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सुख-दुख

चौथा खंभा अगर है तो वह पूंजीपतियों का खंभा है! दलालों का खंभा है!!

Dayanand Pandey : लोगों को जान लेना चाहिए कि भारत में अब मीडिया नहीं है। मीडिया की दुकानें हैं, मीडिया के दलाल हैं। संविधान में भी तीन खंभों का ही ज़िक्र है। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका। बस। मीडिया के नाम पर चौथा खंभा जो है वह काल्पनिक है, संवैधानिक नहीं।

फिर भी चौथा खंभा अगर है तो वह पूंजीपतियों का खंभा है, दलालों का खंभा है, गरीबों का खंभा नहीं है, गरीबों के लिए नहीं है। निर्बल और लाचार के लिए नहीं है। सर्वहारा के लिए नहीं है। कारपोरेट घरानों का है मीडिया, इस की सारी सेवा कारपोरेट घरानों के लिए है। सिर्फ़ इन की ही तिजोरी भरने के लिए है, इन की लायजनिंग करने के लिए है, इन का ही स्वार्थ साधने के लिए है।

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बहुत सारे राजनीतिज्ञ भी इन के लिए सिर्फ़ कुत्ते हैं। दुम हिलाते हुए कुत्ते। इस मीडिया में काम करने वाले भी दलाल और चाकर हैं। गली वाले कुत्तों से भी बदतर। अरबों खरबों के साम्राज्य वाले इस मीडिया के ज्यादतर चाकर एक दिहाड़ी मज़दूर से भी कम वेतन पाते हैं। लोगों को यह बात भी जान लेनी चाहिए।

राष्ट्रीय सहारा लखनऊ में कई दशक तक नौकरी करने के बाद रिटायर पत्रकार दयानंद पांडेय की एफबी वॉल से.

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1 Comment

1 Comment

  1. Shambhu chudhary

    June 7, 2019 at 10:01 pm

    Sunder

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