Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

सोहराबुद्दीन मुठभेड़ : 21 पुलिस अफसरों को बरी करने के खिलाफ अपील पर विचार करेगा बॉम्बे हाईकोर्ट

सोहराबुद्दीन फ़र्ज़ी मुठभेड़ कांड का जिन्न अभी ज़िंदा है और आये दिन किसी न किसी रूप में सतह पर आ जाता है। इस हाई प्रोफाइल मामले में वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह की सीबीआई ने गिरफ्तारी भी की थी और उनके खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल की थी। इस मामले में एक जज लोया की भी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो चुकी है जिसकी जाँच का मामला बॉम्बे हाईकोर्ट में लंबित है। अब बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोहराबुद्दीन के भाइयों द्वारा 21 पुलिस अफसरों समेत कुल 22 आरोपियों को बरी करने के खिलाफ अपील को विचारार्थ स्वीकार कर लिया है और इस कथित फर्जी मुठभेड़ मामले के सभी 22 आरोपियों को नोटिस जारी किया है।

जस्टिस आई. ए. महंती और जस्टिस ए. एम. बदर की पीठ ने सोमवार को अपील विचारार्थ स्वीकार की और आरोपियों को नोटिस जारी किया। सोहराबुद्दीन के भाइयों रुबाबुद्दीन शेख और नायबुद्दीन शेख ने उक्त फैसले को रद्द करने या वैकल्पिक दिशा-निर्देशों के तहत फिर से ट्रायल की मांग की है। बरी किए गए 22 लोगों में से गुजरात और राजस्थान के 21 कनिष्ठ पुलिस अधिकारी शामिल हैं। एक अन्य व्यक्ति गुजरात स्थित उस फार्म हाउस का मालिक है जहां सोहराबुद्दीन और कौसर बी को कथित तौर पर मारने से पहले अवैध रूप से हिरासत में रखा गया था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इससे पहले रुबाबुद्दीन ने गृह मंत्रालय, सीबीआई निदेशक और कैबिनेट सचिव को पत्र लिखकर विशेष सीबीआई जज एस. जे. शर्मा के फैसले के खिलाफ अपील दायर करने का अनुरोध किया था। दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 2 (डब्लूए) का जिक्र अपील में यह कहा गया है कि अपीलकर्ता दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 2 (डब्लूए) के संदर्भ में एक पीड़ित है क्योंकि वह वो व्यक्ति है जिसने अपने भाई और भाभी काे खोया है और इसलिए वो अपील दायर करने का हकदार है।

अपील में कहा गया है कि आरोपियों को बरी करने का फैसला विरोधाभासी है। विशेष न्यायाधीश ने अनुचित धारणाओं और स्पष्ट रूप से गलत सबूतों की सराहना करते हुए अपने फैसले को आधार बनाया है। उनके कार्यों से न्याय का दुर्वहन हुआ है और इसलिए न्याय के सिरों को सुरक्षित रखने के लिए इस माननीय न्यायालय का हस्तक्षेप उचित है।इसके अलावा अपील में यह भी कहा गया है कि बरी करने का फैसला पूरी तरह से विरोधाभासी था। निर्णायक सबूतों की कमी के आधार पर फैसला 358 पन्नों के फैसले में न्यायाधीश शर्मा ने मृतक के परिवार के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त की लेकिन उन्होंने इस मामले में निर्णायक सबूतों की कमी की ओर भी इशारा किया है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

फैसले में कहा है कि इसमें कोई संदेह की बात नहीं है कि सोहराबुद्दीन और तुलसीराम की हत्या की रिपोर्ट है, लेकिन इसमें कोई सजा नहीं हो सकती। साथ ही सोहराबुद्दीन की पत्नी कौसर बी गायब हो गई और सीबीआई की जांच की कहानी कि उसे हत्या करके जला दिया के साक्ष्य भी नहीं हैं। फैसले में कहा है कि इसलिए अभियुक्तों को नैतिक या संदेह के आधार पर दोषी ठहराते हुए दंडित नहीं किया जा सकता। इसलिए मेरे पास यह निष्कर्ष निकालने के अलावा कोई विकल्प नहीं है कि अभियुक्त दोषी नहीं हैं और उन्हें बरी किया जाना चाहिए।

अपील में कहा गया है कि इस मामले में कुल 210 गवाहों की जांच की गई, जिनमें से 92 मुकर गए थे। अपील में इस तथ्य पर सवाल उठाया गया है कि अभियोजन पक्ष द्वारा उन मजिस्ट्रेट को बुलाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया, जिनके सामने ‘मुकरे गवाह’ ने पूर्व में बयान दिए थे। अपील में यह कहा गया है कि यह पूरा ट्रायल न्याय को हराने के लिए आयोजित किया गया। अपील में यह तर्क दिया गया है कि जिस तरह से ट्रायल किया गया, उसे दोबारा करने के लिए मामला बनता है। इस प्रकार अपील में सीबीआई कोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले को रद्द करने या सत्र न्यायालय को सीआरपीसी, 1973 की धारा 386 (ए) के तहत पुन: ट्रायल करने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सोहराबुद्दीन को वर्ष 2005 में कथित तौर पर फर्जी मुठभेड़ में मारा गया था. वर्ष 2018 में एक विशेष अदालत ने गुजरात और राजस्थान के पुलिस अधिकारियों सहित 22 लोगों को इस मामले में बरी कर दिया था। विशेष सीबीआई अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि अभियोजन यह स्थापित करने में विफल रहा कि सोहराबुद्दीन और अन्य-उसकी पत्नी कौसर बी तथा उसके साथी तुलसी प्रजापति को मारने के लिए कोई साजिश रची गई थी और आरोपियों की इसमें कोई भूमिका थी। अदालत ने यह भी कहा था कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि सोहराबुद्दीन और अन्य मारे गए हैं। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के अनुसार सोहराबुद्दीन और कौसर बी नवंबर 2005 में गुजरात एटीएस द्वारा अलग-अलग मारे गए थे और कथित तौर पर फर्जी मुठभेड़ का प्रत्यक्षदर्शी होने के चलते प्रजापति को राजस्थान और गुजरात पुलिस ने 2006 में मार दिया था। विशेष अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली अपील इस साल अप्रैल में सोहराबुद्दीन के भाइयों-रुबाबुद्दीन शेख और नयाबुद्दीन शेख ने दायर की थीं।

सीबीआई के मुताबिक आतंकवादियों से संबंध रखने वाला कथित गैंगस्टर सोहराबुद्दीन शेख़, उसकी पत्नी कौसर बी. और उसके सहयोगी तुलसीराम प्रजापति को गुजरात पुलिस ने एक बस से उस वक़्त अगवा कर लिया था, जब वे लोग 22 और 23 नवंबर 2005 की दरमियानी रात हैदराबाद से महाराष्ट्र के सांगली जा रहे थे। सीबीआई के मुताबिक शेख़ की 26 नवंबर 2005 को अहमदाबाद के पास कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ में हत्या कर दी गई। उसकी पत्नी को तीन दिन बाद मार डाला गया। साल भर बाद 27 दिसंबर 2006 को प्रजापति की गुजरात और राजस्थान पुलिस ने गुजरात-राजस्थान सीमा के पास चापरी में कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement