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सियासत

विजयन, तुमने निराश किया कामरेड!

शीतल पी सिंह-

केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने एकाएक अपने को देश के सार्वजनिक आकाश में अर्श से फ़र्श पर खुद ला पटका। वे पहले भी विवादित व्यक्तित्व रहे हैं। उन्होंने लंबे समय तक केरल में सीपीएम के पार्टी सचिव की भूमिका निबाही । तब उन पर अपने विश्वासपात्रों को पार्टी की महत्वपूर्ण भूमिकाओं में स्थापित करने और आलोचकों को किनारे करने के आरोप लगते रहे हैं । सीपीएम के केरल के सबसे वरिष्ठ और लोकप्रिय नेता वी एस अच्युतानंदन से उनका विवाद पार्टी के शीर्षस्थ नेतृत्व यानि पोलित ब्यूरो तक हल करने में असफल रहा था ।यह सब पार्टी के बाहर सार्वजनिक रूप से जाने गये तथ्य हैं ।

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देश के वामपंथी दलों में सीपीएम में दलीय अनुशासन उनकी प्रमुख शक्ति रहा है । बहुत बुरे वक्तों में भी वे अनुशासित बने रहे और इसकी वजह से पुनः पुनः कई जगह अपनी खोई ज़मीन वापिस हासिल कर सके । उन्होंने एक समय उनके सबसे लोकप्रिय नेता ज्योति बसु को इसी अनुशासन की ताक़त से प्रधानमंत्री बनने से रोक लिया था और सीताराम येचुरी को राज्यसभा में तीसरी बार नहीं भेजा ।

पिनाराई विजयन ने बीते पाँच साल के मुख्यमंत्री काल में केरल में अपने को उत्तरोत्तर पुराने विवादों की नकारात्मकता से उबार लिया था । यही वजह है कि केंद्रीय एजेंसियों द्वारा जब सोने की तस्करी में उनके करीबी कुछ अधिकारियों को धरा पकड़ा गया और मामले को उनके कॉलर तक खींचने का प्रयास किया तो वह बूमरैंग कर गया और हालिया चुनाव के नतीजों ने तो एक नये नायक के रूप में विजयन को राष्ट्रीय फ़लक तक पर पेश कर दिया था । इससे बंगाल में बुरी तरह से पराजित हो रही इनकी राज्य इकाई को भी नैतिक संबल मिलता रहा और बाक़ी देश में भी वामपंथी राजनीति की निर्मम आलोचना के ज्वार को एक हद तक जवाब देने में वामपंथियों को तार्किकता मिलती रही ।

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पर विजयन ने दूसरी पारी में एकाएक ऐसे फ़ैसले लिए जिनसे उन्होंने अपने व्यक्तित्व को देश के लोकप्रियता के आकाश में बौना साबित किया । उन्होंने सारे पुराने मंत्रियों को ड्राप किया और एक “फ़्रेश” मंत्रिमंडल पेश किया जिसमें उनका दामाद और पार्टी की राज्य इकाई के सचिव की पत्नी शामिल है । उनके दामाद सीपीएम के युवा संगठन डीवाईएफआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष तब रहे हैं जब वे उनके दामाद नहीं थे लेकिन यह सफ़ाई उस कालिख को पोतने में असफल है जो अचानक विजयन ने अपने धवल होते चेहरे की ओर आकर्षित कर ली है ।

विजयन ने इस ऐतिहासिक मौक़े पर जो रास्ता चुना है वह वही है जिसके लिये स्टालिन की आलोचना होती है । वे इससे बच सकते थे । ऐसा वे करते हैं जो नेतृत्व की दूसरी संभावनाओं को पहले ही इसी तरह के कपट से नष्ट कर देते हैं । उनकी पिछली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहीं के के शैलजा को दुनियाँ भर में और देशभर में ऐसी ही संभावना के तौर पर देखा गया था और इसीलिए चारों तरफ़ इस समय “शैलजा” का नाम गूंज रहा है!

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देश के राजनैतिक रंगमंच पर जितने भी छेत्रीय नायक हैं मसलन केजरीवाल ममता बनर्जी या कोई और, ये सभी इसी तरह के आचरण के लिए आलोचित हैं कि ये अपने दलों में दूसरी संभावनाओं को हर संभव बौना करते रहते हैं । ये सब बोनसाई के खेतिहर हैं , विजयन की ऐसी कोई मजबूरी नहीं थी !

आख़िर में यही कि “विजयन, तुमने निराश किया कामरेड!”

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एक प्रतिक्रिया ये भी-

1 Comment

1 Comment

  1. विजय सिंह

    May 19, 2021 at 8:50 pm

    परिवारवाद और चहेतों को राबड़ी बांटने के मामले में विजयन पीछे कैसे रहते ? कभी न कभी मुहूर्त तो करना ही था।

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