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उत्तर प्रदेश

उलझे सवालों के बीच फर्जी खुलासा कर गई लखनऊ पुलिस

Anil Singh : फर्जी खुलासों का माहिर एसएसपी क‍मजोर स्क्रिप्‍ट लिखकर बचा ली अपनी नौकरी … लखनऊ की पूरी पुलिस मशीनरी मिलकर भी मोहनलालगंज गैंगरेप मर्डर की सही कहानी तैयार नहीं कर पाई। खुलासे के दबाव में जो स्क्रिप्ट तैयार की गई है, उसमें कई छेद हैं। जिस राजीव नाम के शख्स के इर्दगिर्द खुलासे की कहानी रची गई है, वो राजीव कौन है इसका पुलिस के पास कोई जवाब नहीं है। खुलासे की कहानी से साबित हो रहा है कि या तो पुलिस किसी को बचा रही है या फिर एसएसपी फर्जी खुलासे के अपने पुराने रिकार्ड पर चलकर दरिंदगी की शिकार हुई महिला को न्याय से वंचित कर दिया है।

<p>Anil Singh : फर्जी खुलासों का माहिर एसएसपी क‍मजोर स्क्रिप्‍ट लिखकर बचा ली अपनी नौकरी ... लखनऊ की पूरी पुलिस मशीनरी मिलकर भी मोहनलालगंज गैंगरेप मर्डर की सही कहानी तैयार नहीं कर पाई। खुलासे के दबाव में जो स्क्रिप्ट तैयार की गई है, उसमें कई छेद हैं। जिस राजीव नाम के शख्स के इर्दगिर्द खुलासे की कहानी रची गई है, वो राजीव कौन है इसका पुलिस के पास कोई जवाब नहीं है। खुलासे की कहानी से साबित हो रहा है कि या तो पुलिस किसी को बचा रही है या फिर एसएसपी फर्जी खुलासे के अपने पुराने रिकार्ड पर चलकर दरिंदगी की शिकार हुई महिला को न्याय से वंचित कर दिया है।</p>

Anil Singh : फर्जी खुलासों का माहिर एसएसपी क‍मजोर स्क्रिप्‍ट लिखकर बचा ली अपनी नौकरी … लखनऊ की पूरी पुलिस मशीनरी मिलकर भी मोहनलालगंज गैंगरेप मर्डर की सही कहानी तैयार नहीं कर पाई। खुलासे के दबाव में जो स्क्रिप्ट तैयार की गई है, उसमें कई छेद हैं। जिस राजीव नाम के शख्स के इर्दगिर्द खुलासे की कहानी रची गई है, वो राजीव कौन है इसका पुलिस के पास कोई जवाब नहीं है। खुलासे की कहानी से साबित हो रहा है कि या तो पुलिस किसी को बचा रही है या फिर एसएसपी फर्जी खुलासे के अपने पुराने रिकार्ड पर चलकर दरिंदगी की शिकार हुई महिला को न्याय से वंचित कर दिया है।

उस अभागिन की मौत कोई सामान्य घटना नहीं है। जिंदगी से जूझकर बच्चों की परवरिश में खुद को खपाने वाली एक ऐसी अभागिन मां की कहानी है, जिसे सांसों के हर सिरे पर संघर्ष करना पड़ा। यहां तक कि मौत भी मिली तो आसान नहीं बल्कि संघर्षों की पराकाष्ठा और हैवानियत की आखिरी हद तक पहुंचकर। पर पुलिस इस अभागिन को न्याय दिला पाने के अपने दायित्व का भी सही ढंग से निर्वहन करती नहीं दिख रही है। घटनास्थल पर मौजूद साक्ष्य जिस तरीके से चीख-चीखकर बता रहे हैं कि लखनऊ की निर्भया को दर्दनाक मौत देने वाला कोई अकेला नहीं बल्कि कई दरिंदे शामिल रहे होंगे, क्या यूपी की पुलिस सुन नहीं पा रही है। या फिर सुनना नहीं चाह रही है।

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एक प्राइवेट गार्ड को दोषी बताया गया लेकिन बदायूं केस के बाद अब इस केस में भी यूपी पुलिस का खुलासा सवालों से घिर गया है। फर्जी खुलासे करने में माहिर एसएसपी ने एक और फर्जी खुलासे को अंजाम दिया है। पुलिस अब तक महिला पर घातक प्रहार करने वाले हथियार तथा उसका मोबाइल भी नहीं ढूंढ पाई है। इसके बावजूद खुलासे को अंजाम दे दिया गया। पुलिस की घटिया स्क्रिप्‍ट किसी को भी पच नहीं रही है कि आखिर एक आदमी कैसे इतने जघन्‍य और नृशंस तरीके से हत्‍या को अंजाम दे सकेगा?

पुलिस जिस राजीव नामक अज्ञात पात्र को इस हत्याकांड का रहस्यमय चरित्र बना रही है, वो आखिर है कौन? क्या उसे महिला के बच्चे या परिजन नहीं जानते हैं? महिला से उसके कैसे रिश्ते थे कि वो राजीव के बुलाने पर मोहनलालगंज चली गई? और वो मोहनलालगंज पहुंचने के बाद हेलमेट पहने शख्स को देखने-बूझने-पहचानने की कोई कोशिश नहीं की? क्या उसे मुख्य आरोपी रामसेवक यादव और राजीव के कद काठी में कोई फर्क नजर नहीं आया? सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि यह राजीव कौन है, क्या करता है, महिला उसे कैसे जानती थी, क्या उसके इतने गहरे संबंध थे कि वो उसके बुलाने पर रात को घर से चली गई?

