अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-
यह वह वीडियो है, जिसे देखने के बाद किसी की भी नजर में एबीपी के इस पत्रकार और एक बाबा के अंधभक्त के बीच का अंतर न सिर्फ खत्म हो जाएगा बल्कि यह भी शक होने लगेगा कि बाबा के साथ इस पत्रकार की कोई सांठगांठ तो नहीं है।
वीडियो देखने पर साफ पता चल रहा है कि बाबा पत्रकार के चाचा का नाम बताने से पहले चमत्कार की जो भूमिका बांध रहे हैं, उसको सुनते हुए एबीपी के पत्रकार महोदय खुद को बाबा के सामने लाने का जतन करने में जुट जाते हैं। इस दौरान पत्रकार महोदय के हावभाव देखिए तो साफ पता चल जाएगा कि खुद पत्रकार महोदय को पता है कि अब बाबा उन्हें मंच पर बुलाएंगे। मंच पर जाने की बेचैनी और तैयारी के चलते पत्रकार महोदय बाबा के बिना बुलाए ही लोगों को हटाकर सामने मंच की तरफ बढ़ने के लिए आतुर होने लगते हैं।
फिर जैसे ही बाबा यह कहते हैं कि जिस पत्रकार के चाचा का नाम फलाना है, वह मंच पर आ जाए तो पत्रकार महोदय किसी फिक्स्ड फिल्मी अवॉर्ड की तरह बिना किसी आश्चर्य के तत्काल मंच पर पहुंच जाते हैं।
मंच पर जाते ही पत्रकार महोदय बाबा के किसी पक्के चेले की तरह जनता को यह यकीन दिलाने में जुट जाते हैं कि उनका चैनल और पत्रकारिता, दोनों ही पिछले कुछ दिनों से बाबा की महिमा के आगे नतमस्तक है।
यानी बाबा को चमत्कारी बनाने में एबीपी न्यूज और यह पत्रकार महोदय सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। यदि यह सच न भी हो तो एबीपी के जाने- माने पत्रकार के चाचा का नाम सोशल मीडिया या उसके किसी परिचित से पता करके क्या कोई और भी यह चमत्कार नहीं कर सकता ?
चाचा के नाम के अलावा बाबा ने पत्रकार के बारे में जो ‘ हतप्रभ‘ करने वाली जानकारी अपने भक्तों को एक चमत्कार की तरह दी है, वह दोनों जानकारी पत्रकार और उनके भाई के फेसबुक प्रोफाइल में शुरुआती चंद पोस्ट में ही पब्लिकली उपलब्ध है।
यदि बाबा ऐसी सार्वजनिक या बड़ी आसानी से मिल जाने वाली जानकारियों को यह कहकर अपने भक्तों को बताते हैं कि खुद हनुमान जी ने उन्हें यह जानकारी दी है तो इस पर यकीन करने वाले भक्त भले ही भोले हों लेकिन यह पत्रकार जरुर बहुत शातिर है और पत्रकार कहलाने के लायक नहीं है। पत्रकार अगर किसी नेता, बाबा , माफिया या धनकुबेर की चापलूसी में इतना अंधा हो जाए कि खुद वही काम करने लगे, जिसको उजागर करने का दायित्व उसे मीडिया में लाकर सौंपा गया है तो ऐसे पत्रकार को तो ज्यादा बड़ा अपराधी माना जाना चाहिए।