मजीठिया कानून के साथ ही सुप्रीम कोर्ट का मखौल उड़ाते हुए ‘नवभारत’ दैनिक समाचार पत्र ने छत्तीसगढ़ में अपनी बिलासपुर व रायपुर यूनिटों को 1 जुलाई से अलग कर दिया है. जिला कार्यालयों में खासतौर पर ऐसे लोगो को प्रमुख के तौर पर बिठाने की तलाश की जाती है, जो प्रेस की आड़ में अपन धँधा चलाते हैं, क्योंकि उगाही का काम केवल ऐसे लोग ही कर सकते हैं.
एक विशुद्ध सम्पादकीय के व्यक्ति से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती. ब्यूरो चीफ के पद पर कार्य करने के लिये कार अनिवार्य है। कोई शैक्षणिक योग्यता ना हो तब भी कोई बात नहीं। केवल विज्ञापन का टारगेट पूरा होना चाहिये। नैतिकता और मूल्य गये तेल लेने। ऐसी मूल्यों वाली बातें अब बीते कल की हो चुकी हैं. लेकीन प्रबन्धन द्वारा दिये जाने वाले एक नम्बर की तनख्वाह से कार कैसे मेनटेन होती है, कोई नहीं पूछता खुद को बुद्धिजीवी और समाज के रक्षक समय समय पर सरकार की बदसलूकी के विरुध्द आंदोलनों के प्रणेता भी एक विज्ञप्ति छपवाने के लिये इनकी चाकरी करते फिरते हैं. जिले से लेकर ब्लॉक स्तर तक ऐसी ही स्थिति है.
यही दौर चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं, जब मीडिया प्रबन्धनों में केवल माफिया और ठेकेदार और कालाबाजारियों का ही राज़ होगा। विशुद्ध पत्रकार पूरी तरह से ये कर्मभूमि त्याग देंगे क्योंकि मजीठिया लागू कराये बिना जो भीख दी जाती है, ऊसी के भरोसे जीवन निर्वहन सम्भव नहीं है.
ये लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की एक शर्मनाक पराजय होगी जिससे मीडिया मालिकों के वारे न्यारे हो जायेंगे। जो रहा सहा विरोध है, वह भी जल्द ही समाप्त हो जयेगा. बहरहाल यूनिट को अलग करने के बाद अब नवभारत प्रबंधन को जिले कार्यालयों से दस लाख रुपये हर महीने चाहिये। इसका प्रबंध कैसे होगा इससे फर्क नहीं पड़ता। जिले में पदस्थ प्रमुख अपनी साख और धंधा दोनों बचाने के लिये पूरा दम खम आजमा रहे है. क्योंकि विज्ञापन का येह टारगेट पूरा नहीँ होने पर कुर्सी खाली करने के साफ निर्देश भी जारी हो चुके हैं. काम करने वालो की कोई इज्जत नही हैं. जैसे तैसे पेपर भरा जाता हैं बस.
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित
ram kumar
July 5, 2015 at 12:53 pm
१० लाख नवभारत ऐसे मांग रहा है जैसे १० रूपए हो. कोई ब्यूरो चीफ नवभारत का नाम लेगा और लोग तिजोरी से पैसा निकालकर देगा. बड़े जिलों के अलावा १० लाख की वसूली संभव नहीं. ओ भी तब जब सरकारी एड आधे से ज्यादा मिले.