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साहित्य

मुक्तिबोध जैसे कवि बच्चों के लिए नहीं, बूढ़ो के लिए हैं : डॉ.बुद्धिनाथ मिश्र

पाँचवां अनुष्का सम्मान लेने के मौके पर डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र बोले- ”नकारात्मक कवितायें पढ़ा कर विद्यार्थियों के कोमल मन को विद्रोही और अपराधी बनाया जा रहा है”

आलोचकों ने हिंदी गीतों को कविता की मुख्य धारा से यह कहकर खारिज़ किया कि जटिल अनुभूतियां गीतों में नहीं आ सकतीं. हिंदी के कुछ समर्थ गीतकारों ने इस चुनौती को स्वीकार किया जिनमें डॉ.बुद्धिनाथ मिश्र अग्रगण्य हैं. ”यह महाभारत अजब है कौरवों से लड़ रहे कौरव, सरकस के बाघ की तरह हमको लपटों के बीच से निकलना है”. प्रभृति काव्य पंक्तियों से उन्होंने गीत की शक्ति को प्रदर्शित किया. उक्त बातें डॉ. रामजी तिवारी ने वरिष्ठ गीतकार डॉ.बुद्धिनाथ मिश्र को पाँचवां अनुष्का सम्मान प्रदान करते हुये कही.

पाँचवां अनुष्का सम्मान लेने के मौके पर डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र बोले- ”नकारात्मक कवितायें पढ़ा कर विद्यार्थियों के कोमल मन को विद्रोही और अपराधी बनाया जा रहा है”

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आलोचकों ने हिंदी गीतों को कविता की मुख्य धारा से यह कहकर खारिज़ किया कि जटिल अनुभूतियां गीतों में नहीं आ सकतीं. हिंदी के कुछ समर्थ गीतकारों ने इस चुनौती को स्वीकार किया जिनमें डॉ.बुद्धिनाथ मिश्र अग्रगण्य हैं. ”यह महाभारत अजब है कौरवों से लड़ रहे कौरव, सरकस के बाघ की तरह हमको लपटों के बीच से निकलना है”. प्रभृति काव्य पंक्तियों से उन्होंने गीत की शक्ति को प्रदर्शित किया. उक्त बातें डॉ. रामजी तिवारी ने वरिष्ठ गीतकार डॉ.बुद्धिनाथ मिश्र को पाँचवां अनुष्का सम्मान प्रदान करते हुये कही.

हिंदी अध्येता डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय ने कहा कि मिश्र जी के गीतों में निजी एकांतिक अनुभवों से लेकर सामाजिक जीवन के तमाम संदर्भ समाहित हैं. इनमें प्रेम और सौंदर्य का उदात्त चित्रण, भारतीय परंपरा के श्रेष्ठतम मानक और समकालीन विश्व के अधिकांश संदर्भों को एक साथ देखा जा सकता है. इनका पारायण अपने आपमें एक उत्तेजक अनुभव है. अनुष्का के संपादक रासबिहारी पाण्डेय ने कहा कि वैसे तो डॉं. मिश्र के कई गीत हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं किंतु चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी उसने कहा था की तरह उनका एकमात्र “गीत एक बार और जाल फेंक रे मछेरे, जाने किस मछली में बंधन की चाह हो” उन्हें हिंदी साहित्य में अमर रखने के लिए पर्याप्त है. अनुष्का हिंदी कविता को लोक में प्रतिष्ठित करने वाले रचनाकारों को चिन्हित और सम्मानित करने की दिशा में आगे भी सक्रिय रहेगी.

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अपना मनोगत व्यक्त करते हुये डॉ.बुद्धिनाथ मिश्र ने कहा कि गीत को वे न सिर्फ जीते और लिखते रहे हैं बल्कि पूरे आत्मविश्वास के साथ गीत की लड़ाई भी लड़ते रहे हैं. पिछले पचास वर्षों से कुछ लोगों ने हिंदी गीतों के खिलाफ एक अभियान चला रखा है. पाठ्यक्रमों में आशा विश्वास और उल्लास से भरी हुई कवितायें पढ़ाने की बजाय बहुतेरी नकारात्मक कवितायें पढ़ायी जा रही हैं जिससे विद्यार्थियों का कोमल मन विद्रोही और अपराधी हो रहा है. मुक्तिबोध जैसे कवि बच्चों के लिए नहीं बूढ़ों के लिए हैं. हिंदी के अमर गीतों को पाठ्यक्रमों से दूर रखने का सुनियोजित षड्यंत्र चल रहा है. हम सबको मिलकर यह लड़ाई लड़नी होगी. दूसरे सत्र में एक कवि सम्मेलन आयोजित था जिसमें पं.किरण मिश्र, कैलाश सेंगर, देवमणि पाण्डेय, हस्तीमल हस्ती, उबेद आजमी, शेखर अस्तित्व, नेहा सिंह, चित्रा देसाई, रेखा बब्बल आदि ने काव्य पाठ किया. कार्यक्रम का संचालन डॉ.अशोक तिवारी ने एवं धन्यवाद ज्ञापन अरविंद राही ने किया.

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