रवीश कुमार-
क्या चुनाव आयोग को यह सब दिखना बंद हो गया है?
अमर उजाला की आज की हेडलाइन है। आज यूपी में तीसरे चरण का मतदान हो रहा है। क्या आपको इसमें आपत्तिजनक लगता है?
पत्रकारिता में अब पत्रकारिता का कोई पैमाना नहीं बचा है इसलिए इस हद तक या उस हद तक लिखने का मतलब नहीं है।
इस हेडलाइन से लग रहा है कि एक जाति के विरोध में हवा बनाई जा रही है। क्या इसके सहारे परोक्ष ज़रूर सपा को टार्गेट नहीं किया जा रहा?
क्या मतदाता को बीजेपी के पक्ष में अलर्ट किया जा रहा है? इस हेडलाइन से ध्रुवीकरण किया जा रहा है?
क़ायदे से चुनाव आयोग को ध्यान देना चाहिए या विपक्ष को भी।
रंगनाथ सिंह-
देश के पहले ब्राह्मण-विशेषज्ञ होकर भी दिलीप जी पूछ रहे हैं कि ब्राह्मणों का गढ़ कहाँ है? खैर, उनकी लीला वो जानें। उनकी पोस्ट से मुझे लक्ष्मण सिंह देव द्वारा ‘इंडिया दिस वीक’ चैनल के एक वीडियो चर्चा में कही बात याद आ गयी। लक्ष्मण सिंह देव ने पश्चिमी यूपी को जाटों का बेल्ट/गढ़ कहे जाने के सन्दर्भ में बड़ी बारीक बात कही।
लक्ष्मण सिंह देव ने कहा कि मीडिया किसी इलाके को जिनका बेल्ट कहता है उसका आशय यह होता है कि उस इलाके में कौन लोग किसी जमाने में वहाँ के दलितों को वोट नहीं डालने दिया करते थे! यानी “बेल्ट उनकी होती थी जो दूसरी जातियों को वोट न डालने दें या उन्हें बल से प्रभावित करें।” लक्ष्मण जी ने बताया कि चुनाव के दौरान पश्चिमी यूपी के जिन इलाकों को जाट बेल्ट कहा जा रहा है वहाँ उनसे ज्यादा आबादी दलितों की है लेकिन फिर भी मीडिया उसे जाट बेल्ट कहता है।
बेल्ट या गढ़, होते होंगे, लोग यूँ ही नहीं कहते लेकिन मतदान के दौरान जनसंख्या के आँकड़ों को ध्यान में रखते हुए ही बेल्ट बाँधनी चाहिए। बेहतर तो यह होता कि जाति जनगणना हो जाती जिससे बेल्ट लगाने में थोड़ी आसानी हो जाती।