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सुख-दुख

देखते हैं बस्तर जाने वाली एडिटर्स गिल्ड की टीम चतरा और सीवान जाती है या नहीं

Pushya Mitra : जिलों में पत्रकारिता करने वाले साथियों का जीवन बहुत मुश्किल और जोखिम भरा होता है। ढेर सारी मेहनत, अपेक्षाएं, बदनामियों के बीच वे खुद से और परिवार से लड़ते रहते हैं। जब तक वे दमदार स्थिति में होते हैं संस्थान उन्हें दूहता रहता है। संकट में पड़ गये तो कोई सहारा देने भी नहीं आता। बिहार में दस साल से पत्रकारिता की इस दुनिया को समझा जाना है। कई हादसे देखे जाने और समझे हैं। कई साथियों को खोया है। कुछ साल पहले तो एक पत्रकार साथी को बम से उड़ा दिया गया और उस साथी के अख़बार के अंदर के पन्ने में उसकी छोटी सी खबर छपी थी। अख़बार ने यह नहीं बताया था कि उक्त पत्रकार उसका अपना है। आज हालात बदले हैं। मगर फिर भी जोखिम कम नहीं हुआ। कल चतरा का पत्रकार मारा गया था आज सीवान का। बस्तर में एक हाई प्रोफाइल पत्रकार के घर पत्थर फेंके गये थे तो एडिटर्स गिल्ड की टीम वहां पहुँच गयी थी। अब देखना है चतरा और सीवान के इन साथियों की हत्या पर देश कैसे रियेक्ट करता है। श्रद्धांजली साथी। हमारे पास आपको देने के लिए बस यही है।

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Pushya Mitra : जिलों में पत्रकारिता करने वाले साथियों का जीवन बहुत मुश्किल और जोखिम भरा होता है। ढेर सारी मेहनत, अपेक्षाएं, बदनामियों के बीच वे खुद से और परिवार से लड़ते रहते हैं। जब तक वे दमदार स्थिति में होते हैं संस्थान उन्हें दूहता रहता है। संकट में पड़ गये तो कोई सहारा देने भी नहीं आता। बिहार में दस साल से पत्रकारिता की इस दुनिया को समझा जाना है। कई हादसे देखे जाने और समझे हैं। कई साथियों को खोया है। कुछ साल पहले तो एक पत्रकार साथी को बम से उड़ा दिया गया और उस साथी के अख़बार के अंदर के पन्ने में उसकी छोटी सी खबर छपी थी। अख़बार ने यह नहीं बताया था कि उक्त पत्रकार उसका अपना है। आज हालात बदले हैं। मगर फिर भी जोखिम कम नहीं हुआ। कल चतरा का पत्रकार मारा गया था आज सीवान का। बस्तर में एक हाई प्रोफाइल पत्रकार के घर पत्थर फेंके गये थे तो एडिटर्स गिल्ड की टीम वहां पहुँच गयी थी। अब देखना है चतरा और सीवान के इन साथियों की हत्या पर देश कैसे रियेक्ट करता है। श्रद्धांजली साथी। हमारे पास आपको देने के लिए बस यही है।

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Krishna Kant :  आज एक पत्रकार बिहार में मारा गया. कल एक झारखंड में मारा गया था. उसके पहले यूपी में एक पत्रकार को जिंदा जला दिया गया था. छत्तीसगढ़ में 2012 से अब तक 6 पत्रकारों की हत्या हो चुकी है, चार जेल में बंद हैं. दर्जनों पर या तो मुकदमा है या छत्तीसगढ़ प्रशासन से धमकियां मिल चुकी हैं. यहां जनता इस बात से चिंतित नहीं है कि पत्रकारों की लगातार हत्या हमारे देश, इसके प्रशासन और स्वतंत्रता पर प्रश्नचिन्ह है. लोग हर एक घटना के बाद यह साबित करने में लग जाते हैं कि बिहार में जंगलराज है. यह सही है कि बिहार सबसे बेहतर प्रशासन वाला प्रदेश नहीं है. लेकिन आप बताइए अगर छत्तीसगढ़ में कोई जंगलराज नहीं मानता, अगर झारखंड में कोई जंगलराज नहीं मानता, तो बिहार में हर घटना के बाद जंगलराज कैसे आ जाता है? मैं जानना चाहता हूं कि एक मौत के वक्त लोग उस मौत पर दुखी या गुस्सा होने की जगह बिहार में जंगलराज क्यों सिद्ध करने का प्रयास करते हैं? अगर हजारों करोड़ के तीन घोटाले और करीब 60 हत्या करवाने वाले मध्यप्रदेश में जंगलराज नहीं है तो बिहार में कैसे जंगलराज हो गया? क्या अपराध के मामले में बिहार सर्वोच्च पायदान पर है? क्या जंगलराज की बात इसलिए कही जाती है कि बिहार की सत्ता में लालू हैं और जंगलराज का जुमला उनसे चिपका हुआ है? बिहार की यह प्रोफाइलिंग किस आधार पर की जाती है? खैर, फिलहाल मेरी जरूरी चिंता यह है कि यूपी, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड आदि सभी राज्यों में पत्रकारों की हत्या हो रही है और इस पर कहीं कोई चिंता नहीं है. कोई गुस्सा नहीं है. क्या हत्याएं पार्टी के समर्थन और विरोध के आगे इतनी छोटी हो जाती हैं कि सही सवाल तक न उठ सकें?

पत्रकार पुष्य मित्र और कृष्ण कांत के फेसबुक वॉल से.

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