नितिन त्रिपाठी-
नब्बे के दसक में अमेरिका में डॉट कॉम बूम आया था. लोग बौराये हुवे थे. चार पेज की एचटीएमएल साईट बना दो कोई भी मिलियन डॉलर फंडिंग कर देता था. ऊल जलूल आइडियाज़ जैसे कि एक वेबसाइट होगी वह आपके घर का जीपीएस निकाल लेगी, कैमरे से आपकी फ़ोटो आपके ऐड्रेस से टैग हो जायेगी (आई नो आज यह कॉमन है) पर बिलियंस फंडिंग हो रही थी.
ज़ाहिर सी बात थी, एक दिन बबल फूटना ही था और बुलबुला फूटा. मार्केट ज़बरदस्त क्रैश हुआ. बड़ी बड़ी बड़ी कंपनियाँ दिवालिया हो गईं. पर इसका अर्थ यह नहीं था कि डॉट काम मार्केट तबाह हो गई. उन कुछ वर्षों में बिलियंस ऑफ़ डॉलर्स से जो कंपनियाँ बनी उन्होंने भविष्य में ट्रिलियंस कमाए भी.
दो हज़ार का दसक अमेरिका में mortgage बूम का रहा. बुलबुला फटा पर ऐसा नहीं कि इसके पश्चात अमेरिकन बेघर हो गये. उल्टे सबसे अच्छे अफोर्डेबल घर आज भी वहीं हैं.
बीच में क्रिप्टो बूम आया. पैसा दुनिया ने लगाया. पर अमेरिकन कंपनियाँ पायनियर थीं इस क्षेत्र में तो असल में सबसे ज्यादा पैसा बनाया उन्होंने ही. बनाया भी तो खर्च भी खूब किया. बबल फूटा. अब क्राइसिस आई हुई है. बैंक दिवालिया हो रहे हैं.
पर इसका अर्थ यह नहीं कि वह आउट ऑफ़ बिज़नस हो जाएँगे. छः महीने एक साल में फिर से नई टेक्नोलॉजी में बम्पर पैसा लगायेंगे और उसका रिवॉर्ड पायेंगे. बैंक यदि डूब रहा है तो वहाँ कोई ख़ुशियाँ नहीं मना रहा है. कोई हिंडनबर्ग ज़िंदाबाद नहीं बोल रहा है. विपक्ष ये नहीं बोलता कि बढ़िया हुआ. उल्टे जनता से लेकर सरकार तक सब कोशिश करेंगे कि मार्केट डूबने न पाये. और एक बार उबर गये तो फिर से नई टेक्नोलॉजी ढूँढों उस पर पैसा लगाओ. ऐसे ही विकास होता है और ऐसे ही वेल्थ बनती है.
वैसे क्रिप्टो क्राइसिस इतना बुरा नहीं है जितना बुरा मोर्टगेज क्राइसिस या डॉट कॉम क्राइसिस था. सभी समझदार निवेशक इससे पैसा बना कट लिए थे. फिर भी शोर्ट रन में लिक्विडिटी क्राइसिस अभी रहेगा कुछ समय.