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दूसरे अगर राजीव से इतना ही गहरा रिश्ता था तो क्या रामसेवक जब राजीव बनकर फोन करता था तो इस दौरान असली राजीव का फोन उसके पास नहीं आया था? जिससे उसे पता लगता कि जिस नंबर से रामसेवक फोन कर रहा है वह उसका नहीं है? शायद पुलिस को इन सवालों के जवाब की जरूरत नहीं थी। उसे खुलासे की जल्दी थी वो भी कमजोर स्क्रिप्ट के साथ। अगर रामसेवक हत्यारा है तो साफ है कि या तो वो किसी को बचा रहा है या पुलिस ही किसी को बचाने का प्रयास कर रही है?

खुलासे से साफ है कि निर्भया को असली न्याय मिलना मुश्किल है। उसके मासूम बच्चों को अनाथ करने वाले दरिंदे शायद किसी और शिकार की तलाश में निकल गए होंगे और पुलिस एक और घटना का इंतजार कर रही होगी। पीएम रिपोर्ट में जिस डंडेनुमा हथियार से महिला के प्राइवेट पार्ट और शरीर पर हमले की बात सामने आई है क्या वो एक बाइक की चाभी से संभव है? क्या रामसेवक रेप का प्रयास करते समय बाइक की चाभी हाथ में लिए हुए था? सैकड़ों सवाल हैं जो चीख-चीखकर कह रहे हैं कि लखनऊ की पुलिस अभागिन निर्भया को इंसाफ नहीं दिला पाई! 

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क्या कोई भी व्‍यक्ति पुलिस की इस कहानी पर यकीन करेगा कि एक प्राइवेट गार्ड चोरी के एक मोबाइल से अपना नाम बदलकर अपनी ही परिचित एक महिला को अपने जाल में फंसाता है और महज कुछ दिन की लगातार बातचीत के बाद वो महिला को रात में बुलाता है? और महिला बिना पूरी तरह की पहचान जाने, उसको हेलमेट निकलवाकर देखे बिना चली जाती है। और हेलमेट पहनकर जो राजीव नामक शख्‍स महिला को अपने साथ ले जाता है। सुनसान इलाके में ले जाता है और वो उसके साथ चल देती है। क्‍या संभव है कि महिला उस शख्‍स के साथ बिना कुछ सोचे समझे रात के अंधेरे में चल देती है। उस अंजान शख्‍स का शक्‍ल देखने की भी जरूरत नहीं समझती।

पुलिस की कहानी का सबसे बड़ा छेद ये है कि जिस राजीव नाम के आदमी को महिला केवल फोन के माध्‍यम से बात करती है, उसके साथ वो बिना उसका चेहरा देखे रात के अंधेर में चल देती है। उसको देखने की भी कोशिश नहीं करती कि वो दिखता कैसा है। जब वो उसे सूनसान इलाके की तरफ ले जाता है तब भी वो कोई विरोध नहीं करती। क्‍या जिस तरीके से महिला का शव पाया गया था क्‍या उस तरह की वहशियाना हरकत केवल एक आदमी के बूते संभव है?

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पुलिस की थ्‍यूरी है कि आरोपी गार्ड चोरी के मोबाइल से फोन करता है, तो जिसका मोबाइल चोरी गया था तो मोबाइल के कनेक्शनधारी ने चोरी की रिपोर्ट क्यों नही लिखवाई? पुलिस को अगर सिम से मोबाइल मालिक का नाम पता चल गया है तो वो उसे सामने क्‍यों नहीं ला रही है? अगर राजीव नामक शख्‍स महिला का परिचित था तो वो फोन करने वाले की आवाज क्‍यों नहीं पहचान सकी? महिला का मोबाइल फोन कहां है? हत्‍या में प्रयुक्‍त किया गया हथियार कहां हैं? अगर महिला से गैंगरेप नहीं हुआ तो पहले पुलिस ने क्‍यों गैंगरेप तथा एक से ज्‍यादा लोगों के होने की बात स्‍वीकार की?

पुलिस की कमजोर थ्‍यूरी चीख-चीखकर बता रही है कि जघन्‍य तरीके से मारी गई महिला को न्‍याय नहीं मिल पाया है। फर्जी खुलासे का माहिर एसएसपी प्रवीण कुमार कमजोर स्क्रिप्‍ट लिखकर अपनी नौकरी तो बचा ले गया, लेकिन मृतका के परिजनों को न्‍याय नहीं दिला सका। उसके मासूम बच्‍चों के सिर से मां का साया छिनने वालों को सजा नहीं मिल सकेगी? पर मृतका की आत्‍मा जरूर अपना नैसर्गिक न्‍याय करेगी। उसके तड़पते बच्‍चों की आह जरूर अपना इंतकाम लेगी। और इसकी जद में अपराधियों के साथ वे पुलिस वाले भी आएंगे, जो अपराधियों को पकड़ कर न्‍याय दिलाने की बजाय फर्जी कहानी बनाकर अपनी-अपनी नौकरियां बचाने में जुटे रहे हैं।

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लखनऊ में डीएनए अखबार में कार्यरत पत्रकार अनिल सिंह के फेसबुक वॉल से.

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