हर्ष कुमार-
कभी सबसे बेहतरीन व्यवस्थाओं के लिए जाने जाते रहे अमर उजाला में इन दिनों तबाही मची हुई है। 22 साल पहले जब मैंने अमर उजाला ज्वाइन किया था तो बहुत गर्व महसूस होता था।
आज जो हालात वहां कर दिए गए हैं उनसे इसकी बर्बादी के पूरे आसार नज़र आते हैं।HR department ने प्रबंधन को पट्टी पढ़ा दी है- ब्यूरो में स्टाफ़ रिपोर्टर रखने की ज़रूरत नहीं, 10-15 हज़ार वाले रिपोर्टर से काम चला लेंगे।
सब स्टाफर डेस्क पर बुलाए जा रहे हैं नहीं तो संवाद (अमर उजाला द्वारा बनाई गई एक एजेंसी) ज्वाइन करके 15 हज़ार रुपये के रिपोर्टर बन जाओ।
जो लोग डेस्क पर बुलाए गए हैं उन्हें दूर दूर तबादला किया जा रहा है जिससे वे खुद ही इस्तीफ़ा दे दें। इससे बुरी स्थिति कुछ नहीं हो सकती।
आज महसूस होता है कि बढ़िया हुआ हमने समय रहते हुए इसे छोड़ दिया था। मेरे जो साथी यहां अब तक हैं सब मुझे सही ठहरा रहे हैं कि यार सही किया यहां से समय रहते निकल लिए।
कुछ ऐसी ही राय जागरण के साथियों की भी थी जब उसे छोड़ा था। वैसे ही प्रिंट मीडिया अंतिम सांसें ले रहा है। ऐसे में अमर उजाला जैसे पेपर इसे जल्दी ख़त्म करने में पूरी तरह जुट ही गए हैं।
One comment on “अमर उजाला बर्बादी की ओर!”
फ्रीलांसिंग रिपोर्टिंग का जमाना : फ्रीलांसर रिपोर्टर, संपादक, लेखक की दरकार ( सैलरी/प्रतिमाह गांव-देहात – ₹10000-₹15000/- शहर – ₹15000-₹25000/- मेट्रो शहर – ₹25000-₹35000/- दिल्ली-एनसीआर ₹40000-₹50000/- ) आवेदक – कल्लोल चक्रवर्ती (9873498474)/ डाॅ इंदुशेखर पंचोली (8954886161)को आवेदन कर सकते हैं|