रंगनाथ सिंह-
25 जुलाई 2019 की पोस्ट-
भारत की हर जाति समान रूप से जातिवादी है, ब्राह्मण उसके अपवाद नहीं।
7 अगस्त 2022 की पोस्ट-
दक्षिणपंथी और वामपंथी Brahmin Supremacist भारत की सामाजिक एकता की राह के सबसे बड़े रोड़े हैं।
जिन लोगों को पहली पोस्ट पसन्द आयी थी उनमें से बहुतों को दूसरी सख्त नापसन्द आयी। पहली में एक जाति पर से जातिवाद का बोझ हटाकर सभी जातियों के कन्धों पर साझा कर दिया गया था तो उन्हें अपने कन्धे हल्के लगे होंगे। दूसरी में दूसरे नदारद हैं तो बहुतों से अकेले सारा बोझ नहीं सहा गया और कराह उठे। वहीं जिन लोगों को पिछली पोस्ट बुरी लगी थी उनमें कई को कल वाली अच्छी लगी होगी।
समाज में ज्यादातर लोग मोटी-मोटी बातें ही समझ पाते हैं। महीन बातों को समझने की उनमें या तो समझ नहीं होती या फिर समझ होती है लेकिन समझने की फुरसत या मंशा नहीं होती।
भारत की सभी जातियाँ जातिवादी हैं इसमें कोई शक नहीं है। दुनिया भर के समाजों में इसी तरह का सामुदायिक विभाजन मौजूद। कोई उन्हें कबीला कहता है, कोई नस्ल कहता है, कोई कुछ, कोई जाति। अफगानिस्तान में पख्तून और हाजरा का हिंसक संघर्ष अभी जारी है। यह झूठ है कि कोई एक जाति ही जातिवादी है, बाकी जातियाँ नहीं हैं। यह कुछ वैसे ही जैसे कोई कहे कि एक धर्म धार्मिक है, बाकी नहीं हैं। समस्या यह है कि किसी समाज या देश के संसाधनों पर कुछ जातियों का वर्चस्व असंगत स्तर तक बढ़ जाए।
मोटी बुद्धि का प्रयोग करने पर कई बार महीन बातें समझ में नहीं आतीं। सुई की जगह तलवार चलाने के दुष्परिणाम आप सभी समझते हैं। Supremacist वह होता है जो खुद को दुनिया में सबसे सुपीरियर समझता है। व्यक्ति के स्तर पर खुद को दूसरों से बेहतर समझना, अहंकार या अहमरक्षा माना जाता है लेकिन जब एक बड़ा समूह इसी बीमारी से ग्रस्त हो जाए तो उसका दुष्परिणाम समाज को भोगना पड़ता है।
भारत के नजरिए से दुनिया को देखें तो इस समय तीन तरह के Supremacist मार्केट में हैं, White Supremacist, Islamic Supremacist और Brahmin Supremacist. सभी Supremacist में एक लक्षण साझा है कि उनको लगता है कि वो जन्मजात दुनिया में सबसे सुपीरियर हैं! डोनाल्ड ट्रम्प के चुनाव हारने के बाद सफेद Supremacist अमेरिकी संसद भवन में घुस गए थे। सफेद सर्वश्रेष्ठतावादी सोचते हैं कि उनका पैदाइशी रंग ही उन्हें इसलिए मिला है क्योंकि वो दुनिया में सबसे श्रेष्ठ हैं।
Islamic Supremacist का तो कहना ही क्या है! 1300 साल में दुनिया की करीब 23 फीसदी आबादी आज मुसलमान है। दुनिया में ऐसा कोई देश मुझे याद नहीं आता, जहाँ किसी मुसलमान हुक्मरान की लम्बी हुकूमत न रही हो और वहाँ की 23 फीसदी आबादी मुसलमान हो। आधुनिक मार्केटिंग कम्पनियों के उदय से पहले ही ‘Art and science of Persuasion’ का बखूबी इस्तेमाल करके कुछ देशों में राजा को ही धर्मांतरित करा लिया और चूँकि राजा को भी इस सर्वश्रेष्ठतावाद में रस आता था तो प्रजा के पास कोई विकल्प ही नहीं बचा। हो सकता है कि कुछ साथियों को यह बात कड़वी लगे लेकिन आप आगे का उदाहरण देखकर ही आगे की राय बनाएँ।
रोम के राजा Constantine प्रथम का जन्म ईसा मसीह की मौत के करीब ढाई सौ साल बाद हुआ। कुछ समर्पित पादरियों के प्रयास से वह ईसाई हो गया। ईसा के जन्म से Constantine के गद्दी पर बैठने से पहले ईसाइयत के प्रसार की रफ्तार और उसके बाद के प्रसार की दर से तुलना कर सकते हैं। वैसे भी कई विद्वान मानते हैं कि ईसाई धर्म के प्रसार में ईसा से ज्यादा जॉन का योगदान था। अगर आप ‘तुलनात्मक धर्म’ के छात्र नहीं हैं तो कृपया इस मसले पर बहसबाजी से परहेज करें। जनरल आब्जरवेशन और गूगल सर्च के दम पर किसी भी विषय में कूद जाने वाले मोटी बुद्धि के होते हैं।
Islamic Supremacist ने दुनिया में क्या कर रखा है यह तो सर्वज्ञात है। वो अभी तक यह नहीं मान पाए हैं कि आज भी दुनिया की करीब 77 प्रतिशत आबादी बड़े आराम से अपने-अपने धार्मिक यकीन के हिसाब से स्वर्ग या नरक जा रही है।
