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…तो क्या अमर उजाला प्रबंधन से श्रम विभाग की सेटिंग हो गई है?

पहली बार अमर उजाला कानपुर में छापा पड़ा तो सबको लगा कि अब मीडियाकर्मियों को उनका हक मिलेगा. आनन-फानन में अमर उजाला मैनेजमेंट ने अपने कर्मियों के एकाउंट में एरियर की बकाया बची रकम ट्रांसफर कर दी. सब लोग खुश. चलो कुछ तो मिला. लेकिन जब लोगों ने कहा कि ये एरियर तो मैनेजमेंट ने अपनी रणनीतिक गणना के हिसाब से तय कर दिया है. जो असल गणना होनी चाहिए, वह तो किया ही नहीं गया. यानि कर्मियों का हक मारा गया. पर इस सबके बारे में बात करे कौन.

<p>पहली बार अमर उजाला कानपुर में छापा पड़ा तो सबको लगा कि अब मीडियाकर्मियों को उनका हक मिलेगा. आनन-फानन में अमर उजाला मैनेजमेंट ने अपने कर्मियों के एकाउंट में एरियर की बकाया बची रकम ट्रांसफर कर दी. सब लोग खुश. चलो कुछ तो मिला. लेकिन जब लोगों ने कहा कि ये एरियर तो मैनेजमेंट ने अपनी रणनीतिक गणना के हिसाब से तय कर दिया है. जो असल गणना होनी चाहिए, वह तो किया ही नहीं गया. यानि कर्मियों का हक मारा गया. पर इस सबके बारे में बात करे कौन.</p>

पहली बार अमर उजाला कानपुर में छापा पड़ा तो सबको लगा कि अब मीडियाकर्मियों को उनका हक मिलेगा. आनन-फानन में अमर उजाला मैनेजमेंट ने अपने कर्मियों के एकाउंट में एरियर की बकाया बची रकम ट्रांसफर कर दी. सब लोग खुश. चलो कुछ तो मिला. लेकिन जब लोगों ने कहा कि ये एरियर तो मैनेजमेंट ने अपनी रणनीतिक गणना के हिसाब से तय कर दिया है. जो असल गणना होनी चाहिए, वह तो किया ही नहीं गया. यानि कर्मियों का हक मारा गया. पर इस सबके बारे में बात करे कौन.

अब ताजी सूचना ये है कि एरियर दिए जाने के बाद श्रम विभाग के अफसर फिर से अमर उजाला कानपुर के आफिस पहुंचे और सभी से पूछा कि क्या आपको एरियर मिला है. जिसने कहा हां तो उससे एक कागज पर साइन करा लिया. जिसने ना कहा, और कुछ अपनी बात बतानी चाही तो उसकी बात सुनी ही नहीं गई. जानकारी के मुताबिक अमर उजाला कानपुर में लेबर आफिसरों ने फिर छापेमारी की लेकिन यह छापेमारी प्रबंधन के हित में दिखी. उनके कामकाज और बोलचाल से लग रहा था कि उनकी अमर उजाला प्रबंधन से सांठगांठ हो चुकी है. तभी तो श्रम विभाग के अफसरों ने अमर उजाला कर्मियों से एक कागज पर साइन करा लिया. जो काम मैनेजमेंट को कराना था, वह श्रम विभाग चापलूसी में खुद कर रहा है.

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असल में दो दिन पहले अमर उजाला ने जिसका जो पैसा बकाया था, उसका पैसा उनके एकाउंट में ट्रांसफर कर दिया था. अब दो दिन बाद लेबर आफिसर्स आए और सिर्फ ये पूछा कि क्या आपको एरियर मिल रही है. अगर हां कहा तो साइन कर दो. वे आफिसर्स ना तो कोई बात सुन रहे थे और ना ही कोई बात समझने का प्रयास कर रहे थे. इन अफसरों ने संपादक, एचआर और एडिमन वालों के साथ मीटिंग की. इस बैठक में केवल हंसी ठिठोली हुई. इंप्लाइज से इन अफसरों ने कहा कि चुपचाप साइन कर दो और कुछ बोलना नहीं. लेबर आफिसर अच्छी तरह जानते थे कि किसे कितना एरियर मिला है. ये लिस्ट उनके पास थी.

मजीठिया का मामला अमर उजाला के संदर्भ में बहुत पेचीदा हो चुका है. सुप्रीम कोर्ट के बार बार समझाने पर भी इंप्लाइज से जबरन साइन करवाया जा रहा है.  ये तो कनफर्म है कि आने वाले टाइम में अमर उजाला मैनेजमेंट कुछ बहुत ही गंदा और नीच सोचने में लगा है. वह हर हाल में मजीठिया के हिसाब से रीयल भुगतान नहीं करना चाहता. कहा तो यह भी जा रहा है कि अमर उजाला प्रबंधन के मालिकों के बेहद नजदीकी रिश्तेदार इन दिनों यूपी शासन में शीर्ष पोस्ट पर हैं और उनके दबाव के जरिए सारा मामला प्रबंधन के अनुकूल किया कराया जा रहा है.

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एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

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