नब्बे के दशक में, जब मैं और मेरी पीढ़ी के कई बच्चे स्कूली छात्र थे तो एक ही अख़बार पढ़कर बड़े हुए, वह है ‘राजस्थान पत्रिका’। उस समय हमारी कक्षा में शनिवार को एक प्रतियोगिता हुआ करती थी, जिसके तहत हमें राजस्थान पत्रिका के पन्ने दिए जाते और उनमें ग़लतियां ढूंढ़ने के लिए कहा जाता।
तब शायद ही किसी को कोई ग़लती मिलती। हमारे शिक्षक भी इनमें ग़लतियां नहीं ढूंढ़ पाते। अब हालात इसके ठीक उलट हैं। मेरा यह प्रिय अख़बार अक्सर ग़लतियों से भरा हुआ होता है। वजह क्या है, यह इसके संपादक बेहतर जानते होंगे।
इसकी वेबसाइट पर तो ग़लतियों की भरमार होती ही है, अख़बार में भी भरपूर ग़लतियां होती हैं। अब आज (26 अक्टूबर, 2020) के जयपुर संस्करण में मोटे अक्षरों में छपा यह शीर्षक ही देख लें: ‘सौर ऊर्जा से चमकेगी सरहद, जैसलमेर में जमीन चिन्हित’।
इसमें ‘चिन्हित’ शब्द ग़लत है। यहां ‘चिह्नित’ शब्द होना चाहिए। उर्दू से हिंदी में आए कई शब्दों के नुक्ता लगाने का नियम वर्षों पहले ही हटा दिया गया। (जैसे— आजादी/आज़ादी, बाजी/बाज़ी, खान/ख़ान), पर अख़बारों को कम से कम इतना ध्यान रखना चाहिए कि हिंदी व्याकरण संबंधी त्रुटियां न हों या कम हों, क्योंकि इससे आप एक पूरी पीढ़ी का नुकसान कर रहे हैं। जो बच्चे आज आपको पढ़ रहे हैं, वे ग़लत पढ़कर कल जरूर यही ग़लती दोहराएंगे। राजस्थान पत्रिका को इस ओर ध्यान देना चाहिए।
.. राजीव शर्मा ..
(एक पाठक)
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