रंगनाथ सिंह-
अशोक वाजपेयी के संग रेख्ता वालों का व्यवहार निंदनीय है –
रेख्ता वालों ने अशोक वाजपेयी के सामने कथित तौर पर जो शर्त रखी वो हर तरह से निन्दा योग्य है। अशोक जी के अनुसार रेख्ता वालों ने एक कार्यक्रम में उन्हें बुलाते हुए कहा कि वो सरकार के खिलाफ कुछ न बोलें। अफसोस की बात है कि रेख्ता वाले भी उसी तरह बरताव कर रहे हैं जैसे अशोक वाजपेयी करते रहे हैं।
पाखी पत्रिका ने दिसम्बर 2022 में हरि जोशी का प्रभु जोशी पर लिखा संस्मरण प्रकाशित किया है। हरि जोशी ने बहुत दबा-छिपाकर लिखा है लेकिन बात जगजाहिर है कि इमरजेंसी के दौरान अशोक वाजपेयी जी ने लेखक सम्मेलन आयोजित किया था। वहाँ पहुँचे लेखकों में डर था कि इमरजेंसी की आलोचना करने से अशोक वाजपेयी नाराज न हो जाएँ इसलिए लोग इमरजेंसी की आलोचना नहीं कर रहे थे।
अशोक जी ने भोपाल गैस त्रासदी के बाद भी काव्य सम्मेलन कराया था। उस समय उन्होंने जो अमानुषिक दलील दी थी उससे हिन्दी का साहित्यिक समाज परिचित है।
ज्यादा पुरानी बात नहीं है। साल-दो साल पहले जब अशोक वाजपेयी ने भाजपा की पत्रिका कमल सन्देश से जुड़े पत्रकार संजीव सिन्हा को साक्षात्कार दिया तो साफ कहा कि वो डंके की चोट पर सत्ता का अंग थे! अशोक जी ने सच ही कहा, हिन्दी साहित्य समाज में उनकी मौजूदगी सत्ता के डंक की तरह ही रही है। कोई कह सकता है कि अशोक जी का इतिहास आज लौटकर उन्हें जीभ दिखा रहा है।
अशोक जी एवं उनके हमजोलियों ने कभी यह स्वीकार नहीं किया कि हिन्दी लेखक ने अपनी नैतिक अपील बहुत पहले खो दी थी क्योंकि उसके गले में बहुत पहले “पोलिटिकल करेक्टनेस” की जंजीर डाल दी गयी थी। जंजीर जंजीर है चाहे वो लाल हो हरी हो या गेरुआ हो। हिन्दी की यही रीत है कि ईकोसिस्टम से हरा सिग्नल मिलने के बाद ही लेखकों को छापा जाता रहा, उन्हें नौकरी दी जाती रही, उन्हें कार्यक्रमों में आमंत्रित किया जाता रहा।
मेरे ख्याल से रेख्ता हो या कोई और संस्थान उसे अशोक जी से थोड़ा और सीखना चाहिए। उन्हें किसी लेखक को सीधे-सीधे पॉलिटिकल लाइन देने के बजाय अशोक जी की तरह जादुई छननी का इस्तेमाल करना चाहिए। वही छननी जिससे सभी अवांछित तत्व किसी भी सभा-समारोह में आमंत्रित-निमंत्रित किए जाने वालों की सूची से बाहर कर दिये जाते हैं।
वस्तुस्थिति यह है कि अब जिन लोगों ने लाल जंजीर को वोट दिया होगा वो कहेंगे वाजपेयी जी के संग अन्याय हुआ है और जिन गेरुआ जंजीर को वोट दिया होगा वो कहेंगे जैसे को तैसा मिला है! वाजपेयी जी के पास कुछ दर्जन से ज्यादा जेनुइन पाठक भी नहीं होंगे, जिनके नाराज हो जाने का डर रेख्ता को लगे! अगर होते तो भी उनका वजन आयकर विभाग के डर के आगे कितना ठहरता यह कहना मुश्किल है।
खैर, कहना न होगा, अशोक वाजपेयी के संग रेख्ता वालों का व्यवहार निंदनीय है।