अब बात करते हैं, इस पोस्ट के मुख्य अतिथि Brahmin Supremacist की। इस वर्ग को लगता है कि किसी एक जाति में पैदा होने से व्यक्ति बाकी दुनिया से श्रेष्ठ हो जाता है। इसका प्रमाण यह वर्ग उन किताबों से निकालकर देता है जो खुद ऐसी ही सोच वालों ने लिखी हैं। आज अच्छे से दसवीं पास बच्चा भी White Supremacist और Islamic Supremacist द्वारा लिखी गयी किताबों के आधार पर उनको बाकी दुनिया से सुपीरियर नहीं मानेगा लेकिन भारत में कुछ लोग Brahmin Supremacist द्वारा लिखी किताबों के आधार पर चाहते हैं कि बाकी जातियाँ उनकी ऐसी मूढ़ता को या तो मान लें या सुनकर चुप रहें। लेकिन ऐसा होगा नहीं।
कुछ साथियों ने कल वाली पोस्ट को ब्राह्मण-विरोधी मान ली जबकि मैंने ब्राह्मण जाति के प्रति सहानुभूति के साथ वह पोस्ट लिखी थी। Brahmin Supremacist की परोक्ष मदद से कुछ लोग गैर-ब्राह्मण जातियों के बीच उनका वही हाल बनाने में लगे हैं जो हिटलर के जर्मनी में यहूदियों का था।
देश में Brahmin Supremacist के नए सिरे से उभार के पीछे बड़ा हाथ मौजूदा राजसत्ता का भी है। केंद्र में सत्ताधारी पार्टी भाजपा का शुरुआती आधार ब्राह्मण और बनिया माने जाते थे। फिर उसमें धीरे-धीरे अन्य जातियाँ जुड़ीं तब जाकर उसे आज वाली सत्ता मिली। आज भाजपा को जातीय लामबन्दी का जादूगर माना जा रहा है। भाजपा की ताकत बढ़ने के साथ-साथ बहुत से ब्राह्मणवादी विचारकों को लगने लगा है कि यह उनके ब्राह्मणत्व का ही परिणाम है वरना!
एक समय तक विद्या और सुसंस्कार ब्राह्मण की पूँजी माने जाते थे। भाजपा के सत्ता में मजबूत होने के साथ-साथ ब्राह्मणों में तलवार का प्रेम बहुत बढ़ा है। पिछले कुछ सालों में Brahmin Supremacist ने पुष्यमित्र शुंग, दाहिर और परशुराम इत्यादि को रिवाइव किया है। इस पूरे रिवाइवल का आशय यह है कि भारत में लड़ाका समझी जाने वाली अन्य जातियों के बरक्स ब्राह्मण भी लड़ने में कम नहीं हैं! आप सोचिए, ब्राह्मण की परम्परागत छवि से यह नई गढ़न कितनी उलट है।
कुछ मोटी अक्ल वालों को लगता है कि बाकी लोग उनके इस ‘राइज’ से डरते या जलते हैं, इसलिए इसकी आलोचना करते हैं! ये समझ नहीं पाते कि आप तीन खोजेंगे तो दूसरे तेरह खोज निकालेंगे। मुझे लगता है कि Brahmin Supremacist को ऐसा विभ्रम सदियों से पीछे देखते रहने के कारण होता है। वो आगे नहीं देख पाते। जब देखो तब पीछे देखते रहते हैं, ये रहा वैदिक काल, वो रहा दाहिर काल, वो रहा परशु काल, वो रहा शुंग काल! बच्चे भी जानते हैं कि रिवर्स गेयर में कोई गाड़ी बहुत दूर तक नहीं चलायी जा सकती। आगे नहीं देखेंगे तो अन्त सुखद नहीं होगा।
कल वाली पोस्ट मूलतः एक असली शंकराचार्य एवं कुछ अन्य प्रवचनकर्ताओं के कई वीडियो देखने के प्रभाव में लिखी गयी थी। परसों भी उन्हीं शंकराचार्य के प्रभाव में विश्व-बैंक वाली पोस्ट लिखी। कल ट्विटर पर किसी ने उनका प्रवचन ट्वीट कर दिया तो फिर यह टिप्पणी वहाँ और फिर यहाँ की। ऐसा नहीं है कि वह कलियुगी शंकराचार्य अपनी तरह के अकेले हैं। पिछले कुछ समय में सोशलमीडिया पर ऐसे Brahmin Supremacist के वीडियो वायरल होते रहे हैं। किसी के प्रिय राजनेता को सत्ता मिल जाने से वह सुकरात नहीं हो जाता। सिकंदर जैसा शागिर्द होने के बाजवूद अरस्तू को सुकरात और प्लेटो से सुपीरियर नहीं माना जाता।
ऐसा भी नहीं है कि ब्राह्मणों में केवल Brahmin Supremacist ही हैं। कलियुगी शंकराचार्य के कुतर्कों के बरक्स रामभद्राचार्य को रखा जा सकता है। यह देखकर खुशी हुई कि दृष्टिबाधित होने के बावजूद रामभद्राचार्य जो देख सकते हैं वह कलियुगी शंकराचार्य नहीं देख पा रहे हैं। रामभद्राचार्य ने अपने प्रवचन में असली आदि शंकर का हवाला देते हुए कहा कि कोई भी ‘शूद्र’ इसे पढ़ेगा तो उसका खून खौलना स्वाभाविक है। रामभद्राचार्य ने साफ कहा कि पुरानी पोथियों में शूद्रों और स्त्रियों को लेकर जो अनर्गल बातें लिखी हैं उनको त्याग कर ही आगे बढ़ा जा सकता है। मेरा सुझाव है कि Brahmin Supremacist 21वीं सदी की हकीकत को स्वीकार करें। सचमुच में न कि दूसरों के सामने दिखावे भर के लिए।