मजीठिया मामले में भास्कर को एक और झटका, हाईकोर्ट ने लेबर कोर्ट को किया टाइम बांड

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जो लड़ेगा, वो पाएगा, जो सोएगा, वो खोएगा…

मजीठिया मामले में अखबार कर्मियों की जीत और मालिकों की हार का सिलसिला जारी है। लगभग तीन वर्षों से अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे दैनिक भास्कर दिल्ली के 13 कर्मचारियों को मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतनमान और रिकवरी का रास्ता साफ हो गया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने डीएलसी की प्रोसीडिंग पर लगे स्टे पर निर्णय सुनाते हुए निर्देश दिया है कि डीएलसी दो माह में केस का रेफरेंस लेबर कोर्ट को भेजे और लेबर कोर्ट 6 माह में फैसला सुनाए।

हाईकोर्ट में मैनेजमेंट की तरफ से कई वकीलों ने डीएलसी की प्रोसीडिंग खारिज करने के लिए जिरह की। कर्मचारियों की तरफ से श्रमिकों के जाने-माने वकील परमानंद पांडे ने जोरदार तरीके से उनका पक्ष रखा।

आर्डर की कापी पढ़ने / डाउनलोड करने के लिए नीचे क्लिक करें :




Order-02.05.2018-DB-Corp-Ltd.pdf 

गौरतलब है कि मजीठिया से बचने के लिए दैनिक भास्कर मैनेजमेंट अपना संपादकीय कार्यालय दिल्ली से उठाकर रेवाड़ी भाग गया था और मजीठिया वेतनमान की मांग कर रहे कर्मचारियों का तबादला दूर-दराज अन्य राज्यों में कर दिया था। बाद में इन कर्मचारियों की सेवाएं भी समाप्त कर दी गईं।

कर्मचारियों ने माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार मजीठिया वेतनमान और रिकवरी के लिए डीएलसी का दरवाजा खटखटाया था। मैनेजमेंट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की परवाह न करते हुए डीएलसी की प्रोसीडिंग पर दिल्ली हाईकोर्ट से स्टे ले लिया।

करीब डेढ़ साल से यह मामला हाईकोर्ट में लंबित था। 2 मई को माननीय हाईकोर्ट ने स्टे पर निर्णय सुनाते हुए डीएलसी और लेबर कोर्ट को साफ-साफ शब्दों में निर्देश दिए हैं। इस फैसले में सभी कर्मचारियों के लिए संदेश है कि जो लड़ेगा, वो पाएगा और जो सोएगा, वो खोएगा।

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Comments on “मजीठिया मामले में भास्कर को एक और झटका, हाईकोर्ट ने लेबर कोर्ट को किया टाइम बांड

  • Madan kumar tiwary says:

    इसमे जीत तो मैनेजमेंट की हुई ,पत्रकारों का वकील परमानन्द पांडे को अभी वकालत सीखने की जरूरत है ,डिस्प्यूट ऑफ अमाउंट का सवाल तब उठेगा जब मैनेजमेंट की तरफ से कोई राशि ऑफर की जाएगी और पत्रकार को मान्य नही होगा। इस केस के फैसले ने देशभर के पत्रकारों की लड़ाई को कमजोर कर दिया तथा अब मामला फिर शून्य से शुरू होगा, जहां तक समय की बात है तो इस मुकदमे के पत्रकारों को कह दीजिये लिट्टी चोखा एक साल तक खाये, कभी कभी पत्रकारों के जाहिलपन पर बहुत इरिटेशन होता है,हर जगह ये खुद को काबिल समझते है सबसे ज्यादा । यह परमानन्द पांडे 17 (1 ) की प्रोसिडिंग को गलत मान लिया !!!!! आश्चर्य है । भगवान रक्षा करें ऐसे वकीलों से । इस परमानन्द पांडे की मूर्खता का असर हमलोगों के केस पर भी पड़ेगा ।

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  • Madan kumar tiwary says:

    At this stage, learned counsel for the respondents no.4 to 16,
    having admitted the legal position as referred to in preceding
    para, on instructions, submits that he has no objection in case
    the proceedings under Section 17 (1) of WJ Act pending before
    the ALC at the instance of respondents No.4 to 16 are quashed
    and the State Government is directed to refer the disputes raisedby them under Section 17 (2) of the WJ Act for adjudication to
    the Labour Court.
    8. In the circumstances, with the consent of learned senior counsel
    for the petitioner and learned counsel for the respondents, this
    writ petition is disposed of with a direction that the proceedings
    pending before ALC under Section 17 (1) of WJ Act stand
    quashed.
    यह हार हुई है पत्रकारों की । कृप्या भविष्य में फैसले को पढ़कर,समझकर ,हेडिंग दे । परमानन्द पांडे की हरकत का खामियाजा हमको भुगतना पड़ेगा, सबको डूबा दिया उसने ।

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    • Alkshendra singh negi says:

      मैनेजमेंट के दलालों के लंबे हाथ हैं. एक ओर वे मीडिया कर्मियों के हितैषी के रूप में दिखते हैं दूसरी ओर मैनेजमेंट के हितों को भी साध रहे हैं. दलाली के साथ इन्हें कानून की जानकारी भी हो गई है. यदि ये शख्स पत्रकार होते तो अपने संघर्ष में जुटे साथियो को कभी भी जाहिल नहीं कहते, जो ये खुद हैं. इनकी अभद्र भाषा बताती है ये क्या हैं. इन महाशय के कमेंट पर कुछ कहना भी गरिमा पूर्ण नहीं है पर ऐसे लोगों को बेनकाब करना भी जरूरी है.
      मैनेजमेंट की जीत आप बता रहे हैं तो इसका मतलब ये कि मैनेजमेंट के वकील की मांग पर ही dlc को दो माह में केस रैफर करने और Labour court को 6 माह में केस निपटाने का फैसला सुनाया गया!! आप मजीठिया की लड़ायी लड़ रहे साथियों को गुमराह कर रहे हैं. परमानन्द पांडे जी सुप्रीम कोर्ट में मजीठिया का केस जिताने वाले तीन वकीलों में शामिल थे और तत्कालीन चीफ़ जस्टिस सथ्यशिवम ने अपने एतिहासिक फैसले में लिखा है कि इन लोगों ने मीडिया वर्कर्स का पक्ष रखा. यदि आपको थोड़ी बहुत जानकारी हो तो सुप्रीम कोर्ट में मजीठिया की Contempt पिटिशन भी पांडे जी ने दाखिल की थी और आप उन्हें कानून का पाठ पढ़ाना चाहते हैं!! आप निहित स्वार्थ साधने के लिए मजीठिया की लड़ायी को कमजोर बनाना चाहते हैं जिसमें आप कभी भी कामयाब नहीं हो सकते हैं.

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