दैनिक जागरण जनता का नहीं बल्कि सरकार का अखबार रहा है, हमेशा से. यह सत्ता के चरणों में झुकने वाला, सत्ता की भाषा बोलने वाला और सत्ता के अनुरूप चलने वाला अखबार है. हाथरस कांड में यह अखबार सत्ताधारी नेताओं और अफसरों की भाषा बोल रहा था, वह भी बड़े जोर-शोर से. इस अखबार ने कभी अपनी तरफ से इनवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म नहीं की. जो अफसर और मंत्री बोलते कहते रहे, वही बड़ा बड़ा छापता रहा.
अब जब कि सीबीआई जांच से यह साफ है कि दलित युवती की हत्या गैंगरेप के बाद की गई थी, इस बेशरम दैनिक जागरण ने थूककर चाट लिया. पहले इसी अखबार ने प्रकाशित किया था कि दलित युवती की उसकी ही मां और भाई ने हत्या की थी. देखें पहले और आज वाले अखबार-
अखबारों की सरकारी दल्लागिरी पर वेस्ट यूपी के पत्रकार हरेंद्र मोरल कहते हैं- ”वही अखबार, खबर भी वही। लेकिन इस बार थूक कर चाटना पड़ गया। यही इस दौर की पत्रकारिता है।”
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