कनुप्रिया-
अच्छा किया जो कुछ एंकर्स को boycott किया, आप हत्यारों से संवाद नही कर सकते.
मगर प्यादों के बहिष्कार से क्या होगा?
ऐसे चैनल्स की लिस्ट भी निकाली जानी चाहिये जिन्होंने जनता को जॉम्बी बनाने में भरपूर योगदान दिया है , जिन्होंने जनता की समझ और संवेदना को पूरी तरह कुंद कर दिया. जिन्होंने उनके सूचना के अधिकार को ख़त्म करके महज नफ़रती एजेंडे पर काम करने वाले समाचार दिए. लोगों को लगातार भ्रम में रखा, मीडिया। और उसकी आज़ादी नाम के गर्व को तो ओढ़े रखा मगर उसकी जिम्मेदारी, जवाबदेही और ethics नष्ट कर दिए.
असल गुनाहगार कुछ हजार लाख कीनौकरी करने वाले एंकर्स नही बल्कि इन चैनल्स के मालिक हैं , वही हैं जो करोड़ों अरबो की सम्पत्ति के बावजूद सत्ता के आगे झुकते ही नही रेंगने लगते हैं. मालिकों को हमेशा ही क्यों छोड़ दिया जाता है.
ज़हरीले वृक्षों की डाल भर काटने से क्या होगा.
ममता मल्हार-
पत्रकारों एंकरों ने अब तक इतना तो कमा ही लिया होगा कि नौकरी छोड़ खुले मैदान में आकर खम ठोकें और दिखाएं पत्रकारिता। पर क्या करें मालिकों की मैनेजरी प्रभावित होती जाएगी। जबतक गुलामी की मानसिकता खत्म नहीं होती इस टीवी मीडिया की इज्जत बचना मुश्किल है।।समस्या यह भी है कि कुछ लालची बददिमागों की वजह से टीवी मीडिया को ही पूरा मीडिया मान लिया गया है। सारे नेताओं और मीडिया मालिकों की दोस्ती है पत्रकार टूल बने हुए हैं। हद है।