13 सालों तक उत्तराखंड की आवाज रहा ईटीवी का ‘अपना उत्तराखंड’ बुलेटिन हुआ बंद… पिछले 13 सालों में उत्तराखंड का शायद ही कोई ऐसा समाचार देखने की चाहत रखने वाला होगा, जिसे ईटीवी के शाम साढ़े सात बजे के ‘अपना उत्तराखंड’ बुलेटिन का इंतजार नहीं रहता हो… कोई अगर किन्हीं कारणों से इस बुलेटिन को नहीं भी देख पाया तो अन्यों से जरूर पूछता था कि क्या चला ‘अपना उत्तराखंड’ में? यही नहीं, सूबे की राजनीति को बदलने की ताकत रखने वाले इस बुलेटिन को राज्य के लोग उत्तराखंड की धड़कन के रूप में मानते थे। लेकिन पिछले दिनों हुए ईटीवी में व्यापक बदलाव और संपादक पवन लालचंद व उनकी टीम के इस्तीफा देकर जी मीडिया देहरादून ज्वाइन करने के बाद सबसे ज्यादा देखे जाने वाले ईटीवी के शाम के बुलेटिन को बंद कर दिया गया है।
ईटीवी में इन दिनों शाम 7 से 8 बजे तक प्राइम बुलेटिन चलाया जा रहा है। कहने को तो प्राइम बुलेटिन यूपी और उत्तराखंड का संयुक्त बुलेटिन है, पर हकीकत में इस घंटे भर के बुलेटिन में उत्तराखंड की मात्र 2-3 ही खबरें प्रसारित हो रही हैं। राज्य के अधिकांश दर्शकों को समझ भी नहीं आ रहा है कि आखिर ईटीवी में ये चल क्या रहा है? स्थानीय लोगों की मानें तो शाम का ‘अपना उत्तराखंड’ बुलेटिन राज्य के लोगों के दिलो-दिमाग में छा गया था। यही वजह थी कि साल 2007 और 2012 के विधानसभा चुनावों में ईटीवी का बड़ा रोल रहा।
ईटीवी पर जिस तरह का न्यूज चला, उत्तराखंड के लोगों ने भी उसी दिशा में सोचना शुरू कर दिया था। ये बात अगल है कि पिछले कुछ समय से ईटीवी की विश्वसनीयता पर सवाल भी उठ रहे थे। बावजूद इसके, साढ़े सात बजे के बुलेटिन का अपना ही क्रेज था। आलम ये था कि हर किसी की चाहत होती थी कि किसी भी तरह शाम के बुलेटिन में उसकी खबरें चल जाए। ईटीवी प्रबंधन ने इस बुलेटिन को बंद कर राज्य के लोगों की भावना के साथ मजाक जैसा किया है। हालांकि अभी भी शेष पांचों बुलेटिन पहले की ही तरह चल रहे हैं, लेकिन बुलेटिन में यूपी की खबरों का बोलबाल नजर आ रहा है। इस तरह की भी चर्चा जोर पकड़ रही है कि ईटीवी प्रबंधन अब उत्तराखंड से अपना बोरिया-बिस्तर समेटने की योजना बना रहा है।
कमल सिंह
सामाजिक कार्यकर्ता
उत्तराखंड
[email protected]