड इंटीरियर्स के पास है।
साफ़ है कि देश की रक्षा क्षेत्र के लिए अहम इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण बनाने वाली कंपनी CEL को पिछले दरवाजे से एक फर्नीचर कंपनी को बेचा जा रहा था।
आपको ये भी बता दूं कि CEL को बनाने के लिए यूपी सरकार ने 50 किसानों से ज़मीन के बदले उन्हें रोज़गार देने का वादा किया था, लेकिन नहीं दिया।
साफ़ है कि नरेंद्र मोदी सरकार देश की नामी कंपनियों को कौड़ियों के भाव उन उद्योगपतियों को बेच रही है, जो उसे चलाने के काबिल ही नहीं हैं।
इसके पीछे मोदी की कांग्रेस से नफ़रत और अपनी नालायकी से उपजी कुंठा के अलावा कुछ भी नहीं है।
दिवालिया बनकर बैठा अनिल अंबानी इसकी ज़िंदा मिसाल है, जिसे राफेल बनाने का ठेका दिया गया।
आज CEL को बेचने पर इसलिए रोक लगी है, क्योंकि इसके पीछे का घोटाला उजागर हुआ है।
खेल को समझिए। सारा मामला पोलिटिकल फंडिंग का है। यह खेल आप सबके माध्यम से घोटाले को उजागर करके ही रुकेगा।
Prashant
January 13, 2022 at 4:49 pm
Deepak ji, Jo bhi ho, magar aapke lekh nihayat hi ghatiya star ka hai. “मध्यवर्ग के हरामीपन” shabdo ka istemal kar ke aap kya jatana chahte hai.
aap kitane bhi uchch varg ke ho magar hame gaali dene ka haq nahin. aapko Modi se ghreena hai to rakhiye magar मध्यवर्ग ko gaali dekar apni ghreena ki santusti nahi kar sakte. Media ko gaali dete hai to Congress ka side lekar aap kya kar rahe hain ?
aapke lekh ke niche soumitra roy ji ka bhi lekh hai. jara use bhi padiye. likhne ki maryada rakhiye.