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उत्तर प्रदेश

कोठी-भट्ठे-कार वालों ने आपस में कर ली लोहिया आवासों की बंदरबांट, सरकार खामोश

इलाहाबाद। अंधेरगर्दी की भी हद है। सरकारी योजनाओं में पलीता लगाने को बेईमानों में होड़ मच गई। जिन पर बेहतरी की जिम्मेदारी थी वो ही लूटने में जुट गए। सत्ता से जुड़े नेता, अफसर दोनों ही बेईमान की भूमिका में आ गए।…और प्रदेश सरकार की अति महत्वाकांक्षी लोहिया आवास योजना में करोड़ों रूपए का ‘खेल’ कर गए। बंगला, कोठी में रहने वाले हों या टवेरा, क्वालिस, फार्चूनर से चलने वाले करोड़पति, …ब्लाक-तहसील के कुछ बेईमान कर्मचारियों ने कागजों में फेरबदल कर इनको गरीब दिखा दिया और दे दिया लोहिया आवास। इतना ही नहीं, करीब बीस फीसदी मामले ऐसे हैं जहां खुद ग्रामप्रधानों ने अपने ही परिवार में लोहिया आवास रेवड़ी की तरह बांट लिए। जबकि वास्तविक हकदार टकटकी बांधे निहार रहे हैं। पूर्वांचल यूपी के किसी भी गांवों में चले जाइए, इस तरह के मामले तकरीबन हर गांव में मिल जाएंगे।

<p>इलाहाबाद। अंधेरगर्दी की भी हद है। सरकारी योजनाओं में पलीता लगाने को बेईमानों में होड़ मच गई। जिन पर बेहतरी की जिम्मेदारी थी वो ही लूटने में जुट गए। सत्ता से जुड़े नेता, अफसर दोनों ही बेईमान की भूमिका में आ गए।...और प्रदेश सरकार की अति महत्वाकांक्षी लोहिया आवास योजना में करोड़ों रूपए का ‘खेल’ कर गए। बंगला, कोठी में रहने वाले हों या टवेरा, क्वालिस, फार्चूनर से चलने वाले करोड़पति, ...ब्लाक-तहसील के कुछ बेईमान कर्मचारियों ने कागजों में फेरबदल कर इनको गरीब दिखा दिया और दे दिया लोहिया आवास। इतना ही नहीं, करीब बीस फीसदी मामले ऐसे हैं जहां खुद ग्रामप्रधानों ने अपने ही परिवार में लोहिया आवास रेवड़ी की तरह बांट लिए। जबकि वास्तविक हकदार टकटकी बांधे निहार रहे हैं। पूर्वांचल यूपी के किसी भी गांवों में चले जाइए, इस तरह के मामले तकरीबन हर गांव में मिल जाएंगे।</p>

इलाहाबाद। अंधेरगर्दी की भी हद है। सरकारी योजनाओं में पलीता लगाने को बेईमानों में होड़ मच गई। जिन पर बेहतरी की जिम्मेदारी थी वो ही लूटने में जुट गए। सत्ता से जुड़े नेता, अफसर दोनों ही बेईमान की भूमिका में आ गए।…और प्रदेश सरकार की अति महत्वाकांक्षी लोहिया आवास योजना में करोड़ों रूपए का ‘खेल’ कर गए। बंगला, कोठी में रहने वाले हों या टवेरा, क्वालिस, फार्चूनर से चलने वाले करोड़पति, …ब्लाक-तहसील के कुछ बेईमान कर्मचारियों ने कागजों में फेरबदल कर इनको गरीब दिखा दिया और दे दिया लोहिया आवास। इतना ही नहीं, करीब बीस फीसदी मामले ऐसे हैं जहां खुद ग्रामप्रधानों ने अपने ही परिवार में लोहिया आवास रेवड़ी की तरह बांट लिए। जबकि वास्तविक हकदार टकटकी बांधे निहार रहे हैं। पूर्वांचल यूपी के किसी भी गांवों में चले जाइए, इस तरह के मामले तकरीबन हर गांव में मिल जाएंगे।

इस मामले के जानकार लोग दावे के साथ कहते हैं कि यह सौ फीसदी सच है कि शासन मन से चाह ले और योजनाओं में बंदरबांट हो जाए, एकदम असंभव। पर इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि जिस डॉ. राममनोहर लोहिया की माला जपकर मुलायम यादव और उनके बेटे व सूबे के सीएम अखिलेश सिंह राजनीति में फले-फूले उन्ही डॉ. लोहिया के नाम पर चलाई गई लोहिया आवास योजना में लूटखसोट की होड़ मची है।
 
यह भी सच है कि इसमें सत्ता की खाल ओढ़े छद्म समाजवादी स्वयंभू नेता भी बराबर शामिल हैं वर्ना अफसरों की क्या हिम्मत की योजना का अस्सी फीसदी हिस्सा डकार जाएं। इलाहाबाद, प्रतापगढ़, फतेहपुर, कौशांबी, सुल्तानपुर, रायबरेली जिलों में लोहिया आवास योजना में करोड़ों रूपए का घपला हो गया है। इलाके के सांसद, विधायक, मंत्रियों को भी जानकारी है पर वे मूकदर्शक बने तमाशबीन की भूमिका में हैं। सूत्रों का मानना है कि लूटखसोट के इस धंधे की केंद्रीय भूमिका में ग्रामप्रधान, सेक्रेटरी, बीडीओ, तहसीलदार ही हैं, सीडीओ, डीडीओ और डीएम ‘धृतराष्ट्र’ बने हैं। इनको स्थलीय निरीक्षण करने की फुर्सत नहीं। कागजी रिपोर्ट और मातहतों के बनाए आंकड़े को सच मान लेने की ‘पुरातन-परंपरा’ चली आ रही है।
 
इलाहाबाद के धनूपुर ब्लाक के दमगढ़ा गांव का मामला देखें। दमगढ़ा को समग्र ग्राम घोषित किया गया तब यहां के गरीब परिवारों में खुशी का ठिकाना न रहा। खासकर वे डेढ़ दर्जन गरीब परिवार जिनके सिर छिपाने के लिए एक अदद छत तक नसीब में नहीं है। गांव की ही बुजुर्ग महिला रामकली बताती हैं कि खुशी थी कि कम से कम जीवन के अंतिम दौर में एक अदद मकान की तो साध पूरी होगी पर अब वो सपना ही रह गया। यहां के कई परिवार ऐसे हैं जिनके पास दो-दो ईंट भट्ठे हैं, रहने को आलीशान कोठियां, चलने को क्वालिस, स्कार्पियो, फार्चूनर तक हैं पर वे भी गरीब दिखाकर लोहिया आवास योजना के पात्र बना दिए गए हैं।

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13 अपात्रों की सूची, शिकायतें 132 पर नतीजा शून्य

एक दो नहीं, 132 बार शिकायतें हो चुकी हैं। दमगढ़ा के 13 अपात्रों की सूची इलाहाबाद के सीडीओ, डीडीओ और डीएम के दफ्तरों में घूल फांक रही हैं। पर शिकायतों का मानों यहां कोई मतलब ही नहीं है। जांच पड़ताल के नाम पर अभी तक नतीजा शून्य से आगे नहीं बढ़ सका है।

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इलाहाबाद से वरिष्ठ पत्रकार शिवाशंकर पांडेय। लेखक दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिंदुस्तान आदि अखबारों में कई साल विभिन्न पदों पर रह चुके हैं। संपर्क मोः 9565694757
ईमेलः [email protected]

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