बिनोद बिहारी वर्मा-
बिहार में अगला इलेक्शन लोकसभा का होगा, और उसके बाद विधान सभा का। बिहार को राजनीति का अखाड़ा कहा जाता है। देश की पूरी राजनीति पर चर्चा सुबह दातून करते – करते हो जाती है। फिर पूरा दिन चाय की दुकान हो, लोकल ट्रैन का सफर हो, बस का सफर… सियासी बतकही चलती रहती है।
बिहार के चुनावी मुद्दे अभी तक वही रहे हैं जो देश के होते हैं परन्तु मुझे लगता है अगले चुनाव का मुद्दा बदलने वाला है। आईये देखते हैं, क्या है बिहार में मुद्दा!
बिहार में उद्योग धंधे बाक़ी प्रदेशों की अपेक्षा काफी कम हैं। अधिकतर आबादी खेती पर निर्भर है और पढ़े लिखे युवा सरकारी नौकरी पर। सरकारी नौकरी इसलिए क्योंकि बिहार में प्राइवेट नौकरी बहुत कम है। तीसरा तबका है, जिसको कोरोना काल में एक अलग नाम दे दिया गया -प्रवासी मज़दूर।
अब ये प्रवासी भी इसीलिए बिहार के बहार प्रवास करते है क्योंकि बिहार में इनको काम नहीं मिल पाता है। कुल मिलाकर बिहार में नौकरी की बहुत जरुरत है।
नीतीश और तेजस्वी ने नौकरी को काफी तवज्जो दिया है। उनका पूरा ध्यान नौकरी पर आ के टिक गया है क्योंकि उनको बिहार की नस के बारे में पता है। वैसे भी लालू और नितीश दोनों ही धुरंधर नेता हैं और उनसे बेहतर बिहार की जनता को कौन समझ सकता है। साथ में अब युवा तेजस्वी का भी दिमाग है।
उनको पता है कि अब पहले वाले मुद्दे पुराने हो गए हैं। आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि बिहार का अगला चुनावी मुद्दा क्या हो सकता हैं। परन्तु मेरे हिसाब से बीजेपी को भी महागठबंधन ने एक मौका दिया है और वो है बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का।
अब देखना है की बीजेपी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देकर इलेक्शन में जाती है या धर्म पर ही अपनी राजनीति जारी रखती है। वैसे बीजेपी के पास भी सरकारी नौकरी देने की दौड़ में शामिल होने का काफी स्कोप है। कुछ नहीं तो अगले दो सालो में भारतीय रेल में ही मेगा वेकन्सी ले के आ जाये। अब ये तो बीजेपी को देखना है कि उनके हिसाब से बिहार का क्या मुद्दा है? वैसे मोदी जी नैरेटिव बदलने के मास्टर माने जाते हैं।
मेरे नजरिये से कोई भी नैरेटिव हो, परन्तु बिहार के युवा का मुद्दा तो रोजगार ही होगा। अगर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मोदी जी दे देते हैं तो ये उनका मास्टर स्ट्रोक हो सकता है।
लेखक बिनोद बिहारी वर्मा बैंकिंग प्रोफेशनल हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.