वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार का निधन हो गया। वे लंबे समय से कैंसर से जूझ रहे थे। टाइम्स ऑफ़ इंडिया से सम्बद्ध अरुण करीब दो वर्ष पहले रिटायर हुए थे। मानवाधिकारी आंदोलनों से जुड़े अरुण कुमार मधुरापुर, बरौनी के रहने वाले थे। उनके पिता सरकारी सेवा में थे लेकिन वामपंथी विचारधारा के होने के कारण उनके घर पर वामपंथियों का जमावड़ा लगा रहता था। अरुण कुमार का बचपन ऐसे ही वातावरण में बीता। लंगट सिंह कॉलेज मुजफ्फरपुर से उन्होंने अंग्रेजी में एमए किया था। टाइम्स ऑफ़ इंडिया में रहते हुए उन्होंने पत्रकरिता को नई धार दी। वे निर्भीक पत्रकार थे।
अरुण कुमार ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्य के रूप में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दो साल पहले जब प्रेस काउंसिल आफ इंडिया के तत्कालीन अध्यक्षण मार्कंडेय काटजू ने बिहार में प्रेस की स्वतंत्रता पर सवाल उठाया और उन्होंने प्रेस की आजादी पर आम लोगों, पत्रकारों और संस्थानों से विचार आमंत्रित किये तो इसमें भी अरुण कुमार ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रिटायर होने के बाद भी वे बेहद सक्रिय थे। उन्होंने बेगुसराय बचाओ मंच भी बना रखा था। विभिन्न विषयों पर वे आखिर तक लिखते रहे। वे फेसबुक पर भी काफी सक्रिय थे।
उनके निधन पर शोक संदेशों का ताँता लग गया। अरुण और सरला माहेश्वरी ने उनके फेसबुक वाल पर लिखा है- ”अरुण कुमार जी का न रहना एक बेहद दुखदायी ख़बर है। वे लंबे समय से कैंसर के असाध्य रोग से जूझ रहे थे। उनके जैसे जागरूक और सक्रिय लोग आज विरल है। निजी तौर पर उनसे परिचय न होने पर भी फेसबुक के माध्यम से उन्हें जितना जाना, कह सकता हूँ आज उनका न रहना पत्रकारिता जगत की एक बड़ी क्षति है। उनके प्रति आंतरिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके शोक-संतप्त परिवार के प्रति हम आंतरिक संवेदना प्रेषित करते हैं।”