आज की हमारी टैक्सी के चालक थे, राहुल। आगे का सरनेम दीक्षित था। संयोग यह, कि बुक करते ही तीन मिनट में पहुँचने की सूचना आई। दिल खुश हो गया। गाड़ी में बैठते ही ओटीपी बताया, फिर पूछा, कहाँ के हो राहुल? बोले हरदोई के। आगे राहुल जी बोले, कि सुना है, झारखंड में बीजेपी हार गई?
मैंने कहा, हाँ उसे 81 में 25 सीटें ही मिली हैं। वे कुछ उदास हो गए। कहने लगे, कि यह बुरा हुआ, भाजपा को जीतना चाहिए था। मैंने कहा- क्यों, तो बोले- देखिए, भाजपा ने 370 को हटाया, अयोध्या में राम मंदिर बनवाएगी। मैंने पूछा, कि 370 हटने से तुम्हें क्या फायदा हुआ? या राम मंदिर बनने से क्या लाभ अथवा हानि होगी?
दीक्षित जी थोड़ा लड़खड़ाए, फिर बोले- सब कुछ हानि-लाभ थोड़े है! हम ब्राह्मण हैं, हमें धर्म की परवाह करनी चाहिए। और 370 हटने से पाकिस्तान टापता रह गया। मैंने कहा, “दीक्षित जी, मान लो तुम्हें आज एक भी सवारी न मिले, कल भी न मिले और परसों भी। तब भी आप राम मंदिर बनाए जाने से खुश होगे। 370 हटने और पाकिस्तान की मात से भी?”
अब दीक्षित जी उदास हो गए, बोले- “भूखे भजन न होय गुपाला!” मैंने कहा- “बस दीक्षित जी, मैं भी यही कह रहा हूँ, रोटी न मिले तो न राम मंदिर सुहाएगा, न पाकिस्तान की मात! रोटी बड़ी चीज़ है। रोटी मिल जाएगी तो हम मन ही मन हनुमान चालीसा का पाठ कर लेंगे, और न मिली तो एक चौपाई याद नहीं आएगी!”
वह युवा ड्राइवर मुझसे प्रभावित हुआ, लेकिन असमंजस में था। कहने लगा, लेकिन हम ब्राह्मण जाएँ तो कहाँ! एक बीजेपी ही हमारा ठौर है। मैंने कहा, ठीक है, लेकिन यह तो बताओ, कि आज अगर बीजेपी ही ब्राह्मणों का ठौर है, तो बीजेपी में कोई ब्राह्मण नेता का नाम बताओ। अब राहुल जी बगलें झाँकने लगे।
फिर बोले- मुसलमान!
मैंने जवाब दिया, कि 25 करोड़ हैं, और यह बताओ, कि कब नहीं थे?
उनका आग्रह था, कि उनको पाकिस्तान और बांग्ला देश मिल गया था।
मैंने उनसे पूछा, कि उन्होंने 800 साल इस देश पर राज किया है। वे यह देश क्यों छोड़ते? दूसरे बटवारा आधे-आधे का नहीं हुआ था। फिर अगर किसी घर में चार भाई रहते हों, उनमें से एक लड़ाका है और उसकी बहू भी, तो भाई, उसी को तो अलग करोगे, सबको तो नहीं!” बोले- हाँ, तो मैंने कहा, कि जिनको साझे घर में रहना था, वे यहीं रहे, जिनको अलगौझा करना था, वे चले गए।
अब दीक्षित जी को मेरी बात गले से उतरी, बोले आप सही कह रहे हैं। तब तक मेरा गंतव्य आ गया। उन्होंने सवारी को फाइव स्टार दिए, और मैंने उनको।
जनसत्ता, अमर उजाला समेत कई अखबारों में संपादक रह चुके वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल की एफबी वॉल से.